सरपंची के लिए हर पंचायत में कड़ा संघर्ष
जैसलमेरPublished: Jan 08, 2020 05:06:52 pm
– दावेदारों ने गांव-ढाणियों में सम्पर्क तेज किया- गांवों में बैठकों और मान-मनुहार का दौर जारी
– दावेदारों ने गांव-ढाणियों में सम्पर्क तेज किया
जैसलमेर. ‘गांव की सरकार’ का मुखिया यानी ग्राम पंचायत का सरपंच बनने के लिए दावेदारों की ओर से दौड़धूप किए जाने के चलते सीमावर्ती जैसलमेर जिले के ग्रामीण अंचलों में इन दिनों माहौल पूरी तरह से चुनावमय हो चुका है। दावेदार पंचायत क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांव-ढाणियों में घर-घर जाकर दस्तक देना शुरू कर चुके हैं। वहीं गांवों में बैठकों के आयोजन अलग-अलग दावेदारों के पक्ष में माहौल बनाने के लिए हो रहे हैं। जिले में पंचायतीराज संस्थाओं की सबसे जमीनी संस्था ग्राम पंचायत के लिए चुनाव चार चरणों में १७, २२ और २९ जनवरी तथा २ फरवरी को करवाए जाने हैं। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा इसी महीने की गई, सरपंच पद के अधिकांश दावेदार तो पिछले माह आरक्षण और श्रेणियों का निर्धारण होने के बाद से सक्रिय हो चुके हैं।
समितियां और पंचायतों में बढ़ोतरी
जिले में इस बार राज्य सरकार की ओर से पंचायत व ब्लॉक क्षेत्रों का पुनर्सीमांकन व नवसृजन किए जाने से पंचायत समितियों व ग्राम पंचायतों की संख्या में इजाफा हो चुका है। पूर्व में जहां ३ समितियां जैसलमेर, सम और सांकड़ा थी, वहीं इस बार फतेहगढ़, नाचना, भणियाणा और मोहनगढ़ नई पंचायत समितियां बन चुकी हैं, जिसके बाद उनकी संख्या ७ हो गई। ऐसे ही जिले में १४० पंचायतों में २७ नई ग्राम पंचायतों के जुडऩे से इनकी संख्या भी १६७ हो चुकी है। वैसे जिले में पुनर्सीमांकन के दूसरे चरण में ३९ ग्राम पंचायतें और बननी थी, लेकिन उच्च न्यायालय के निर्णय से वे निरस्त हो गई।
कहीं चल रहे रसोड़े तो कहीं रियाण
जिले के पंचायत क्षेत्रों में चुनाव लडऩे के इच्छुक दावेदारों की ओर से कई गांवों में तो रसोड़े तक शुरू किए जा चुके हैं। जहां सुबह-शाम समर्थकों को भोजन करवाया जा रहा है। ऐसे ही अधिकांश गांवों में परम्परानुसार रियाण के दौर शुरू हो चुके हैं। पंचायत क्षेत्रों का पुनर्गठन होने से अनेक पंचायतों के क्षेत्रफल पहले के मुकाबले काफी छोटे हो गए हैं। हालांकि दूसरे चरण की पंचायतों के गठन पर न्यायालय का बे्रक लग जाने से अब भी सम, लखा, डांगरी, खुहड़ी, फूलिया आदि पंचायतें काफी बड़ी हैं। औसतन एक ग्राम पंचायत में ७-८ जमीनी दावेदार सरपंच पद के लिए मैदान में उतरे नजर आ रहे हैं तो सोशल मीडिया के जरिए दावेदारी करने वालों की संख्या इससे तीन गुना तक हो चुकी हैं।
निर्विरोध निर्वाचन की कवायद
ग्राम पंचायतों के वित्तीय और प्रशासनिक तौर पर अधिकार संपन्न बनने के चलते सरपंच पद अब अधिकांशत: कड़े संघर्ष के बाद ही किसी को मिलता है। ऐसे दौर में भी कई ग्राम पंचायतों में इस बार निर्विरोध निर्वाचन के लिए प्रयास तेज हुए हैं। सोशल मीडिया पर पिछले दिनों के दौरान देवीकोट, रूपसी, एकां पंचायतों में सरपंच पद के लिए निर्विरोध निर्वाचन तय होने की सूचनाएं प्रसारित हुई। हालांकि इसकी पुष्टि तो नामांकन पत्र प्रक्रिया के संपन्न होने के पश्चात ही हो सकेगी। अन्य कई पंचायतों में भी निर्विरोध चुनाव की कोशिशें पुरजोर ढंग से की जा रही हैं। वैसे आरक्षित वर्ग वाली पंचायतों में ही यह थोड़ा संभव दिखता है, सामान्य श्रेणी वाले क्षेत्रों में मुकाबला बहुत कड़ा होने की पूरी संभावना है।
ताउम्र पंचायतराज से जुड़े रहे चौधरी
सीमावर्ती जिले के भणियाणा निवासी स्व. खरताराम चौधरी सबसे लम्बे समय तक पंचायतराज संस्थाओं से जुड़े रहे। वे युवावस्था में पूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के प्रयासों से बनाए गए सामुदायिक विकास खंड के सदस्य बने। १९५९ में पंचायतीराज की स्थापना के पश्चात वे भणियाणा पंचायत के निरंतर सरपंच, वार्डपंच और पंचायत समिति सदस्य रहे। सरपंच पद एकाध बार को छोडक़र उनके अथवा परिवार के किसी सदस्य के पास ही रहा।
ऐसे भी रहे हैं उदाहरण
इसी प्रकार जब पंचायत चुनावों में जाति अथवा राजनीति आज जितनी हावी नहीं थी तब जाति के कम वोट होने के बावजूद मोहनगढ़ में अचलदास आचार्य, कीता में बाबूलाल सांवल, भू में धनराज व्यास और वैश्य समुदाय के जेठमल लोहारकी तथा चांदनमल भैंसड़ा के सरपंच बने। ऐसे ही गोङ्क्षवदलाल भूतड़ा लूणार, लक्ष्मीचंद सांवल नेहड़ाई, जीवनलाल बिसानी हाबूर के सरपंच रह चुके हैं। बताया जाता है कि पूर्व के समय गांवों में लोग इक_े होकर मौजीज व्यक्ति के गले में माला डाल कर उन्हें सरपंच बनाया करते। तब जाति का बाहुल्य मायने नहीं रखता था।