महिलाओं में डर
इस बारे में जब महिला यात्रियों से बात की तो उन्होंने बताया कि यह प्रतिदिन की बात है। हर दिन सफर करना पड़ता है, कौन रोजाना माथापच्ची करें। वहीं कुछ का तो यह भी कहना था कि जब पुरुषों से सीट छोड़ने के लिए कहते हैं तो वे झगड़े पर उतारू हो जाते हैं। बस कडंक्टर से शिकायत भी की, तो वो भी अनसुना कर देते हैं।
इस बारे में जब महिला यात्रियों से बात की तो उन्होंने बताया कि यह प्रतिदिन की बात है। हर दिन सफर करना पड़ता है, कौन रोजाना माथापच्ची करें। वहीं कुछ का तो यह भी कहना था कि जब पुरुषों से सीट छोड़ने के लिए कहते हैं तो वे झगड़े पर उतारू हो जाते हैं। बस कडंक्टर से शिकायत भी की, तो वो भी अनसुना कर देते हैं।
महिला सीट कहां पता ही नहीं रूट नं. 32 की लो फ्लोर में तो महिला आरक्षित सीट ही नहीं थी। दरअसल जहां महिला आरक्षित सीट लिखा है, वह मिट चुका है। जिसकी ओर प्रशासन का ध्यान ही नहीं है। ऐसे में महिलाओं को सीट का पता ही नहीं चलता।
दिल्ली से ले सीख एमएससी की छात्रा नेहा गुप्ता का कहना है कि जयपुर में भी दिल्ली की तरह होना चाहिए पुरुष यात्री महिला आरक्षित सीट पर बैठते ही नहीं या फिर महिला को देखते ही उठ जाते हैं, जबकि यहां बसों में सिर्फ नाम के लिए ही महिला आरक्षित सीटें हैं। बसों में इतनी भीड़ होती है कि आगे तक पहुंचा ही नहीं जाता, मशक्कत के बाद आगे पहुंच भी जाएं तो पता ही नहीं चलता कि महिला सीट कौनसी है। सीट को गेट के पास ही होना चाहिए।
केस नं.1
गांधी नगर मोड से रूट नं. 32 की बस में पड़ताल की तो देखा महिला सीट पर पुरुष यात्री बैठे थे। जबकि उस सीट के पास ही तीन लड़कियां खड़े होकर यात्रा करती नजर आई।
गांधी नगर मोड से रूट नं. 32 की बस में पड़ताल की तो देखा महिला सीट पर पुरुष यात्री बैठे थे। जबकि उस सीट के पास ही तीन लड़कियां खड़े होकर यात्रा करती नजर आई।
केस नं.2
गोपालपुरा से रूट नं. 3 की बस में देखा तो बस भरी हुई थी। महिलाओं के लिए आरक्षित चारों सीट पर पुरुष यात्री बैठे दिखे। जब उन्हें सीट छोड़ने के लिए कहा तो मना कर दिया। बस परिचालक के कहने पर महिलाओं को सीट मिल सकी।