पत्तियों को कर जाता है चट
कुछ समय में पौधों की पत्तियां खा जाने से सिर्फ तना बच जाता है। ऐसे में बाजरे के खेत में पौधों में सिट्टे का विकास ही नहीं हो रहा है। सिट्टे से ही बाजरा निकलता है। लेकिन अगर सिट्टा ही नहीं बनेगा तो फिर पौधे से बाजरा ही नहीं उत्पादित होगा। ऐसे में यह कीड़ा एक तरह से बाजरे के उत्पादन को ही नष्ट कर रहा है। जयपुर में दूदू के
गुडलिया गांव निवासी किसान रामनिवास यादव, पूर्व सरपंच मोतीलाल यादव ने बताया कि खेत में बाजरे की खड़ी फसल को फड़का कीट चट करने में लगा है और सैकड़ों बीघा में फसल खराब हो गई है। ग्राम सेवा सहकारी समिति पर फड़का को नष्ट करने के लिए कीटनाशक भी उपलब्ध नहीं है। काश्तकार लादूराम, गोपाल चौधरी कहना है कि इस क्षेत्र में फडक़ा कीट का प्रकोप पिछले सालों में कम होने की बजाय बढ़ रहा है। किसानों का कहना है कि कृषि विभाग के अधिकारियों को जानकारी दी गई लेकिन सिर्फ खेतों का दौरा करके और फोटोग्राफ लेकर इसकी इतिश्री कर ली।
फड़का कीट का प्रजजन
सिंवार कृषि पर्यवेक्षक झूमा देवी, निमेड़ा कृषि पर्यवेक्षक नरेन्द्र कुमार ने बताया कि मादा फड़का कीट जमीन के करीब 90 सेमी नीचे अण्डा देती है। जून-जूलाई, अगस्त में फड़का शिशु अवस्था में अण्डों से बाहर निकलकर पौधों पर आ जाता है। वयस्क होने के बाद यह उडक़र अन्य स्थानों पर पहुंचकर फसलों को नुकसान पहुंचाने लग जाता है। यदि समय रहते किसानों ने इनकी रोकथाम नहीं की तो वयस्क होने पर यह फसलों की तेजी से नुकसान पहुंचता है। इसके अलावा कीटनाशक, तेज धूप और तेज बरसात भी फड़का कीट को मारने में सहायक रहती है। वहीं कृषि विशेषज्ञ इस कीट की रोकथाम के लिए किसानों को क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत कीटनाशक पाउडर 25 किलो प्रति हैक्टयर के हिसाब से भुरकाव करने की सलाह देते हैं।