2030 तक 180 करोड़ यात्री भार
वल्र्ड इकॉनोमिक फोरम में मोबिलिटी के प्रमुख क्रिस्टोफ़ वोल्फ का कहना है कि साल 2030 तक दुनिया भर के हवाई अड्डों पर 180 करोड़ यात्रियों का भार होगा जो साल 2016 की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा है। वर्तमान एयरपोर्ट सिस्टम के तहत, हवाई अड्डे इस वृद्धि पर नियंत्रण नहीं रख पाएंगे। इसलिए ‘यात्री की डिजिटल पहचान’ परियोजना एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करती है। इस डिजिटल पहचान और केटीडीआइ में शुमार अन्य तकनीकों का उपयोग करके हम हवाई सफर करने वाले यात्रियों को सुरक्षित और निर्बाध यात्रा की सुविधा दे रहे हैं। साथ ही यह विमान सुरक्षा के लिए भी नए भविष्य को आकार देगा।
वल्र्ड इकॉनोमिक फोरम में मोबिलिटी के प्रमुख क्रिस्टोफ़ वोल्फ का कहना है कि साल 2030 तक दुनिया भर के हवाई अड्डों पर 180 करोड़ यात्रियों का भार होगा जो साल 2016 की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा है। वर्तमान एयरपोर्ट सिस्टम के तहत, हवाई अड्डे इस वृद्धि पर नियंत्रण नहीं रख पाएंगे। इसलिए ‘यात्री की डिजिटल पहचान’ परियोजना एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करती है। इस डिजिटल पहचान और केटीडीआइ में शुमार अन्य तकनीकों का उपयोग करके हम हवाई सफर करने वाले यात्रियों को सुरक्षित और निर्बाध यात्रा की सुविधा दे रहे हैं। साथ ही यह विमान सुरक्षा के लिए भी नए भविष्य को आकार देगा।
2020 से शुरू होने की उम्मीद
केटीडीआइ प्रणाली के अंतर्गत हवाईअड्डों पर पहुंचने वाले यात्रियों के पास पासपोर्ट माइक्रोचिप की बजाय पहले से ही उनका पहचान डेटा एन्क्रिप्टेड होगा। यह उनके मोबाइल फोन पर संग्रहीत किया जाएगा। इसमें यात्रियों को हवाई अड्डे पहुंचने से पहले विमान सेवाओं, सीमा प्राधिकारियों और अन्य लोगों की जानकारी भेजी जाती है। प्रत्येक बार डेटा भेजे जाने पर व्यक्तिगत सहमति की आवश्यकता होती है जो यात्रियों को मौजूदा पासपोर्ट प्रणाली की तुलना में उनके व्यक्तिगत डेटा पर अधिक नियंत्रण प्रदान करता है। फिर बायोमीट्रिक तकनीक जैसे फिंगरप्रिंट या चेहरा पहचान का उपयोग करके का उपयोग कर यात्री निर्बाध और पेपरलेस सफर का आनंद ले सकते हैं।
केटीडीआइ प्रणाली के अंतर्गत हवाईअड्डों पर पहुंचने वाले यात्रियों के पास पासपोर्ट माइक्रोचिप की बजाय पहले से ही उनका पहचान डेटा एन्क्रिप्टेड होगा। यह उनके मोबाइल फोन पर संग्रहीत किया जाएगा। इसमें यात्रियों को हवाई अड्डे पहुंचने से पहले विमान सेवाओं, सीमा प्राधिकारियों और अन्य लोगों की जानकारी भेजी जाती है। प्रत्येक बार डेटा भेजे जाने पर व्यक्तिगत सहमति की आवश्यकता होती है जो यात्रियों को मौजूदा पासपोर्ट प्रणाली की तुलना में उनके व्यक्तिगत डेटा पर अधिक नियंत्रण प्रदान करता है। फिर बायोमीट्रिक तकनीक जैसे फिंगरप्रिंट या चेहरा पहचान का उपयोग करके का उपयोग कर यात्री निर्बाध और पेपरलेस सफर का आनंद ले सकते हैं।
इस पायलट प्रोजेक्ट का परीक्षण 2019 के आखिर तक चलेगा। वहीं इसके तहत पहली अधिकारिक हवचाई यात्रा 2020 में डिजिटली डॉक्यूमेंट एंड-टू-एंड यात्रा के साथ होने की उम्मीद है। इससे आने वाले वर्षों में एयरपोट्र्स पर यात्रियों के दबाव को कम किया जा सकता है।
एशिया बनेगा हवाई यात्रा में सिरमौर
हवाई यात्रा में यह बूम सबसे ज्यादा एशिया, लैटिन अमरीका, अफ्रीका और मध्य पूर्व की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा देखने को मिलेगा। साल 2030 तक सभी अंतरराष्ट्रीय आवागमन का 57 फीसदी हिस्सेदारी इन्हीं देशों के एयरलाइंस उद्योग की होगी। हालांकि इस प्रोजेक्ट की सफलता विभिन्न देशों की सरकारों की स्वीकृति, तकनीक निर्माताओं, विमानन उद्योग, सीमा प्राधिकरणों और यात्रियों पर निर्भर करती है।
हवाई यात्रा में यह बूम सबसे ज्यादा एशिया, लैटिन अमरीका, अफ्रीका और मध्य पूर्व की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा देखने को मिलेगा। साल 2030 तक सभी अंतरराष्ट्रीय आवागमन का 57 फीसदी हिस्सेदारी इन्हीं देशों के एयरलाइंस उद्योग की होगी। हालांकि इस प्रोजेक्ट की सफलता विभिन्न देशों की सरकारों की स्वीकृति, तकनीक निर्माताओं, विमानन उद्योग, सीमा प्राधिकरणों और यात्रियों पर निर्भर करती है।