कहानी :
फिल्म की कहानी उड़ीसा के भुवनेश्वर से शुरू होती है, जहां कोच बने बिरंची दास (मनोज बाजपेयी) अपने आसपास के हुनरमंद बच्चों को अपने घर में रखता है और जुडो सीखने व उनके हुनर में निखार लाने के लिए हर संभव प्रयास करता है। फिर एक दिन बिरंची को एक लड़का बुधिया सिंह (मयूर पटोले) मिलता है, जिसे वह अपने साथ ले जाता है और उसकी गरीब मां सुकांता (तिल्लोतमा शोम) को एक स्कूल की साफ-सफाई व्यवस्था में नौकरी दिला देता है। वह अपनी पत्नी गीता (श्रुति मराठे) के विरोध के बावजूद उसे अपने घर में रखता है। बुधिया बिल्कुल गंवार व ठेंठ गांव का रहने वाला होता है और बिरंची के घर में मौजूद एक बच्चे को गाली दे देता है, जिसे बिरंची और उसकी पत्नी सुन लेते हैं। फिर सजा के तौर पर दोनों उस बच्चे को दौडऩे के लिए कह कर चले जाते हैं और रोजमर्रा के काम निपटा कर जब दोनों शाम को वापस घर लौटते हैं तो भी वह दौड़ ही रहा होता है। यह देखकर बिरंची दास उसके गॉड गिफ्टेड हुनर को पहचान जाता है और उसकी दौड़ को लोगों को दिखाने के लिए एक दिन बुधिया को सबके सामने कर देता है।मनोज बाजपेयी ने अपने किरदार को निभाने के लिए हर संभव प्रयास किया है। उन्होंने साबित कर दिया है कि वाकई में उनके ऊपर हर तरह के रोल सूट हो जाया करते हैं। साथ ही अपने मेहनत और लगन के चलते वे किरदार को जीवंत करते दिखाई दिए। मयूर पटोले बुधिया सिंह की भूमिका में फिट रहे, फिल्म के दौरान उनके जहन में एक गजब तरह की एनर्जी देखने काे मिली। तिल्लोतमा शोम और श्रुति मराठे ने भी अपने-अपने किरदारों बखूबी निभाया है। साथ ही छाया कदम, गोपाल सिंह, प्रसाद पंडित, गजरात राव और राजन भिसे अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में काफी हद तक सफल से नजर आए। इसके अलावा पुष्कराज चिरपुटकर और सयाली पाठक ने रिपोर्टर भी भूमिका को सही अंदाज व बेहतरीन लहजे में अदा किया है।
बी-टाउन में नए निर्देशक ने बुधिया सिंह की कहानी को एक तरह से सच्चाई की तरह पेश करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी है। फिल्म को जीवंत करने के लिए उन्होंने हर तरह के प्रयोग किए हैं, जिसमें वे कई मायनों में सफल भी रहे। हालांकि वे फिल्म में ड्रामे का तड़का लगाते नजर आए, जिसके कारण वे अपनी बात कह पाने में कहीं-कहीं पर थोड़ा सा डगमगाते दिखाई दिए। उन्होंने अपनी पहली ही पारी में इंडस्ट्री को वाकई में कुछ नया परोसने की पूरी कोशिश की है, इसीलिए वे ऑडियंस की वाहवाही लूटने में सफल रहे। हालांकि फिल्म आखिर तक ऑडियंश को बांधे रखने में तो कुछ हद तक सफल सी दिखी, लेकिन कुछ सीन्स ऐसे भी रहे, जिनका निर्देशक कुछ अखरता सा नजर आया।
बहरहाल, निर्देशक पाधी की पहली ही फिल्म में गजब पकड़ की तारीफ की जा सकती है, लेकिन अगर कॉमर्शिल और सिनेमेटोग्राफी अंदाज को छोड़ दिया जाए तो इस फिल्म की टेक्नोलॉजी में थोड़ी कमी सी नजर आई। इसके अलावा फिल्म को हकीकत से जोडऩे के लिए संगीत (सिद्धांत माथुर, ईशान छाबरा) ने ठीक-ठाक सुर देने का पूरा प्रयास किया।
छोटे बच्चे को एक प्रोफेशनल एथलीट की तरह देखने की चाहत रखने वाले और उसकी हकीकत जानने के प्रेमी थिएटरों की ओर बड़े आराम से रुख कर सकते हैं। आगे इच्छा आपकी…!
बैनर : वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, कोड रेड फिल्म्स
निर्माता : सुब्रत राय, गजराज राव, सुभामित्रा सेन
निर्देशक : सौमेंद्र पाधी
संगीतकार : सिद्धांत माथुर, ईशान छाबरा
स्टारकास्ट : मनोज बाजपेयी, मयूर पटोले, तिल्लोतमा शोम, श्रुति मराठे, छाया कदम, गोपाल सिंह, प्रसाद पंडित, गजरात राव, राजन भिसे, पुष्कराज चिरपुटकर, सयाली पाठकरेटिंग : दो स्टार