इस क्षेत्र की दर्जनों बेरियां, कुएं, तालाब, नाडी का उपयोग नहीं होने से ये रेत से अट गई हैं। कई जगह इनके बबूल की झाडिय़ों से घिर जाने से पारंपरिक पेयजल स्रोत और इनके लिए पुराने समय आवंटन आगोरों पर अतिक्रमण होने से अब यह सिमट कर गए हैं। यदि इन सभी से मुक्त करवा दिया जाए, तो पुन: ये पेयजल स्रोत के रूप में विकसित हो सकते हैं।
रातभर करते थे चौकीदारी
बुजुर्गों का कहना है कि पहले पानी के लिए लम्बा सफर तय करना पड़ता था। बाद में बेरियां बनाई तो 10 फीट तक गहरा पानी मिल गया। इन बेरियों पर पानी भरने के लिए दिनभर महिलाओं का जमघट रहता था। वहीं रात को पुरुष इन कुओं व बेरियों की चौकीदारी करते थे। सुबह जो पानी इक_ा होता उसे बारी-बारी से भरते थे, लेकिन अब इन स्रोतों का रख-रखाव तक नहीं हो रहा।