सुविधाओं को तरसता अंग्रेजों के जमाने का रेलवे स्टेशन
जैसलमेरPublished: Nov 17, 2020 07:36:44 pm
– जिले का सबसे पुराने स्टेशन पर विकास की दरकार- यात्रियों को हो रही है परेशानी
सुविधाओं को तरसता अंग्रेजों के जमाने का रेलवे स्टेशन
पोकरण. यूं तो सरकार की ओर से अंग्रेजों के जमाने के कई हेरिटेज स्थलों, ऐतिहासिक जगहों को संरक्षित व सुरक्षित करने के प्रयास किए जाते है, लेकिन पोकरण में वर्ष 1938 में निर्मित रेलवे स्टेशन आज भी सुविधाओं का इंतजार कर रहा है। जिले के सबसे पुराने पोकरण रेलवे स्टेशन पर आज भी छाया, पानी जैसी सुविधाओं का नितांत अभाव है। बावजूद इसके रेलवे विभाग की ओर से यहां जनसुविधाओं व स्टेशन विकास को लेकर नजरें इनायत नहीं की जा रही है। जिससे यहां से सफर करने वाले यात्रियों को परेशानी हो रही है। वर्तमान में कोरोना संक्रमण की महामारी के कारण रेलों का आवागमन ठप है। अन्य दिनों में स्थानीय रेलवे स्टेशन से प्रतिदिन आधा दर्जन रेलों का आवागमन होता है। जिसमें सैंकड़ों यात्री सफर करते है। बाबा रामदेव के गुरु बालीनाथ महाराज का आश्रम पोकरण में स्थित होने तथा यहां से पांच किमी दूर उत्तर दिशा में भैरव राक्षस की गुफा व बाबा रामदेव के इतिहास से जुड़े कई स्थल, जिसमें पोकरण फोर्ट, बाबा की कोटड़ी, रामदेवसर तालाब आदि कई स्थल यहां स्थित है। इसके अलावा पोकरण फिल्ड फायरिंग, सीमा सुरक्षा बल मुख्यालय, आर्मी हेडक्वार्टर होने के कारण यहां से प्रतिदिन बड़ी संख्या में सैनिक भी सफर करते है, लेकिन रेलवे स्टेशन पर छाया, पानी आदि की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण इन यात्रियों को परेशानी हो रही है।
पेड़ों की छांव का सहारा
स्थानीय रेलवे स्टेशन पर पर्याप्त छाया की व्यवस्था नहीं है। हालांकि कुछ वर्ष पूर्व रेलवे विभाग की ओर से यहां 30-35 मीटर लम्बे एक शेड का निर्माण करवाया गया था। यह शेड आम दिनों में यात्रियों के लिए पर्याप्त साबित होता है, लेकिन बाबा रामदेव के अंतरप्रांतीय ***** मेले के दौरान यहां प्रतिदिन आने वाले हजारों यात्रियों, सर्दी के मौसम में सेना के जवानों के आवागमन अथवा कई बार भीड़ बढ जाने के दौरान अपर्याप्त साबित होता है। छाया के लिए निर्मित इस शेड में पंखों की व्यवस्था नहीं होने के कारण स्टेशन पर आने वाले यात्रियों को यहां स्थित पेड़ों की ठण्डी छांव में बैठकर विश्राम करना पड़ता है। इसी प्रकार पानी के लिए भी पूर्व में लगाई गई करीब आधा दर्जन सार्वजनिक टोटियां अधिक समय बंद रहती है। इनमें गर्म पानी की आपूर्ति होती है, जो पीने लायक नहीं होता है। रेलवे स्टेशन पर प्याऊ का भी अभाव है।
क्षतिग्रस्त पड़े है भवन
स्थानीय रेलवे स्टेशन की स्थापना आजादी से पूर्व 1938 में की गई थी। उस समय मारवाड़ स्टेट की रेल मात्र पोकरण तक आती थी तथा उत्तर पश्चिम रेलवे का यह अंतिम स्टेशन हुआ करता था। उस समय कोयले व पानी के इंजिन चलते थे तथा रेल को संचालन करने के लिए यहां लोकोशेड, पानी की पर्याप्त व्यवस्था की गई थी। यहां सैंकड़ों की संख्या में कार्यरत कार्मिकों के लिए विभाग की ओर से आवासों का भी निर्माण करवाया गया था। अंतिम स्टेशन होने के कारण यहां रनिंग रूम, रेलवे अस्पताल व विश्राम गृह की भी पर्याप्त व्यवस्था की गई थी, लेकिन धीरे धीरे समय के बदलाव के साथ डीजल के इंजिन आ जाने के कारण लोकोशेड बंद कर दिया गया। फलस्वरूप धीरे धीरे कर्मचारियों की कमी हो जाने के कारण अस्पताल, विश्राम गृह, रनिंग रूम आदि भी बंद हो गए। ऐसे में रेलवे की ओर से निर्माण करवाए गए दर्जनों आवास भी अब बेकार पड़े है।