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सरहद पर तनोट माता की कृपा:दुश्मन के बम भी यहां हो गए नतमस्तक

locationजैसलमेरPublished: Jan 25, 2020 08:43:33 pm

Submitted by:

Deepak Vyas

जैसलमेर. सरहदी क्षेत्र में स्थित तनोट राय मन्दिर आमजन की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। भारत-पाकिस्तान के 196 5 व 1971 के युद्ध के बाद मंदिर ने विशेष ख्याति बढ़ी है। तनोट माता को रुमाल वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है।

Enemy bombs also fell at tanot mata tample in jaisalmer

सरहद पर तनोट माता की कृपा:दुश्मन के बम भी यहां हो गए नतमस्तक

जैसलमेर. सरहदी क्षेत्र में स्थित तनोट राय मन्दिर आमजन की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। भारत-पाकिस्तान के 196 5 व 1971 के युद्ध के बाद मंदिर ने विशेष ख्याति बढ़ी है। तनोट माता को रुमाल वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। माता तनोट के प्रति प्रगाढ़ आस्था रखने वाले भक्त मंदिर में रुमाल बांधकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु माता का आभार व्यक्त करने वापिस दर्शनार्थ आते है और रुमाल खोलते है। यह मान्यता भी कई सालों से चल रही है। इस परम्परा का आम लोगों के साथ माता के दर्शनार्थ तनोट आने वाले मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, सेना व सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी व जवान भी निर्वहन करते है। माता तनोट राय के प्रति बढ़ी आस्था का प्रमाण मंदिर में लाखों की संख्या में बंधे रुमाल बयां करते है।
हर किसी को भरोसा है कि माता अपने बेटों को दु:खी नहीं देख सकती और उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। पाक सीमा से सटे व जैसलमेर से 120 किलोमीटर दूर तनोट क्षेत्र में स्थित माता के मंदिर में 1965 व 1971 के युद्धों में पाकिस्तान की ओर से गिराए गए बमों में से एक भी बम यहां नहीं फूटा। भारत-पाक सीमा पर सुरक्षा बल की तनोट चौकी पर बना मातेश्वरी तनोटराय मंदिर के 1965 और 1971 में युद्ध के दौरान हुए चमत्कारों से आज भी सीमा सुरक्षा बल के जवान और अधिकारी अभिभूत हैं। यह मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं की भी श्रद्धा का भी केन्द्र है। देश भर से श्रद्धालु नत मस्तक होने पहुंचते हैं। पाक सीमा से सटे जैसलमेर में दुश्मन ने बम बरसाकर लोगों को दहशत में डालने और नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन युद्ध में मंदिर के आस पास करीब तीन हजार बम बरसाए और करीब साढ़े चार सौ गोले मंदिर परिसर में गिरे बम फटे ही नहीं ये बम आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है। तनोट को भाटी राजपूत राव तनुजी ने संवत्ï 787 को माघ पूर्णिमा को बसाया था और यहां पर ताना माता का मंदिर बनवाया था, जो वर्तमान में तनोटराय मातेश्वरी के नाम से जाना जाता है। मन्दिर की पूजा-अर्चना सीसुब के जवान ही करते हैं। तनोट क्षेत्र सामरिक दृष्टिï से काफी महत्वपूर्ण है। नवरात्रि के मौके पर तनोट मंदिर में आस्था का ज्वार उमड़ता है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शनार्थ पहुंचते है और मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं। हर दिन दोपहर 12 बजे व शाम 7 बजे आरती की जाती है। विख्यात माता तनोट के मंदिर में होने वाली तीनों आरतियों में समूचा मंदिर परिसर श्रद्धालुओं से भर जाता है और मंदिर में आरती के बाद परिसर मातारानी के जयकारों से गूंज जाता है। इन दिनों कई भक्त पैदल यात्रा कर माता के दरबार में पहुंच रहे है, जिससे तनोट सडक़ मार्ग पर पैदल यात्रियों की रेलमपेल बनी हुई है।
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