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गड़ीसर चौराहा... मैं हूं प्रवेश द्वार ... मेरी बेकद्री क्यों मैं जैसलमेर बोल रहा हूं

locationजैसलमेरPublished: Sep 22, 2022 10:21:58 pm

Submitted by:

Deepak Vyas

गड़ीसर चौराहा... मैं हूं प्रवेश द्वार ... मेरी बेकद्री क्यों

मैं जैसलमेर बोल रहा हूं

गड़ीसर चौराहा... मैं हूं प्रवेश द्वार ... मेरी बेकद्री क्यों  मैं जैसलमेर बोल रहा हूं
गड़ीसर चौराहा... मैं हूं प्रवेश द्वार ... मेरी बेकद्री क्यों मैं जैसलमेर बोल रहा हूं
रतन दवे जैसलमेर .
मैं जैसलमेर हूं... जैसाण जिसका नाम लेते ही विश्व के किसी कोने में बैठे पर्यटन की थोड़ी बहुत इच्छा, समझ और चाहत रखने वालों की आंखों में एकदम से तैर जाता हूं। जिन्होंने देखा है दुबारा आना चाहते है और जो अब तक नहीं आए उनके मन में है कि एक बार आ जाऊं। सदियों पुरानी मेरी विरासत, हवेलियां, मेरा भूगोल, रेगिस्तान, एकांत और शांत वातावरण, नक्काशी, पीत पत्थरों का आकर्षण, राजा-महाराजाओं की कहानियां और ऐतिहासिक थातियां यहां लाखों पर्यटकों खींच लाती है। आओनी पधारो म्हारे देस की मधुर स्वरलहरियों से गाते मांगणिहार, लंगा और लोक गायकों की धुनों पर तो दिल धड़कते और थिरकते है। साफा तेवटा, बांकड़ली मूंछे-ठसक वाली पगरखियां और बांके जवान जैसलमेर के लोगों को देखकर ही देशभर में अंदाज लग जाता है कि यह जैसाण के लोग है। सम के धोरे, गड़ीसर का तालाब, अमरसागर का बाग, पटवा हवेली और सबको सम्मोहित करता मेरा अपना सोनार किला.. मानो मेरी खूबसूरती के वो चांद-सितारे है, जिनको निहारने आए लोगों का खुले आसमान नीचे बसा मैं जैसलमेर किसी स्वर्णनगरी नजर आता हूं। चांदी सी चमकती रेत पर सोनाळी आभा अद्वितीय है। बखानों की इस पूरी बानगी में पूरा इतिहास नजर आता है लेकिन वर्तमान के भरोसे मुझे टीस होने लगी है, स्वच्छता और सौंदर्यकरण को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद यहां अब बेतरतीब होती व्यवस्थाएं मझे दुरूख देने लगी है। मेरे अपने गडीसर रोड़ के चौराहे से मेरा प्रवेश होता है। खूबसूरत और आकर्षक चौराहा हों तो सच मानिए आने वाले पर्यटकों को प्रवेश से ही लगे कि वे सोने की धरती पर कदम रख रहे है, लेकिन यहां अब चारों तरफ गंदगी का आलम होने लगा है। सफाई का इंतजाम तो इतना पोचा है कि लगता ही नहीं कि यह स्वर्णनगरी का मुख्य प्रवेश द्वार है। जरूरी है कि यहां पर्यटको की जवाबदेही को शानदार घुमटीए संपर्क केन्द्रए पूर्णतया जैसलमेरी वेशभूषा में कुछ गार्ड या कार्मिक तैनात हों और चौराहे के पास खड़ा होकर हर पर्यटक सेल्फी लेते हुए इतराए कि वो जैसलमेर आ चुका है। पास में ही बगीचा है, उस बगीचे को इसका हिस्सा बनाकर सजाया, संवारा जाए और यहां ऐसी हरियाली, फव्वारे और सुविधाएं हों कि पर्यटकों को यहां आकर सकून महसूस हों। एक तरफ सामने गडीसर तालाब है। जैसलमेर आने वाला हर पर्यटक यहां पहुंचता है। तालाब के भीतर प्रवेश करने तक की जगह पर अब कुछ ठीक इंतजाम है। यहां पत्थर तो बोलते है लेकिन प्रवेश स्थान पर जवाब देने को कार्मिक कहीं नहीं है। यही तो जैसलमेर की अपणायत होगी कि आने वाले को जवाब देने वाले लोग यहां खड़े किए जाए। इसी गड़ीसर के सामने दूसरी ओर जैसलमेर शहर में प्रवेश होता है। शहर के इन दोनों प्रवेश द्वार की सड़कों के दोनों तरफ स्वच्छता के अभाव को खत्म कर सौंदर्यकरण की जीती-जागती तस्वीर उकेर दी जाए तो सोने पर सुहागा हों। सच मानिए मैं जैसलमेर इसलिए बोल रहा हूं कि मुझे लगता है कि अभी से प्रयास हुए तो मेरे यहां आने वाली दिपावली मेरे आंगन में पर्यटकों को भर देगी। सर्दियों में गर्मजोशी से हर ओर एक संदेश जाएगा कि चलो जैसाण.. यहां अब बहुत बदलाव हुआ है। पर्यटन यही तो मेरे फलने-फूलने का जरिया है। मेरे यहां रहने वाला हर नागरिक यही तो चाहता है कि उसके घर में मेहमानों, पावणो की रम्मक-झम्मक हों। वो यहां केवल मुझे देखने आते है और उनके आने से करोड़ों रुपए की आय होती है। छोटे ठेलेवाले से बड़ी होटलवाले के घर खुशियां चहकती है। चेहरे खिल उठते है और हर कोई प्रार्थना करता है...सीजन बहुत ब बढिय़ा निकले। बसए मेरा भी यही प्रयास है कि शासन-प्रशासन-नगरपरिषद और हर आम-ओ-खास जैसलमेरी दिल से मेरे साथ जुड़ जाए। हम सब एक खूबसूरत जैसाण के साथ कहें, सोने री धरती अठै, चांदी रो आसमां...केसरिया बालम आवोनी पधारो म्हारे देस।
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