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पत्रिका अमृतम-जलम् अभियान:कभी बुझाते थे जैसाण की प्यास,आज खुद ही प्यासे पेयजल स्रोत

locationजैसलमेरPublished: May 17, 2019 06:05:22 pm

Submitted by:

Deepak Vyas

कलात्मक सुन्दरता व मनोहारी वातावरण के कारण विश्व स्तरीय ख्याति अर्जित कर चुके ऐतिहासिक गड़ीसर तालाब को संरक्षण की दरकार है। हर साल लाखों सैलानी सरोवर को निहारने और आनंद व सुकून के पल बिताने यहां आते हैं।

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पत्रिका अमृतम-जलम् अभियान:कभी बुझाते थे जैसाण की प्यास,आज खुद ही प्यासे पेयजल स्रोत

जैसलमेर. कलात्मक सुन्दरता व मनोहारी वातावरण के कारण विश्व स्तरीय ख्याति अर्जित कर चुके ऐतिहासिक गड़ीसर तालाब को संरक्षण की दरकार है। हर साल लाखों सैलानी सरोवर को निहारने और आनंद व सुकून के पल बिताने यहां आते हैं। इस दौरान सरोवर की दुर्दशा को देखकर वे मायूस नजर आते हैं। महज चंद दशक पहले तक ऐतिहासिक गड़ीसर सरोवर जैसलमेर शहरवासियों के लिए पेयजल का प्रमुख स्रोत हुआ करता था और आज हालत यह हैकि इसका पानी नहाने के काबिल भी नहीं रह गया है। सरोवर में बनी बंगलियों व झरोखों की जीर्ण अवस्था को सुधारने के लिए कतई काम नहीं हो रहा। ऐसे ही पानी की आवक के रास्ते में होने वाले अतिक्रमणों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा। गड़ीसर के जल प्रवाह क्षेत्र में निरंतर लोग जमीनों पर कब्जे कर दिए गए हैं। इसके अलावा बड़े-बड़े गड्ढों के कारण पानी भरपूर मात्रा में तालाब तक नहीं पहुंच पाता। गौरतलब है कि 136 7 में महारावल गड़सी सिंह ने गड़ीसर तालाब का निर्माण करवाया था। करीब ५० साल पहले तक यह सरोवर पेयजल का प्रमुख स्रोत था। बदलते समय के साथ यह पर्यटन स्पॉट के रूप में विकसित हो गया है और यहां नौकायन की भी सुविधा है।
सालमसागर सागर के आगोर में अतिक्रमण, रुक पानी की आवक
पोकरण. गत कई वर्षों से प्रशासनिक उपेक्षाओं के चलते पोकरण कस्बे में स्थित मुख्य परंपरागत पेयजल स्त्रोत सालमसागर तालाब देखरेख व संरक्षण के अभाव में अपना अस्तित्व खोता जा रहे है। कस्बे के बीचोंबीच पोकरण फोर्ट के पिछवाड़े स्थित तत्कालीन जोगिरदार सालमसिंह राठौड़ की ओर से निर्मित सालमसागर तालाब, जिसमें बारिश के दौरान आशापुरा व बीलिया गांव में स्थित मगरों से बहकर एक नदी के माध्यम से पानी आता है। इस नदी में गत कई वर्षों से कस्बे से निकाला गया गंदगी का मलबा डाल दिए जाने, पानी के आवक क्षेत्र में बड़ी संख्या में झाडिय़ां लग जाने व नदी के किनारों पर अतिक्रमण कर लिए जाने से पानी की आवक कम हो गई है। इसी तरह नदी में बहकर आने वाली बालू रेत तालाब में आकर गिरने से पायतन में रेत के ढेर लग गए है तथा तालाब की सरकारी स्तर पर खुदाई नहीं होने के कारण बारिश का पानी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाता है। तालाब की किसी जमाने में बहुत बड़ी उपयोगिता हुआ करती थी। कस्बे की आम जनता व पशुधन के पेयजल के रूप में इस तालाब में बारिश से संग्रहित पानी उपयोग लिया जाता था। इस तालाब के उचित रख रखाव के कारण इसमें पानी का ठहराव भी पूरे वर्षभर रहता था तथा तालाब के आसपास क्षेत्र में स्थित कुंओं में भी जल स्तर बढ़ता था। यहां दर्जनों बाडिय़ों में कृषि कार्य भी होता था, लेकिन गत कई वर्षों से सालमसागर के जल संग्रहण क्षेत्र की देखभाल नहीं होने के कारण तालाब में पानी की आवक व ठहराव में कमी आई है। जिससे आसपास के सभी कुंओं व बावडिय़ों का जल स्तर खत्म होकर वे सूख गए है।
रावसर तालाब के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा
रामदेवरा. लोकदेवता बाबा रामदेव के समकालीन ऐतिहासिक रावसर तालाब अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है तथा अस्तित्व खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है। कई दशकों तक लोगों की प्यास बुझाने वाला तालाब स्वयं उपेक्षा का शिकार हो गया है। बाबा रामदेव के जीवनकाल में रावसर तालाब का निर्माण करवाया गया था। रामदेवरा गांव सहित आसपास ढाणियों में निवास कर रहे ग्रामीणों की ओर से इस नाडी के पानी का उपयोग किया जाता था। इसके अलावा आसपास क्षेत्र के पशुधन भी यहां आकर प्यास बुझाते थे। वर्तमान में यह नाडी दुर्दशा का शिकार है। पायतन में रेत के अथाह भण्डार, गंदगी, कचरे के कारण इस पानी का उपयोग करना मुश्किल हो रहा है, तो आसपास क्षेत्र में झाडिय़ां लग जाने से तालाब का सौंदर्य भी खराब हो रहा है। अवैध खननकारियों की ओर से तालाब में असमान खुदाई करने के कारण यहां गहरे गड्ढ़े भी हो गए है। यदि इस तालाब का संरक्षण किया जाता है, तो पेयजल स्त्रोत के रूप में बारिश के दौरान जमा होने वाले पानी का उपयोग लिया जा सकता है।
जमींदोज हो रही कोटवाली नाडी
फलसूण्ड. गांव के दक्षिण छोर पर वर्षों पुरानी कोटवाली नाडी उपेक्षा के चलते जमींदोज होती जा रही है। इस नाडी का निर्माण फलसूण्ड गांव की स्थापना से पूर्व करवाया गया था। इस नाडी में बारिश के दौरान जमा होने वाले पानी का उपयोग ग्रामीणों व पशुधन की ओर से पेयजल के रूप में लिया जाता था। गत कुछ वर्षों से नाडी पर उपेक्षा का ग्रहण ऐसा लगा कि अब नाडी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है। इस नाडी की क्षमता करीब 20 फीट है। बारिश के दौरान यह नाडी लबालब हो जाती है। गत कुछ वर्षों से खुदाई नहीं होने के कारण तालाब के पायतन में रेत जमा पड़ी है। सफाई नहीं होने के कारण यहां कचरे के ढेर लगे पड़े है तथा पायतन व आगोर में झाडिय़ां लग गई है। नाडी के आगोर में ग्रामीणों की ओर से अतिक्र्रमण कर लिए जाने से पानी की आवक भी कम हो गई है। यदि सरकार की ओर से तालाब की देखरेख कर सारसंभाल की जाती है, तो इसके दिन फिर सकते है।
ढंढ़ नाडी के पायतन में जमा हो गई रेत
लाठी. क्षेत्र के भादरिया फांटा के पास स्थित 60-70 वर्ष पुरानी ढंढ़ नाडी उपेक्षा का शिकार है। इस नाडी की भराव क्षमता 15 फीट है। विशेष रूप से इस नाडी केे पानी का उपयोग धोलिया के ग्रामीणों व पशुधन की ओर से किया जाता था। यहां प्रवासी पक्षियों की भी अच्छी आवक होती है। नाडी की गत लम्बे समय से देखरेख नहीं होने के कारण नाडी के पायतन में रेत जमा हो गई है। इसके अलावा आगोर व पायतन में बबूल की झाडिय़ां लग जाने के साथ कचरे व गंदगी के ढेर लगे पड़े है।
सादोलाई नाडी की नहीं बदली किस्तम
नोख. गांव में स्थित सादोलाई नाडी का निर्माण 500 वर्ष पूर्व नगसिंह जसोड़ भाटी की ओर से करवाया गया था। पूर्व में इसका नाम नगोलाई नाडी था, जो कालांतर में सादोलाई नाडी हो गया। इस नाडी में जलभराव से आसपास के कुंओं में जलस्तर बढ़ता है। नाडी व कुंओं के पानी से आसपास क्षेत्र का पशुधन भी अपनी प्यास बुझाता था। उपेक्षा के चलते नाडी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है। सरकार व प्रशासन की ओर से नाडी के उद्धार को लेकर कोई प्रयास नहीं किए जाने के कारण पायतन में रेत जमा पड़ी है। अव्यवस्थित खुदाई के कारण जगह-जगह गहरे गड्ढ़े हो गए है। नाडी के आसपास झाडिय़ां लग जाने से पानी की आवक भी अवरुद्ध हो रही है।
रावली नाडी पर अवैध खनन, बिगड़ रही सूरत
नाचना. गांव के पूर्व-दक्षिण दिशा में स्थित रावली नाडी पर सरकार की ओर से करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है। गांव में बारिश के पानी के संग्रहण को लेकर एकमात्र रावली नाडी स्थित है। इस नाडी का निर्माण वर्षों पूर्व नाचना की स्थापना के समय तत्कालीन जागीरदार केसरसिंह की ओर से करवाया गया था। इस नाडी को मुख्य परंपरागत पेयजल स्त्रोत के रूप में माना जाता था और क्षेत्र के ग्रामीण व पशुधन इसी नाडी के पानी का उपयोग करते थे। इस नाडी के आगोर में भू-माफियाओं की ओर से अतिक्रमण किए जा रहे है। इसके अलावा पायतन में अथाह रेत का भण्डार है। यहां अवैध खनन से अव्यवस्थित खुदाई किए जाने के कारण जगह-जगह गड्ढ़े हो गए है। सरकारी उपेक्षा के चलते पायतन में गंदगी व कचरा जमा पड़ा है। यहां खुदाई के नाम पर सरकार की ओर से करोड़ों रुपए खर्च भी किए गए, लेकिन यहां गंदगी, कचरे के ढेर व झाडिय़ों के कारण सौंदर्य खराब हो रहा है।

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