50 वर्ष से ज्यादा की उम्र के सामने आने वाला ब्रेन ट्यूमर अब युवा अवस्था में भी मे तेजी से सामने आ रहा है। 30 से 40 की उम्र में भी हजारों रोगी इसका उपचार ले रहे है। छोटी उम्र में तेजी से बढ़ते मामलों को लेकर मेडिकल साइंस में कई रिसर्च हुई हैं, लेकिन अभी तक इसके कारणों का पता नही लग पाया है। कई शोध में पाया गया है कि मोबाइल का अधिक उपयोग और रेडिएशन एक्सपोजर के कारण मस्तिष्क पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे व्यक्ति के व्यवहार में कई तरह के परिवर्तन सामने आते है।
कई स्टडी में सामने आया कि मोबाइल रेडिएशन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और मिस-कैरेज की आशंका भी हो सकती है। दरअसल, हमारे शरीर में 70 फीसदी पानी है। दिमाग में भी 90 फीसदी तक पानी होता है। यह पानी धीरे-धीरे बॉडी रेडिएशन को अब्जॉर्ब करता है और आगे जाकर सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होता है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल से कैंसर तक होने की आशंका हो सकती है। इंटरफोन स्टडी में कहा गया कि हर दिन आधे घंटे या उससे ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करने पर 8-10 साल में ब्रेन ट्यूमर की आशंका 200-400 फीसदी बढ़ जाती है।
ब्रेन ट्यूमर के लक्षणों की अनदेखी और समय पर पहचान ना होने के कारण 80 फीसदी से ज्यादा रोगी ट्यूमर के पूरी तरह से बढ़ जाने के बाद न्यूरो एक्सपर्ट के पास आते हैं। एडवांस स्टेज में ट्यूमर की पहचान होने पर उसे तुरंत प्रभाव से ऑपरेशन के जरिए उपचार दिया जाता है। कुछ केसेज में रोगी ट्यूमर की पहचान होने के बाद भी बाबा और झाड़-फूंक के चक्कर में फंसकर उपचार मे देरी करते हैं। डॉ.भवानी शंकर शर्मा ने बताया एक समय ब्रेन ट्यूमर होने पर व्यक्ति का बच पाना असम्भव माना जाता था लेकिन अब बडी संख्या में रोगियों की जान बचाई जा रही है। ब्रेन ट्यूमर को दुनिया में मौत का एक बड़ा कारण माना जाता है। अंत में यहीं कहना चाहते है कि अगर किसी को ऐसे लक्षण दिखे तो डॉक्टर से जरूर संपर्क करें वहीं अपने बच्चों को मोबाइल से दूर रखें।