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आराम छोड़ पशुपालन को चुना व्यवसाय, कमा रही लाखों रुपए सालाना, पुरस्कार भी मिला

locationजयपुरPublished: Feb 22, 2020 07:10:40 pm

Submitted by:

Deepshikha Vashista

Women Empowerment: सर्वश्रेष्ठ महिला डेयरी किसान पुरस्कार 2019 से सम्मानित महिलाएं , दूसरों के लिए बनीं प्रेरणास्त्रोत

S Sudha
जयपुर. हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही महिलाएं अब उनके एकाधिकार का क्षेत्र माने जाने वाले पशुपालन व्यवसाय में भी दमदार उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। वहीं, घरेलू उपयोग के लिए गाय-भैंस पालने के बजाय कुछ महिलाओं ने इसे व्यवसाय के रूप में चुनकर खुद को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है। अब वे हर महीने लाखों रुपए कमाने के साथ ही दूसरों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत बनी हैं। ऐसी ही उपलब्धियों के लिए इन्हें विभिन्न मंचों पर सम्मानित भी किया जा चुका है।
जयपुर में आयोजित डेयरी इंडस्ट्री के राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन में गुरुवार को रांची (झारखंड) की बबीता देवी, तमिलनाडु की एस. सुधा, गुजरात की लक्ष्मी बेन और पंजाब की कमल प्रीत कौर को सर्वश्रेष्ठ महिला डेयरी किसान पुरस्कार 2019 से सम्मानित किया गया।
शिक्षिका बनने की बजाय चुना पशुपालन व्यवसाय

अमूमन महिलाओं के लिए शिक्षिका की नौकरी को आजीविका का बेहतर साधन माना जाता है, लेकिन वह एक अच्छी कारोबारी भी हो सकती हैं। यह मानना है तमिलनाडु के करूर जिला निवासी एस. सुधा (34) का। दक्षिण जोन की सर्वश्रेष्ठ महिला डेयरी किसान पुरस्कार पाने वाली सुधा ने एमएससी और बीएड की पढ़ाई के बावजूद पशुपालन व्यवसाय को अपनी आजीविका चुना।
उन्होंने बताया कि उनके परिवार के सदस्य पशुपालन व्यवसाय से जुड़े हैं। शादी के बाद उन्होंने शिक्षिका की नौकरी की बजाय, पशुपालन व्यवसाय करने की ठानी। चुनौतीपूर्ण कारोबार होने के बावजूद सुधा के ससुराल पक्ष ने इस फैसले में उनका साथ दिया। कभी छोटे स्तर से शुरुआत करने वाली सुधा के पास अभी 70 गाय और बकरियां हैं। स्वावलंबी बनने के साथ ही इस कदम से उन्होंने गांव की कई महिलाओं को रोजगार दिया है तथा आज उनकी मासिक आय करीब दो लाख रु. प्रतिमाह है।
babita Devi
ऋण लेकर दो गाय खरीदी, आज पचास हजार प्रतिमाह की आमदनी

‘महिलाओं में सशक्त बनने की चाह हो तो वह हर मुश्किलों को पार कर लक्ष्य पा लेती हैं। पूर्व जोन की सर्वश्रेष्ठ महिला डेयरी किसान पुरस्कार से सम्मानित बबीता देवी ने यह बात कही।
उन्होंने बताया कि सरकार से ऋण लेकर २००९ में दो गाएं खरीदीं। धीरे-धीरे अपनी मेहनत के बूते आज उनके पास तेरह गाय हैं। इनसे उपलब्ध दूध को बेचकर वह प्रतिमाह करीब पचास हजार रुपए कमाती हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों को उनकी तरह संघर्ष नहीं करना पड़े, इसलिए वो तीनों बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ा रही हैं।
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