-जैसलमेर शहर में गुणवत्ताविहीन पेयजल की आपूर्ति करने का आरोप-स्वर्णनगरी में थम ही नहीं रहा जलापूर्ति का संकट
जैसलमेर . स्वर्णनगरी के बाशिंदों के साथ इन दिनों पानी को लेकर दोहरी चोट हो रही है। एक, तो पानी तीन से पांच दिन के इंतजार के बाद आ रहा है और दूसरा, गुणवत्ता की कसौटी पर खरा नहीं होने के कारण लोग तेजी से जलजनित बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। पेटदर्द, उल्टी-दस्त और अन्य रोगों की चपेट में आने वालों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। इससे जैसलमेर में सप्लाई किए जाने वाले पेयजल के फिल्टराइजेशन पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं। हालांकि जिम्मेदार यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि, नहरी पानी को सही ढंग से फिल्टर नहीं किया जा रहा।
रंग और स्वाद बता रहा हकीकतशहर में इन दिनों जो पेयजल सप्लाई किया जा रहा है, उसका रंग और स्वाद ही अपनी हकीकत खुद बयान कर रहा है। यह पानी पीने के बाद से शहर में जलजनित बीमारियों की शिकायतें बढ़ गई हैं। जैसलमेर में मोहनगढ़ से नहरी पानी की आपूर्ति होती है, जिसे गजरूपसागर स्थित फिल्टर प्लांट में स्वच्छ किया जाता है। जानकारी के अनुसार फिल्टर के आए दिन चॉक होने की समस्या उत्पन्न होती है। उनकी समय रहते देखरेख नहीं किए जाने से सप्लाई किया जाने वाला पानी स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नहीं माना जा सकता।
डाबला से नगण्य आपूर्तिजैसलमेर के सभी गली-मोहल्लों व आवासीय कॉलोनियों में पिछले करीब १० दिनों से पेयजल किल्लत बरकरार है। तीन से पांच दिनों के अंतराल में जलापूर्ति की जाती है। उसमें भी लोगों की शिकायत है कि पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं दिया जा रहा। नहरी पानी के अलावा जलापूर्ति के वैकल्पिक स्रोत डाबला से नगण्य मात्रा में ही पानी आ पा रहा है। जानकारी के अनुसार डाबला में मीठे पानी के करीब २२ नलकूप खुदे हुए हैं, लेकिन विभाग वर्तमान में केवल २ नलकूपों से ही पानी ले पा रहा है। जबकि वहां एक कनिष्ठ अभियंता सहित १०-१२ का स्टाफ कार्यरत है। पिछले दिनों डाबला से जो पानी आया, उसमें से आधा तो काट खाया होने से किसी काम का नहीं था। सवाल उठना लाजमी है कि गत वर्ष तक डाबला से 15 से 17 घंटा जलापूर्ति होती थी, वह अब घटकर बमुश्किल एक-डेढ़ घंटा ही क्यों रह गया है, जबकि डाबला नलकूपों में संसाधनों की कोई कमी नहीं है ?
दुर्गवासी हुए बेचैनजैसलमेर के ऐतिहासिक सोनार
दुर्ग में जलापूर्ति व्यवस्था इन दिनों गड़बड़ाई हुई है। इसके चलते दुर्गवासियों ने कई बार बीपी टैंक पहुंचकर विरोध भी दर्ज करवाया। दुर्ग के बाशिंदों ने कहा कि रहवासी मकानों में जलापूर्ति का संकट लगातार बना हुआ है, लेकिन किले में स्थित होटलों और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में पानी की कोई कमी नहीं है। उन्होंने जलापूर्ति के इस असमान वितरण की जांच कर आम रहवासियों की दिक्कतों के समाधान की मांग की। दुर्ग के अलावा शहर की सबसे बड़ी आवासीय गांधी कॉलोनी में भी अनियमित जलापूर्ति के चलते वहां के बाशिंदों को संकट का सामना करना पड़ रहा है। क्षेत्र के वार्ड नं. 28 के लोगों ने परिषद आयुक्त का घेराव किया था। इधर शनिवार को वार्ड नं. २७ में भी विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं।
बिजली भी देती रहती है झटके
पानी के अलावा दूसरी सबसे बुनियादी आवश्यकता बिजली आपूर्ति भी जिला मुख्यालय पर पिछले दिनों से उपभोक्ताओं के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। मामूली अंधड़ या बारिश से पूरे शहर में कई घंटों तक बिजली गुल रहने की समस्या का अब तक कोई तोड़ डिस्कॉम नहीं ढूंढ़ पाया है। लोगों को डिस्कॉम के अधिकारियों का रटा-रटाया जवाब ही सुनने को मिलता है, ‘लाइनों में फॉल्ट आया हुआ है, कर्मचारी मौके पर गए हुए हैं’।