केनाइन डिस्टेंपर : बेहद खतरनाक संक्रामक वायरस
केनाइन डिस्टेंपर बेहद खतरनाक संक्रामक वायरस है। इसे सीडीवी भी कहा जाता है। इस बीमारी से ग्रसित जानवरों का बचना बेहद मुश्किल होता है। यह बीमारी मुख्यतया कुत्तों में पाई जाती है। हालांकि केनाइन फैमिली में शामिल रकून,भेडिय़ा और लोमड़ी में भी यह बीमारी पाई जाती है। कुत्तों के जरिए यह वायरस दूसरों जानवरों में भी फैल जाता है। इसके अलावा यह वायरस हवा तथा सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर इस वायरस से ग्रसित किसी जानवर के संपर्क में आने से भी फैलता है।
केनाइन डिस्टेंपर बेहद खतरनाक संक्रामक वायरस है। इसे सीडीवी भी कहा जाता है। इस बीमारी से ग्रसित जानवरों का बचना बेहद मुश्किल होता है। यह बीमारी मुख्यतया कुत्तों में पाई जाती है। हालांकि केनाइन फैमिली में शामिल रकून,भेडिय़ा और लोमड़ी में भी यह बीमारी पाई जाती है। कुत्तों के जरिए यह वायरस दूसरों जानवरों में भी फैल जाता है। इसके अलावा यह वायरस हवा तथा सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर इस वायरस से ग्रसित किसी जानवर के संपर्क में आने से भी फैलता है।
शुरू में यह वायरस कुत्तों के टॉन्सल, लिंफ में बहने वाला खास तरल पर हमला करता है। इसके बाद यह बीमारी कुत्ते के श्वांस नली, किडनी और लिवर पर हमला कर देता है। कुछ दिन में इसके वायरस मस्तिष्क तंत्रिका में पहुंच जाते हैं और कुत्तों की मौत हो जाती है। हाई फीवर, लाल आंखें तथा नाक और कान से पानी बहना इस बीमारी का मुख्य लक्षण है। इसके अलावा कफ, उल्टी और डायरिया भी हो सकता है। .यह बीमारी खराब वैक्सीन से भी फैल सकती है। हालांकि ऐसे मामले रेयर ही होते हैं। बैक्ट्रिया इंफेक्शन से भी इस बीमारी के फैलने का खतरा रहता है। कैनाइन डिस्टेंपर वायरस का पता बॉयोकेमिकल टेस्ट और यूरिन की जांच से चलता है।
मारे जा चुके हैं 37 शेर
आपको बता दें कि यह वायरस इतना खतरना है कि 1994 में तंजानिया में इस वायरस से एक हजार शेरों की मौत हुई थी वहीं भारत में गिर में 2018 में 37 शेर इस बीमारी के कारण मारे जा चुके हैं। शेर या बाघ जंगल से निकलकर आबादी में कुत्तों को मार देते हैं तो संक्रमण हो जाता है। इसका इलाज भी बेहद मुश्किल है, क्योंकि यह सीधे नर्वस सिस्टम पर असर डालता है।
19 सितंबर 2019: नाहरगढ़ बायो पार्क में बाघिन सुजैन की मौत इसी वायरस के कारण हुई थी।
20 सितंबर 2019 : 10 माह की शावक रिद्धि की मौत, विसरा में मिला केनाइन डिस्टेंपर पॉजिटिव
26 सितंबर 2019: सफेद बाघिन सीता की मौत, विसरा में केनाइन डिस्टेंपर पॉजिटिव पाया गया
दिसंबर 2019 : बाघिन रंभा की मौत, विसरा में केनाइन डिस्टेंपर पॉजिटिव
लेप्टोस्पेयरोसिस: चूहे और नेवले से फैलता संक्रमण
लेप्टोस्पेयरोसिस एक बेहद संक्रामक और खतरनाक बीमारी है जिसकी चपेट में आने से इंसान इससे ग्रसित हो जाता है और कई बार उसकी मौत भी हो जाती है। पशु चिकित्सकों के मुताबिक ये एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन है जो जानवरों के कारण फैलता है। इस संक्रामक बीमारी के अधिकतर लक्षण कुत्ते, चूहे, गिलहरी, नेवला, भैंस, घोड़े, भेड़, बकरी और सूअर में ज्यादा पाए जाते हैं। इसके अलावा ये बीमारी जानवरों के पेशाब से संक्रमण के रूप में फैलती है। वैसे तो इस बीमारी के कई उपचार है ंलेकिन ज्यादा स्थिति खराब होने पर जान भी जा सकती है। ये बीमारी ज्यादातर चूहों और नेवलों से फैलती है। नेवलों के पेशाब से यह बीमारी वन्यजीवों तक पहुंचती है और उन्हें बीमार कर देती है। आपको बता दें कि नाहरगढ़ बायो पार्क में नेवले और चूहे दोनों ही बड़ी संख्या में है। खुला क्षेत्र होने के कारण इन पर नियंत्रण करना भी आसान नहीं है।
खाने और यूरिन से वन्यजीवों तक पहुंचता संक्रमण
नाहरगढ़ बायो पार्क में जिस तरह से वन्यजीव इस बीमारी का शिकार हुए हैं उससे पता चलता है कि खाने और यूरिन के जरिए यह संक्रमण उन तक पहुंचा है। पूरे परिसर में नेवले बड़ी संख्या में हैं और जहां तहां यूरिन करते हैं। उनके यूरिन के सम्पर्क में आने से बीमारी फैलने की संभावना रहती है। इसी प्रकार बायो पार्क में वन्यजीवों को दिए जाने वाले भोजन के माध्यम से बीमारी के फैलने की भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। बायो पार्क के कर्मचारी वन्यजीवों के पिंजरे में उनका खाना रखते हैं लेकिन वहां घूमने वाले चूहों पर उनका नियंत्रण नहीं होता ऐसे में खतरनाक वायरस लेकर घूम रहे चूहे आसानी से यह वायरस खाने के जरिए वन्यजीवों तक पहुंचा देते हैं।
9 जून 2020 : बाघ शावक रुद्र की मौत, पोस्टमार्टम में वजह लेप्टोस्पेयरोसिस
10 जून 2020 : शेर सिद्धार्थ की मौत, पोस्टमार्टम में वजह लेप्टोस्पेयरोसिस
4 अगस्त 2020 : सफेद बाघ राजा की मौत, लेप्टोस्पेयरोसिस के मिले लक्षण, रिपोर्ट का इंतजार
बिग कैट फैमिली के इन सदस्यों के अलावा ऐसे कितने ही अन्य वन्यजीव भी हैं जो मौत का शिकार बन चुके हैं, लेकिन अब तक इन दोनों ही वायरसों से बचाव का कोई स्थायी समाधान नहीं तलाशा जा सका है। यदि इसी प्रकार वन्यजीव एक के बाद एक मरते रहे तो वह दिन दूर नहीं जबकि नाहरगढ़ बायो पार्क खाली हो जाएगा
आपको बता दें कि यह वायरस इतना खतरना है कि 1994 में तंजानिया में इस वायरस से एक हजार शेरों की मौत हुई थी वहीं भारत में गिर में 2018 में 37 शेर इस बीमारी के कारण मारे जा चुके हैं। शेर या बाघ जंगल से निकलकर आबादी में कुत्तों को मार देते हैं तो संक्रमण हो जाता है। इसका इलाज भी बेहद मुश्किल है, क्योंकि यह सीधे नर्वस सिस्टम पर असर डालता है।
19 सितंबर 2019: नाहरगढ़ बायो पार्क में बाघिन सुजैन की मौत इसी वायरस के कारण हुई थी।
20 सितंबर 2019 : 10 माह की शावक रिद्धि की मौत, विसरा में मिला केनाइन डिस्टेंपर पॉजिटिव
26 सितंबर 2019: सफेद बाघिन सीता की मौत, विसरा में केनाइन डिस्टेंपर पॉजिटिव पाया गया
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खाने और यूरिन से वन्यजीवों तक पहुंचता संक्रमण
नाहरगढ़ बायो पार्क में जिस तरह से वन्यजीव इस बीमारी का शिकार हुए हैं उससे पता चलता है कि खाने और यूरिन के जरिए यह संक्रमण उन तक पहुंचा है। पूरे परिसर में नेवले बड़ी संख्या में हैं और जहां तहां यूरिन करते हैं। उनके यूरिन के सम्पर्क में आने से बीमारी फैलने की संभावना रहती है। इसी प्रकार बायो पार्क में वन्यजीवों को दिए जाने वाले भोजन के माध्यम से बीमारी के फैलने की भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। बायो पार्क के कर्मचारी वन्यजीवों के पिंजरे में उनका खाना रखते हैं लेकिन वहां घूमने वाले चूहों पर उनका नियंत्रण नहीं होता ऐसे में खतरनाक वायरस लेकर घूम रहे चूहे आसानी से यह वायरस खाने के जरिए वन्यजीवों तक पहुंचा देते हैं।
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