भारत में रक्त की जरूरत दुनिया में रक्तदान में कमी आने सर्जरी आदि की वजह से खून की मांग में इजाफा होने से मुश्किलें बढ़ गई हैं। ऐसे में
WHO इस कमी को दूर करने के लिए प्रयासरत है और 2020 तक उसका लक्ष्य है कि सभी देश अपनी जरूरत के मुताबिक, रक्तदाताओं से रक्त एकत्रित कर सकें। गौरतलब है कि बड़ते सड़क हादसों के कारण अस्पतालों में मरीजों के लिए ब्लड की मांग बढ़ती जा रही है लेकिन ब्लड बैंकों को स्वैच्छिक रक्तदान से केवल 50 से 60 फीसदी तक पूर्ति ही हो पा रही है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल औसतन चार करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत पड़ती है, लेकिन रक्त की अनुपलब्धता की वजह से लाखों लोगों की असमय मौत हो जाती है। देश में गंभीर रोगों से ग्रसित रोगियों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। थैलेसिमिया और कैंसर जैसी बडी बीमारियो के मरीजों में भी उपचार के दौरान रक्त की जरूरत पडती है। थैलेसिमिया के एक मरीज को अपने जीवन काल में सात हजार, कैंसर मरीज को 20 से 100, एड्स पीडि़त को 20 से 100 और ब्लड डिसऑर्डर के मरीज को 50 से 5000 यूनिट तक ब्लड की जरूरत पडती है।
रक्तदान के संबंध में क्या कहता है चिकित्सा विज्ञान मनुष्य के शरीर में रक्त बनने की प्रक्रिया चलती रहती है। रक्तदान के फौरन बाद बोन मैरो शरीर में नई रक्त कोशिकाएं बना देता है, जितना मनुष्य रक्त दान करता है, उसकी पूर्ति शरीर खुद-ब-खुद 72 घंटे में कर लेता हैं। एक अहम बात यह भी है कि हमारे रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित रेड ब्लड तीन माह में स्वयं डेड हो जाते हैं, लिहाजा हर स्वस्थ मनुष्य तीन माह में एक बार रक्त दान कर सकता है।
क्या फायदे है रक्तदान के यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि नियमित रक्तदान की आदत व्यक्ति को हाई कॉलेस्टोल, हार्ट प्रॉब्लम, हिमोग्लोबिन की कमी और मोटापा जैसी बीमारियों से बचा सकती है। इसके साथ ही रक्तदान से शरीर को आंतरिक रूप से भी स्वस्थ्य रखा जा सकता है। एक रक्तदाता चार लोगों की जिंदगियों को बचा सकता है।विशेषज्ञों के अनुसार नियमित ब्लड डोनेशन करना हैल्दी रहने का एक अच्छा तरीका भी माना जाता है। ब्लड डोनेशन के बाद एक माह में ही नया ब्लड़ बन जाता है। नियमित रक्तदान करने से यूरिक एसिड और कोलेस्ट्रोल की मात्रा पर नियंत्रण रहता है। शरीर के अंदर से पुराना रक्त निकल जाने से नए खून का संचार होने लगता है, साथ ही नई लाल रक्त कोषिकाओं का उत्पादन होना शुरू हो जाता है। शरीर के अनावश्यक तत्व (टॉक्सिन) बाहर निकल जाते हैं। इससे त्वचा से संबंधित समस्याएं भी कम होती है।