जैसलमेरPublished: Oct 29, 2023 08:33:13 am
Deepak Vyas
जैसलमेर विधानसभा: विरले ही मिला है दूसरा मौका पोकरण विधानसभा: पूर्व प्रत्याशी पर ही लगातार दाव
जैसलमेर विधानसभा चुनाव में विरले ही किसी प्रत्याशी को दूसरा मौका मिला है। अधिकांशत: पार्टियां राजनीतिक दल चेहरे बदलने पर ही जोर देती रही है। विगत वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित विधायक को भी लगातार दो बार अपनी पार्टी से दावेदारी करने का मौका भी कम ही मिला है। वर्ष 1998 में लम्बे अर्से बाद कांग्रेस को इस सीट से जीत का स्वाद चखाने वाले गोवद्र्धन कल्ला की टिकट 2003 के चुनाव में कांग्रेस ने काट दी। ऐसे ही 2003 में भाजपा को रिकॉर्ड जीत दिलाने वाले सांगसिंह भाटी की जगह पर पर पार्टी ने 2008 के चुनाव में छोटूसिंह भाटी को टिकट थमा दी। हालांकि मौजूदा विधायक रूपाराम मेघवाल वर्ष 2013 व 2018 में प्रत्याशी रह चुके हैं। भाजपा की ओर से छोटूसिंह भाटी वर्ष 2008 व वर्ष 2013 में प्रत्याशी थे। यहां स्थिति जुदा
वर्ष 2008 से पोकरण में दोनों मुख्य पार्टियों ने अब तक हुए दो बार के चुनावों में अपने प्रत्याशियों को दोहराया है। विगत चुनावों में कांग्रेस ने लगातार तीन बार शाले मोहम्मद और भाजपा ने लगातार दो बार शैतानसिंह पर दांव लगाया। इसके बाद वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से शाले मोहम्मद और भाजपा ने महंत प्रतापपुरी को प्रत्याशी बनाया। इस बार फिर भाजपा ने महंत प्रतापपुरी को प्रत्याशी बनाया है।
हकीकत यह भीजैसलमेर क्षेत्र के लिए अब तक हुए 14 चुनावों में महज दो विधायक हुकुमसिंह और छोटूसिंह भाटी ही दूसरी बार विधायक बनने में सफल हो पाए। उनके अलावा अन्य विधायक केवल एक-एक बार ही विधानसभा की चौखट चढ़ पाए। पूर्व राजघराना सदस्य हुकुमसिंह ने दूसरी और तीसरी विधानसभा के लिए यह कारनामा किया तो भाजपा के छोटूसिंह भाटी 13वीं और 14वीं विधानसभा में लगातार विधायक बनकर पहुंचे। यहां यह दिलचस्प है कि हुकुमसिंह ने पहला चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीता तो दूसरा कांग्रेस के बैनर तलेए जबकि छोटूसिंह ने लगातार दो बार भाजपा को यहां से जीत का स्वाद चखाया।
्रतीन विधायक निर्दलीय चुने गए
जैसलमेर में अब तक तीन विधायक निर्दलीय के तौर पर चुनाव जीत कर प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत विधानसभा में पहुंचने में कामयाब हुए हैं। पहले 1952 में हुए चुनाव में हनवंतसिंह ने 11808 वोटों से निर्दलीय चुनाव जीता था। तब उनके सामने कन्हैयालाल थे, जिन्हें महज 863 वोट ही मिले। 1957 में हुकुमसिंह ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस के सत्यदेव व्यास को 14553 मतों से हराया था। वर्ष 1985 के चुनाव में मुल्तानाराम बारूपाल ने दोहराया था। उन्होंने मुस्लिम-मेघवाल गठबंधन के दम पर कांग्रेस के भोपालसिंह को 6102 मतों से हराया था।