स्पूतनिक की रिपोर्ट के मुताबिक शुरू में मॉस्को की लैब में दो अलग-अलग फॉर्म के टीके पर प्रयोग हो रहा था, जिनमें एक तरल और एक पाउडर के रूप में था। शुरूआती
ट्रायल में दो ग्रुप बने, जिनमें हरेक में 38 प्रतिभागी थे। इनमें से कुछ को वैक्सीन दी गई, जबकि कुछ को प्लासीबो इफैक्ट के तहत रखा गया। यानी उन्हें कोई साधारण
चीज देते हुए ऐसे जताया गया, जैसे दवा दी जा रही हो।
रूस इस मामले में अलग रहा। उसने हर प्रतिभागी को आइसोलेशन में रखते हुए जांच की। इसमें रूस की सरकारी मेडिकल यूनिवर्सिटी सेचेनोफ ने ट्रायल किए और कथित
तौर पर वैक्सीन को इंसानों के लिए सुरक्षित माना। दो ट्रायलों में वैक्सीन आजमाई और जुलाई में ही प्रतिभागियों को अस्पताल से छुट्टी भी मिल चुकी है। दिलचस्प बात ये
है कि अब भी इसके तीसरे चरण का ट्रायल चल ही रहा है। रूसी समाचार एजेंसी तास ने जानकारी दी है इस वैक्सीन का तीसरा ट्रॉयल अब ब्राजील में भी शुरू हो रहा है।
रूस की कोरोना वैक्सीन एडेनोवायरस बेस फॉर्मूला पर बनाई गई है। एडेनोवायरस विषाणुओं के उस समूह को कहते हैं जो हमारी आंखों, श्वासनली, फेफड़े, आंतों और नर्वस
सिस्टम में संक्रमण का कारण बनते हैं। यानी शरीर में विषाणु ही डाले जाएंगे लेकिन मृत अवस्था में। रूसी एक्सपर्ट्स का दावा है कि शरीर में डालने के बाद ये खुद को
रेप्लिकेट करके बढ़ नहीं सकेंगे, बल्कि शरीर में एंटीबॉडी तैयार हो जाएगी, जो असल में वायरस का हमला होने पर सक्रिय हो जाएगी।
फिलहाल इस टीके की लिमिटेड डोज तैयार हो चुकी हैं और रूस ने दावा किया है कि अपने हेल्थ वर्कर्स और शिक्षकों को वैक्सीन देने से इसकी शुरुआत करेगा। सितंबर में
दूसरे देशों से भी रूस अप्रूवल की बात करेगा। दूसरे देशों से सहमति मिलने के बाद वहां के लिए भी दवा का उत्पादन होने लगेगा। माना जा रहा है कि हर्ड इम्युनिटी के
लिए रूस में से 4 से 5 करोड़ आबादी को ये टीका देना होगा। ये रूस की लगभग 60 प्रतिशत आबादी होगी। चूंकि इतनी वैक्सीन एक साथ बनाना मुमकिन नहीं, इसलिए
प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन दी जाएगी।
इधर पारदर्शिता की कमी के चलते बहुत से देश इस पर सवाल उठा रहे हैं कि रूस ने ह्यूमन ट्रायल के सारे चरण पार किये भी हैं या नहीं! यही वजह देते हुए कोरोना से
बुरी तरह से परेशान होने के बाद भी अमेरिका ने रूस की वैक्सीन लेने से साफ मना कर दिया है। ब्रिटेन ने भी साफ कर दिया है कि वह अपने नागरिकों को रूसी वैक्सीन
की डोज नहीं देगा। खुद वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का यही कहना है कि बिना पक्के डाटा के वैक्सीन दिया जाना ठीक नहीं। इन हालातों में ये भी हो सकता है कि पहले
कुछ वक्त रूस की जनता पर ही लोगों की नजरें टिकी रहेंगी कि वैक्सीन से उन पर क्या असर दिख रहा है। इसके बाद दूसरे देश भी रूसी वैक्सीन लेने की सोच सकते हैं।
रूसी एजेंसी TASS के मुताबिक रूस में यह वैक्सीन मुफ्त में मिलेगी। इस पर आने वाली लागत को देश के बजट में पूरा किया जाएगा। वहीं बाकी देशों के लिए वैक्सीन
की कीमत का खुलासा अभी नहीं किया गया है। इधर रुसी समाचार एजेंसी तास ने कहा है कि दुनिया के 20 देशों से रूस के पास इस वैक्सीन की एक अरब यानी 100
करोड़ डोज के ऑर्डर पहले ही मिल चुके हैं।
किरिल दिमित्रिव ने कहा कि भारत और ब्राजील जैसे कई देश कोरोना के लिए रूसी वैक्सीन की बात कर रहे हैं। एक टीवी चैनल Rossiya-24 को दे रहे इंटरव्यू के
दौरान दिमित्रिव ने भारत और ब्राजील का खुलकर नाम लिया कि वे वैक्सीन लेने में दिलचस्पी रखते हैं। हालांकि भारत की ओर से फिलहाल ऐसा कोई आधिकारिक बयान
नहीं आया है कि इसका खुलासा हो सके। दिमित्रिव का ये भी कहना है कि दुनिया के कुल 20 देश रूसी वैक्सीन लेना चाहते हैं और बात चल रही है।