आसमान छूती महंगाई के दौर में पैराटीचर्स को घर की गाड़ी चलाना मुश्किल होता जा रहा है। आटा, दाल, घी, तेल व दूध-दही समेत सभी आवश्यक वस्तुओं के बढ़ते दामों को देखते हुए परिवार के भरण-पोषण में पसीना आ रहा है। समय की पाबंदी होने से पैराटीचर्स कोई दूसरा कार्य भी नहीं कर सकते। हालांकि सरकार की ओर से समय-समय पर मानदेय बढाया जाता है, लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। वर्तमान में इन्हें प्रतिदिन 275 रुपए का भुगतान किया जा रहा है। ऐसे में पैराटीचर्स सरकार की अनुबंध नीति के पाटों के बीच पिसने को मजबूर है।
ये जिम्मेदारी भी
मदरसा पैराटीचर्स को मदरसों में शिक्षण करवाने के साथ ही अन्य कार्य भी करने पड़ते है। सरकारी कार्यक्रमों के प्रचार प्रसार, पोषाहार, साक्षरता कार्यक्रम, पल्स पोलियो, बाल स्वास्थ्य मिशन सहित मदरसों में शिक्षण सामग्री पहुंचाने जैसे कार्य भी उन्हें अपने स्तर पर करने पड़ रहे है। जिससे उन्हें परेशानी हो रही है तथा अल्प मानदेय में कार्य करने में भी पसीना छूट रहा है।
कर रहे मांग
सरकार के जनप्रतिनिधियों को लगातार ज्ञापन प्रेषित कर मानदेय बढ़ाने व स्थायी करने की मांग की जा रही है। महंगाई के इस दौर में अल्पमानदेय में शिक्षण करवाना मुश्किल हो रहा है।
-मंगलखां, शिक्षा सहयोगी मदरसा तालीमुल इस्लाम, सेलवी।