script‘जीवन में जितनी आवश्यकता प्राण वायु की, उतना ही धर्म भी आवश्यक’ | 'The more the life required of life, the more religion is necessary' | Patrika News

‘जीवन में जितनी आवश्यकता प्राण वायु की, उतना ही धर्म भी आवश्यक’

locationजैसलमेरPublished: Jul 04, 2020 08:42:54 pm

Submitted by:

Deepak Vyas

जैसलमेर. स्वर्णनगरी में चातुर्मासिक चतुर्दशी से प्रारंभ वर्षावास के पहले दिन आत्म वल्लभ सभा भवन में उपाध्याय प्रवर भुवन चंद्र महाराज ने व्याख्यानमाला में सर्वप्रथम मंगलाचरण किया। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि कोरोना काल प्रकृति की कठोरता में से एक है।

'जीवन में जितनी आवश्यकता प्राण वायु की, उतना ही धर्म भी आवश्यक'

‘जीवन में जितनी आवश्यकता प्राण वायु की, उतना ही धर्म भी आवश्यक’

जैसलमेर. स्वर्णनगरी में चातुर्मासिक चतुर्दशी से प्रारंभ वर्षावास के पहले दिन आत्म वल्लभ सभा भवन में उपाध्याय प्रवर भुवन चंद्र महाराज ने व्याख्यानमाला में सर्वप्रथम मंगलाचरण किया। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि कोरोना काल प्रकृति की कठोरता में से एक है। इस समय का सदुपयोग धर्म आराधना करके किया जा सकता है। जिन शासन में सभी व्यक्तियों के लिए धर्म आराधना की अलग-अलग पद्धतियां है, जिसे जो पद्धति उचित लगे, उस आधार पर वह अपनी जघन्य से उत्कृष्ट धर्म आराधना कर सकता है। जिन शासन में हर वर्ग, हर व्यक्ति, यहां तक की जीव मात्र के लिए परमात्मा ने मुक्ति मार्ग प्रशस्त किया है। उन्होंने कहा कि धर्म विहीन व्यक्ति जीवित होते हुए भी मृत के समान हैं। अत: जीवन में जितनी आवश्यकता प्राण वायु की है, उतना ही धर्म आवश्यक है द्य जहां अच्छाई होती है। उसके आसपास अच्छाई का ही वास होता है। जिस प्रकार खिले हुए फूल पर भ्रमर, तितलियां एवं अन्य पंछी मंडराते हैं, जबकि कांटो के आसपास कोई जाना भी पसंद नहीं करता। जिन शासन जीवन जीने की शैली है। अपने जीवन को किस प्रकार से उत्कृष्ट बनाना है, यही परमात्मा का मार्ग है। जिस प्रकार हमें समुद्र किनारे, बगीचे आदि में मन की प्रसन्नता की अनुभूति होती है, उसी प्रकार हमारे भीतर धर्म का वास होने पर प्रत्येक परिस्थिति में प्रसन्नता का अनुभव होगा। साध्वी निरागयशा महाराज ने बालक बालिकाओं को पूर्ण ईमानदारी से घर में रहकर आराधना कार्ड भरने के लिए प्रेरित किया। सरकारी नियमानुसार मास्क एवं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए आयोजित कार्यक्रम में साध्वी चारु यशा महाराज आदि ठाणा 8 की उपस्थिति के साथ श्रावक श्राविकाएं मौजूद थी। प्रभावना का लाभ ज्ञानचंद भूरचंद डूंगरवाल परिवार ने लिया। चातुर्मासिक चौदस पर आय िबल तप की आराधना एवं सायं को चौमासी प्रतिक्रमण किया गया।

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