जैसलमेरPublished: Aug 28, 2023 08:44:53 pm
Deepak Vyas
आजादी से पहले जैसलमेर में आवागमन का एकमात्र जरिया ऊंट सवारी था। विकास की बयार बीसवी ं सदी में सातवें दशक के बाद ही इस शहर में बह सकी। दिलचस्प बात है कि जैसलमेर से बहुत पहले पोकरण रेल सेवा से जुड़ चुका था, क्योंकि वह पूर्व जोधपुर रियासत का हिस्सा था। उस जमाने में बाड़मेर व बीकानेर जाने मे जैसलमेरवासियों को 15 दिन तक का समय लग जाता।
जैसलमेर . आजादी से पहले जैसलमेर में आवागमन का एकमात्र जरिया ऊंट सवारी था। विकास की बयार बीसवी ं सदी में सातवें दशक के बाद ही इस शहर में बह सकी। दिलचस्प बात है कि जैसलमेर से बहुत पहले पोकरण रेल सेवा से जुड़ चुका था, क्योंकि वह पूर्व जोधपुर रियासत का हिस्सा था। उस जमाने में बाड़मेर व बीकानेर जाने मे जैसलमेरवासियों को 15 दिन तक का समय लग जाता।
भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध ने केंद्र और राज्य सरकारों का ध्यान जैसलमेर की ओर आकृष्ट करवाया। जनरल अयूब खान की सेना ने हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया। जैसलमेर के म्याजलार क्षेत्र तक पाक सेना पहुंच गई। बाद में सेना ने उन्हें खदेड़ दिया, लेकिन शासकों को सीमावर्ती जैसलमेर जिले की महत्ता का पता चला और विकास का पहिया फिर तेजी से घूमने लगा। सर्वप्रथम 70 के दशक में ट्रेन जैसलमेर पहुंची। सडक़ों का जाल बिछने लगा। पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में जैसलमेर सीमा पर दोनों देशों के बीच हुए युद्ध ने जिले में यातायात के साधनों की तीव्र जरूरत को और विस्तार से सरकारों के सामने रखा। उसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आकस्मिक भ्रमण एवं सोनार किले के बढ़ते आकर्षण ने जब पर्यटकों को आकर्षित करना शुरू किया तो विदेशी मुद्रा की आवश्यकता ने भारत सरकार को इस शहर के समुचित विकास के लिए प्रेरित किया।
इतिहास पर नजर
यह नगरी मध्यकाल में रियासती राजधानी थी, जो भारत को मध्य एशिया से मिलाती थी। आवागमन के साधन ऊंट व बैलगाडिय़ां थी, जो सिंधु नदी पार कर कारवां के रूप में जैसलमेर में पड़ाव डालते थे। मुगलकाल में शहंशाह हुमायूं का काफि ला यहां से गुजरा था, उससे पूर्व खिलजी शासकों ने भी जैसलमेर पर आक्रमण किया था। व्यापारिक केन्द्र होने से स्थापत्य कला से नगर का वैभवशाली स्वरूप बना, जो आज भी आकर्षित करता है। बीच के सौ वर्ष में जैसलमेर आर्थिक रूप से पिछड़ गया। ऐसी कठिनाई के दौर में भी जैसलमेर के मूल निवासी जो अन्य प्रदेशों में निवास करते थे, अपने परिवार के मांगलिक कार्यों हेतु जैसलमेर आते थे। बाड़मेर से ऊंटों पर या लोडिंग बसों में तीन रातों की यात्रा कर वे यहां पहुंचते थे। जैन तीर्थयात्री भी कठिनाइयां भुगतकर अपना मनोरथ पूर्ण करते थे। व्यापार एवं अन्य व्यवसाय न होने से जैसलमेर नगर की जनसंख्या जो पूर्व में तीस हजार थी घट कर पांच हजार रह गई। देश की स्वतंत्रता के बाद रियासतों के विलीनीकरण के बाद आवागमन के साधन बढऩे लगे, सडक़ से नगर जुड़ा, पेयजल की व्यवस्था व अन्य नागरिक सुविधाएं बढऩे से देश में जैसलमेर की प्रसिद्धि बढऩे लगी। वर्ष 1962-63 में जैसलमेर के सीमावर्ती क्षेत्र में प्राकृतिक गैस व तेल की खोज में फ्रांस की फेरोसिल कंपनी काम करने के लिए आई। कंपनी के अधिकारियों ने जैसलमेर नगर की स्थापत्य कला से प्रभावित होकर इसके संरक्षण के लिए भारत के तत्कालीन शिक्षा मंत्री प्रोफेसर नरूल हुसैन को पत्र लिखा तथा फ्रांस की पर्यटन संबंधी पुस्तकों में जैसलमेर का विवरण छपवाया। यहां से प्रारंभ होता है, जैसलमेर में विदेशी पर्यटन के आगमन का सिलसिला। विदेशी पर्यटकों के आकर्षण के साथ देसी जैन यात्रियों का आगमन बढ़ गया। बंगाल के फिल्मकार सत्यजीत राय ने ‘सोनार किला’ नामक फि ल्म बनाकर बंगाली पर्यटकों को जैसलमेर आने हेतु प्रेरित किया। राज्य सरकार द्वारा मरु मेले का आयोजन कर पर्यटकों को आकर्षित किया। सम, खुहड़ी के रेतीले धोरे, ऊंट की सवारी तथा देसी भोजन तथा मरु संगीत ने भी पर्यटन व्यवसाय में अपना योगदान दिया है। आकल फोसिल्स पार्क, पालीवालों का गांव कुलधरा, अमरसागर व लौद्रवा के जैन मंदिर आदि कई ऐतिहासिक स्थान पर्यटकों को रिझाते हैं।