जैसलमेर

Jaisalmer video- गरमा-गरम नाश्ते के साथ पेट में पहुंच रहा ‘खतरा’

-जैसलमेर समेत पूरे जिले में प्रिंटेड कागज में परोसी जा रही चाट-मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा

जैसलमेरAug 19, 2017 / 06:48 pm

jitendra changani

जैसलमेर में नाश्ते के साथ पेट में पहुंच रही प्रिंटेड कागजों की स्याही।

जैसलमेर. यदि आप बाजार में गरमा-गरम नाश्ता करने के शौकीन हैं तो यह खबर आपके लिए ही है। प्रिंटेड अखबार के पन्नों पर परोसी जाने वाली गरम कचौरी, पोहे, मिर्ची बड़े, चाट-पकोड़ी आदि को खाने वाला अनजाने में स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक रसायन भी उदरस्थ कर रहे हैं क्योंकि छपे हुए अखबार की स्याही भी उनके पेट में कहीं न कहीं तब पहुंच रही होती है। जैसलमेर शहर सहित जिले भर में गरम नमकीन के विक्रेता चाहे वे दुकानदार हो या ठेला चलाने वाले, ग्राहक को अखबारी पन्नों और उसी पन्नों से बनने वाले लिफाफों में धड़ल्ले से डाल कर बेच रहे हैं। शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों में कई बार तो गरम नमकीन वस्तुओं पर प्रिंटेड कागज पर लिखे अक्षर तक छप जाते है। ऐसे कागज पर गरमा-गरम नाश्ता डाले जाने पर तथा उसमें चटनी आदि तरल वस्तु षामिल होने से गरम तेल के साथ अखबार में छपे अक्षरों की स्याही घुल कर नाश्ते में लग जाती है। वहीं हमारे पेट में चली जाती है। यह स्याही स्वास्थ्य के लिए घातक है।
आंतरिक प्रणाली के लिए हानिप्रद
जानकारी के अनुसार अखबार की छपाई के दौरान स्याही को पतला करने के लिए मिलाया जाने वाला तरल पदार्थ बेंजीन इस स्याही में घुला रहता है। वह खाद्य पदार्थ के साथ जाकर भीतरी आंतों व नाडिय़ों तक को गला सकता है। इन पर पाया जाने वाला साल्वेट्स व ग्रेफाइट आसानी से भोजन में चला जाता है, जिससे पाचन क्रिया पर बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा यह इंसान की किडनियों तक को खराब कर सकता है। अखबारी स्याही में बायोएक्टिव तत्व पाये जाते है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इतने बड़े खतरे के बावजूद हजारों लोग प्रतिदिन अखबार के कागज पर नाष्ता कर रहे हैं। दुकानदार व ठेले वाले सस्ते के चक्कर में प्रिंटेड कागज या उनसे बने लिफाफों का इस्तेमाल सामग्री परोसने अथवा पैकिंग में कर रहे हैं।जबकि पूर्व के वर्षों में सादा खाकी पन्नों का इस्तेमाल इस काम में किया जाता था।
बच्चों का लंच बॉक्स भी जद में
प्रिंटेड कागज में गरम खाद्य वस्तुओं का खतरा बाजारों तक ही सीमित नहीं है। अनेक महिलाएं अपने बच्चों के स्कूली लंच बॉक्स में उनकी ओर से ले जाया जाने वाले खाने की सामग्री अखबार के पन्ने में लपेट कर डाल देती हैं। बच्चे वह लंच बॉक्स करीब तीन घंटे बाद स्कूल में खोलकर खाते हैं।तब तक पुड़ी, पोहे आदि का नाश्ता अखबार में लिपटा रहता है। ऐसे में ये हानिकारक रसायन भोजन में घुल कर सीधे बच्चों के शरीर में प्रवेष कर रहे हैं।
कुछ ने की अच्छी पहल
जैसलमेर शहर में कई गोलगप्पे वाले आजकल प्रिंटेड कागज की बजाय दोने में डाल कर दे रहे हैं। कुछ बड़ी नाश्ते की दुकान वाले भी नाश्ता दोने में डालकर दे रहे हैं। नाश्ते वालों के अलावा सब्जी बेचने वाले भी आजकल जो लिफाफा काम में ले रहे हैं, वह भी छपे हुए अखबार के कागज से बना है। जब सब्जियां गीली होती है तो स्याही इन सब्जियों में चिपक जाती है यहां भी स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है।
फैक्ट फाइल
-150 से ज्यादा दुकानों प ठेलों में उपयोग लिए जाते हैं प्रिंटेड कागज
-5000 से ज्यादा लोग प्रतिदिन करते हैं बाजार में नाश्ता
-10 वर्षों में बढ़ा है अखबारी कागज का चलन
-15 रुपए प्रति किलो तक बिकती है प्रिंटेड कागज की रद्दी
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक
अखबार के कागज में नाश्ता करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा अखबार में नाश्ता करने से भोजन में घुलने वाले रसायनों से पाचन क्रिया प्रभावित होती है। हमारी किडनी पर भी इसका बुरा असर पड़ता है इसलिए नाश्ता सादे कागज से बनी प्लेट व पत्तल आदि में करना लाभकारी रहेगा।
– डॉ. संजय व्यास, चिकित्सक जैसलमेर
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