जैसलमेर

Jaisalmer- जैसलमेर के प्रति तंत्र की उदासीनता का जीवंत प्रतीक क्लॉक टावर

– पिछले कई वर्षों से हनुमान चौराहा जैसे व्यस्ततम इलाके में अटकी है ‘विकास की सुइयां’- उपहास का विषय बन रही बंद घडिय़ां

जैसलमेरSep 19, 2017 / 10:12 pm

jitendra changani

क्लॉक टावर में बंद घडिय़ा।

जैसलमेर . जैसलमेर के सबसे व्यस्त और महत्वपूर्ण हनुमान चौराहा पर नगरपरिषद की ओर से स्थापित किया गया क्लॉक टावर परिषद के साथ जिला प्रशासन की शहर के प्रति उदासीनता का प्रतीक बन गया है। पिछले करीब पांच-छह वर्षों से टावर पर चारों दिशाओं में लगी घडिय़ों की सुइयां अटकी हुई हैं। जिन्हें अब लाइलाज मानकर दुरुस्त करवाने तक की कोशिश नहीं की जा रही है। जैसलमेर भ्रमण पर आने वाला प्रत्येक सैलानी इस चौराहा से होकर अवश्य गुजरता है। इसके अलावा कलक्ट्रेट से लेकर जिला अस्पताल और अन्य सभी महत्वपूर्ण सरकारी महकमे व अधिकारियों के निवास स्थान इसी क्षेत्र में आए हुए हैं।
स्थापना से ही समस्याग्रस्त
शहर के हनुमान चौराहा पर करीब एक दशक पहले तत्कालीन नगरपालिका की ओर से स्थापित किया गया यह क्लॉक टावर स्थापना के बाद से ही समस्याओं में घिर गया। पहले-पहल चारों घडिय़ों का समय आगे-पीछे हुआ करता था। उन्हें दुरुस्त करवाने की जितनी कोशिश की गई, घडिय़ां उतनी ही बिगड़ती गई। आखिरकार स्थानीय निकाय ने हाथ खड़े कर दिए। पिछले करीब पांच-छह वर्षों से तो सारी घडिय़ां ठप ही हो चुकी हैं।
लाखों की राशि हुई खर्च
गोपीकिशन मेहरा के नगरपालिका अध्यक्ष रहने के दौरान यह धातु से निर्मित क्लॉक टावर स्थापित किया गया। जानकारी के अनुसार उस समय इस टावर पर चार लाख रुपए खर्च किए गए। टावर स्थापित होने के बाद से इसमें लगी चारों घडिय़ां कभी एक साथ सही समय नहीं बता सकी। उस समय सभी घडिय़ां अलग-अलग समय बताती। जिसका मजाक भी शहर में खूब बना। कई बार अखबारों की सुर्खियां बने इस क्लॉक टावर को अब ठीक करवाने की मानसिकता ही नगरपरिषद ने तज दी है।
बंद घडिय़ों से यह भी दिक्कत
हनुमान चौराहा जैसे मुख्य स्थान पर क्लॉक टावर की बंद घडिय़ां प्रशासनिक शिथिलता का उदाहरण तो है ही, कई लोग इसे वास्तुदोष से भी जोडकऱ देखते हैं। घर या दफ्तर में कहीं भी लगी घड़ी हो तो उसे तत्काल शुरू करवाने या हटवाने की सलाह वास्तु विशेषज्ञ देते हैं। ऐसे में वास्तु में विश्वास रखने वाले लोग शहर के हृदय स्थल में एक साथ चार बंद घडिय़ों को शहर के विकास व सौन्दर्य को ग्रहण लगाने के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। परिषद से जुड़े कार्मिकों ने बताया कि कोई स्थानीय कारीगर इन घडिय़ों को ठीक करने को तैयार नहीं है। यह और बात है कि परिषद ने बाहरी कारीगरों से जाने क्यों सम्पर्क नहीं किया। आखिर लाखों की लागत से बना टावर के नकारा होने का मसला क्यों जिम्मेदारों के लिए बड़ी बात नहीं है?
फैक्ट फाइल –
– 04 लाख की लागत से बना क्लॉक टावर
-06 वर्ष से सभी घडिय़ां ठप
-20 हजार से अधिक लोग यहां से करते हैं आवाजाही
बाहरी कारीगर से दुरुस्त करवाएंगे
क्लॉक टावर की घडिय़ों को दुरुस्त करने के लिए स्थानीय कारीगरों से सम्पर्क किया, लेकिन उनमें से कोई तैयार नहीं हुआ। आने वाले दिनों में बाहर से कारीगर को बुलाकर इसे ठीक करवाने के प्रयास किए जाएंगे।
– राजीव कश्यप, सहायक अभियंता, नगरपरिषद, जैसलमेर

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