शहर ही नहीं, गांवों में महंगी हुई शादियां
-जिले में 18 और 20 अप्रेल को होने वाली शादियों पर कम से कम 20 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।
-यह खर्च एक शादी पर वर व वधु पक्ष की ओर से न्यूनतम एक-एक लाख रुपए व्यय किए जाने का है।
– शहरों में ही नहीं बल्कि गांवों में भी अब महंगी शादियों का दौर चल निकला है।
-शादी समारोहों के चलते जिले की अर्थव्यवस्था में तेजी का रुख देखा जा सकता है।
-जिले में 18 और 20 अप्रेल को होने वाली शादियों पर कम से कम 20 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।
-यह खर्च एक शादी पर वर व वधु पक्ष की ओर से न्यूनतम एक-एक लाख रुपए व्यय किए जाने का है।
– शहरों में ही नहीं बल्कि गांवों में भी अब महंगी शादियों का दौर चल निकला है।
-शादी समारोहों के चलते जिले की अर्थव्यवस्था में तेजी का रुख देखा जा सकता है।
बीत गए वे दिन, गांव चले अब शहर की डगर…
पूर्व के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में शादी समारोह बेहद सादगी से संपन्न हुआ करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है।अब वहां भी शादियों में डीजे, लाइटिंग, टेंट डेकोरेशन, बड़े भोज, आरओ का पानी, कैटरिंग, फोटो व वीडियोग्राफी के साथ डिस्पोजल सामग्री आदि का चलन बन गया है। कई शादियों का बजट तो 20 से 50 लाख अथवा एक करोड़ रुपए तक भी होता है।यह सब गांवों में बिजली तथा सम्पर्क के रास्तों के बढऩे व विभिन्न कारणों से समृद्धि के पहुंचने से संभव हो सका है।
बाल विवाहों पर रही करीबी नजर
अक्षय तृतीया पर अथवा उसके आसपास नाबालिगों की शादियों पर प्रशासन ने करीबी नजर बनाए रखी। इस संबंध में सरकारी कार्मिकों को जमीनी स्तर पर जिम्मेदारियां सौंपी गई। जिसके चलते गांवों में भी बाल विवाह होने की एकाध घटना के अलावा अन्य कहीं से सूचना नहीं मिली। ग्रामीण क्षेत्रों में अब शिक्षा के प्रचार-प्रसार तथा कानूनी कार्रवाई के भय से बाल विवाह होने की घटनाएं पहले की अपेक्षा खासी कम हो चुकी हैं।
फैक्ट फाइल –
-02 दिनों के दौरान बड़ी संख्या में शादियां
-20 करोड़ रुपए का खर्च होने का अनुमान
-2000 से ज्यादा लोगों को मिला सीधा रोजगार
पूर्व के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में शादी समारोह बेहद सादगी से संपन्न हुआ करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है।अब वहां भी शादियों में डीजे, लाइटिंग, टेंट डेकोरेशन, बड़े भोज, आरओ का पानी, कैटरिंग, फोटो व वीडियोग्राफी के साथ डिस्पोजल सामग्री आदि का चलन बन गया है। कई शादियों का बजट तो 20 से 50 लाख अथवा एक करोड़ रुपए तक भी होता है।यह सब गांवों में बिजली तथा सम्पर्क के रास्तों के बढऩे व विभिन्न कारणों से समृद्धि के पहुंचने से संभव हो सका है।
बाल विवाहों पर रही करीबी नजर
अक्षय तृतीया पर अथवा उसके आसपास नाबालिगों की शादियों पर प्रशासन ने करीबी नजर बनाए रखी। इस संबंध में सरकारी कार्मिकों को जमीनी स्तर पर जिम्मेदारियां सौंपी गई। जिसके चलते गांवों में भी बाल विवाह होने की एकाध घटना के अलावा अन्य कहीं से सूचना नहीं मिली। ग्रामीण क्षेत्रों में अब शिक्षा के प्रचार-प्रसार तथा कानूनी कार्रवाई के भय से बाल विवाह होने की घटनाएं पहले की अपेक्षा खासी कम हो चुकी हैं।
फैक्ट फाइल –
-02 दिनों के दौरान बड़ी संख्या में शादियां
-20 करोड़ रुपए का खर्च होने का अनुमान
-2000 से ज्यादा लोगों को मिला सीधा रोजगार