श्रद्धालु दर्शन से पहले मंदिर के बाहर अपने जूते उतारते हैं, लेकिन वे उन्हें वापस नहीं मिलते। ऐसे में यहां जूतों का अंबार लग जाता है। जबकि प्रशासन की ओर से गांव में जूता स्टैण्ड लगाने को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। गौरतलब है कि गांव में प्रतिमाह शुक्ल पक्ष की द्वितीया तथा ***** मेले में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। दर्शन के बाद भीड़ में अपने जूते नहीं मिलने पर श्रद्धालु नए चप्पल खरीद लेते हैं। दूसरी तरफ गांव में मंदिर रोड, वीआईपी रोड, मेला चौक के आसपास क्षेत्र में जूते व चप्पलों का ढेर लग जाता है। जिससे अन्य राहगीरों व श्रद्धालुओं को यहां से आवागमन में भी परेशानी होती है।
कई धार्मिक स्थलों पर जूता स्टैण्ड लगे हैं जहां श्रद्धालुओं को जूतों के लिए टोकन दिया जाता है। दर्शन के बाद टोकन दिखाने पर उन्हें अपने जूते मिल जाते हैं, लेकिन यहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। वहीं मेले के दौरान ग्राम पंचायत प्रतिदिन सुबह ट्रैक्टर ट्रोलियों में भरकर जूते चप्पल गांव से बाहर फिंकवाती है। ऐसे में गांव के आसपास जगह-जगह जूतों के ढेर लगे हुए हैं।
प्रवेश व निकासी अलग
मंदिर में दर्शन के लिए जहां से लोग प्रवेश करते हैं। उनकी निकासी उसी स्थान की बजाय रामसरोवर की तरफ होती है। ऐसे में कई लोग नंगे पांव ही प्रस्थान कर लेते हैं।
मंदिर में दर्शन के लिए जहां से लोग प्रवेश करते हैं। उनकी निकासी उसी स्थान की बजाय रामसरोवर की तरफ होती है। ऐसे में कई लोग नंगे पांव ही प्रस्थान कर लेते हैं।