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World Cancer Day Special: हारे नहीं लड़े, टूटे मगर फिर उठे.. आखिर कैंसर को दे दी मात

locationजयपुरPublished: Feb 04, 2019 02:13:47 pm

Submitted by:

neha soni

विश्व कैंसर दिवस आज: कैंसर से जीते लोगों ने कहा, इलाज हमारी इच्छाशक्ति और सोच पर निर्भर

World Cancer Day
जयपुर पत्रिका . मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। यह उक्ति उन लोगों पर सटीक बैठती है, जिन्होंने हारने के बजाय हौसले का रास्ता चुना और कैंसर को मात दे दी। ये लोग उन मरीजों के लिए प्रेरणास्रोत हैं, जो कैंसर से जूझ रहे हैं। विश्व कैंसर दिवस पर राजस्थान पत्रिका से इन लोगों ने अपनी जीत की कहानी साझा की। पेश है रिपोर्ट।
लोग सवाल पूछते लेकिन मैं डरी नहीं
कैंसर का नाम सुनते ही मरीज मानसिक रूप से हारने लगते हैं। उन्हें लगता है कि बीमारी से जीत नहीं पाएंगे। लेकिन मेरा कहना है कि मौत आनी है तो घर में ही आ जाएगी। इच्छाशक्ति हो तो कैंसर से जीता जा सकता है। मुझे 3 साल पहले ब्रेस्ट कैंसर हुआ। मुझे हौसला देने वाले बहुत लोग थे। एसएमएस अस्पताल में नर्सिंग अधीक्षक महेन्द्र सारस्वत ने थैरेपी के साइड इफेक्ट पहले ही बता दिए थे। पांचवीं कीमो में मैं हार गई लेकिन फिर उठी और लड़ी। महिला के लिए बड़ी परेशानी तब आती है जब उसके सिर के बाल जाने लगते हैं। दो साल तक जूझने के बाद मैं ठीक हो गई।
-अक्षिता शर्मा, बजाजनगर
हौसला रखा, अब ठीक
2014 में मुझे जबड़े के कैंसर का पता लगा लेकिन मैंने किसी को नहीं बताया। ऑपरेशन के दिन परिजनों को बताया। वे हैरान रह गए लेकिन मैंने उन्हें समझाया। थैरेपी शुरू हुई और मैं पूरी तरह ठीक हो गया। कैंसर पीडि़तों का मनोबल तोड़ें नहीं बल्कि बढ़ाएं। लडकऱ ही जीता जा सकता है।
महेन्द्र सिंह नरूका, वैशालीनगर
आधा इलाज डॉक्टर के पास, आधा सोच में
कैंसर जैसी बीमारी का डॉक्टर के पास आधा इलाज ही है, आधा इलाज हमारी सोच में है। मैं 25 साल से सर्वाइव कर रही हूं। मेरे बे्रस्ट कैंसर था। मेरी बीमारी की एक ही दवा थी, मेरी सोच। हमेशा यही बात ध्यान में रखती कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। मुझे कैंसर हुआ तब इतनी जागरूकता नहीं थी। लोग तब कैंसर मरीजों के प्रति छुआछूत जैसी भावना रखते थे। लेकिन पति और बेटे ने मुझे हौसला बंधाया। मैं कैंसर से लड़ी और जीत गई। इलाज के दौरान एसएएमस जाती तब कोशिश संस्था के संपर्क में आई, जो कैंसर मरीजों को मोटिवेट, काउसलिंग करती है। मैं भी संस्था से जुड़ गई। आज 20 साल हो गए, संस्था के 150 सदस्यों के साथ अस्पतालों में जाकर कैंसर मरीजों का हौसला बढ़ाती हूं।
-मंजू अग्रवाल, वैशाली
एक बार लगा जिंदगी फिसल रही है
बीकानेर. 58 वर्षीय राजेश शर्मा करीब तीन माह कैंसर से जूझने के बाद अब फिर से नई ऊर्जा व जोश के साथ जिंदगी को जी रहे हैं। डीआरएम (रेलवे) ऑफिस में चीफ सुपरिटेंडेंट के पद पर कार्यरत राजेश को 2017 में मुंह में तकलीफ हुई, जांचें कराई तो कैंसर का पता चला। इस मुश्किल घड़ी में पत्नी शारदा, बड़े भाई शंकरलाल और दोस्त रूपकिशोर व्यास ने हिम्मत बंधाई। अब वे ठीक हैं। राजेश बताते हैं कि अब 10 से 12 घंटे काम करता हूं, नियमित ऑफिस जाता हूं।
जीती जंग अब पूरी तरह स्वस्थ
चूरू. राजगढ़ तहसील के गांव सांखू फोर्ट निवसी 70 वर्षीय जगदीश प्रसाद शर्मा ने कैंसर से जंग जीत ली है। अब वे पूरी तरह से स्वस्थ्य हैं। जगदीश प्रसाद ने बताया कि वे दिल्ली में एक प्लास्टिक फैक्ट्री में अकाउंटेंट कम मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। 12 साल पहले जांच में उन्हे मुंह का कैंसर बताया गया। इसके बाद उन्होंने करीब एक साल तक दवा की और कीमो लगवाए। लेकिन सही नहीं हो रहा था। इस पर रोहतक पीजीआई में ऑपरेशन करवा लिया। अब वे स्वस्थ है।
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