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#हमें_जीने_दो: कोटा में बनेगी गोकाष्ठ ‘गोवर्धन’

locationजैसलमेरPublished: Jun 10, 2017 09:44:00 pm

Submitted by:

​Vineet singh

अंतिम संस्कार के लिए हर महीने होने वाली 300 पेड़ों की बलि अब रुक सकेगी। राजस्थान पत्रिका डॉट कॉम के इस अभियान के बाद अब कोटा में भी गोकाष्ठ का उत्पादन शुरू हो जाएगा। इसके बाद लोगों को गाय के गोबर से बनने वाली अंतिम संस्कार की लकड़ी मिल सकेगी।

rajasthan patrika campaign save tree

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शहर में हर माह कम से कम 300 पेड़ों का हर माह दाह संस्कार के साथ संस्कार हो रहा है। इन पेड़ों को स्वाहा होने से बचाने के लिए विद्युत शवदाह गृह एक विकल्प है, लेकिन प्रदेश में कम ही स्थानों पर विद्युत शवदाह गृह स्थापित हैं, लेकिन लोग जागरूकता के चलते इनका उपयोग नहीं कर रहे हैं।
दूसरे विकल्प के रूप में गो काष्ठ है। पेड़ों की रक्षा की दृृष्टि से इस विकल्प को पत्रिका ने लोगों को सुझाया है। भविष्य में पर्यावरण की भयावह स्थिति का अंदाजा लगाकर कोटा की ही एक सामाजिक संस्था कोटा में गो काष्ठ ‘गौवर्धन’ के निर्माण में रुचि दिखाई है। कर्मयोगी सेवा संस्थान कोटा में इस विशेष तरह की लकड़ी का उत्पादन करेगी, जो अंतिम संस्कार के लिए पेड़ों को कटने से रोकने में अहम साबित होगी। इसके लिए संस्थान ने प्रयास शुरू कर दिए हैं। संभवत: इस वर्ष अंत तक गौवद्र्धन का उत्पादन शुरू हो जाएगा।
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जयपुर में हो रही है तैयार

नारायाणधाम गोशाला में गो सेवा परिवार गो काष्ठ का उत्पादन कर रहा है। वहां हर दिन 50 क्विंटल गोबर से गोकाष्ठ तैयार की जा रही है। जयपुर के चांदपोल मुक्ति धाम पर प्रायोगिक तौर पर इसका उपयोग भी किया जा रहा है।
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पत्रिका में छपी खबर तो किया निरीक्षण

गत माह पत्रिका में गो काष्ठ से सम्बन्धित खबर पढऩे के बाद कर्मयोगी सेवा संस्थान का प्रतिनिधमंडल नारायणधाम गोशाला बगरू गया और गोकाष्ठ बनाने की विधि को समझा। इसके बाद संस्था के पदाधिकारी में महापौर से मिले और इस बारे में कोटा में उत्पादन की इच्छा जाहिर की। महापौर ने सकारात्मक आश्वासन के बाद संस्था ने गोकाष्ठ उत्पादन प्लांट लगाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसे गौवद्र्धन नाम दिया जाएगा। गोबर से तैयार यह लकड़ी करीब साढ़े तीन फीट लंबी, 8 इंच चौड़ी व 5 इंच मोटी बनाई जाएगी।
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अच्छी है पहल

कोटा निवासी मनीष माथुर कहते हैं कि कोटा मे गोकाष्ठ तैयार होती है तो काफी अच्छी पहल है। यज्ञ हमारी सनातन संस्कृति है। अंतिम संस्कार भी एक तरह का यज्ञ है। इसमें कपाल क्रिया पूर्णाहुति है। शरीर से आत्मा के छूटने के बाद अग्नि की गोद में शरीर अनंत में विलीन हो इस कारण दाह संस्कार किया जाता है। गोकाष्ठ से पेड़ भी बचेंगे और आस्था भी नहीं टूटेगी। 
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विद्युत शवदाह गृह की कमी

गौ शाला परिवार के विष्णु अग्रवाल ने कहा कि पेड़ों को बचाने व लोगों की आस्था भी बची रहे इस दृष्टि से गो काष्ठ का निर्माण शुरू किया है। यह गो संरक्षण के लिए भी जरूरी है। इसके अलावा आज भी शहरों में विद्युत शवदाह गृहों की कमी है। इन सभी बातों को देखते हुए गोकाष्ठ का उत्पादन शुरू किया। अन्य शहरों में भी उसका उपयोग होना चाहिए।
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कर रहे हैं प्रयास

कर्मयोगी सेवा संस्थान के अध्यक्ष राजाराम जैन कर्मयोगी ने कहा कि अंतिम संस्कार के लिए काटे जा रहे पेड़ों को बचाने के लिए कोटा में जल्द ही गोकाष्ठ का उत्पादन करेंगे। इस मामले में नगर निगम में भी सम्पर्क किया है। उनका सकारात्मक जवाब मिला है। इसी वर्ष इसका उत्पादन शुरू कर देंगे। वहीं महापौर महेश विजय ने आश्वासन दिया कि किसी भी अच्छे कार्य के लिए नगर निगम हमेशा सहयोगी रहेगा। गोकाष्ठ उत्पादन के मामले में कर्मयोगी सेवा संस्थान के सदस्य मिले थे। इस कार्य में भी हम पूरा सहयोग करेंगे। इस विषय में अधिकारियों से बात की जाएगी।
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