विश्व जल दिवस विशेष-- लाठी फार्मेशन के जल स्तर में हो रही है गिरावट
लाठी फार्मेशन के जल स्तर में गिरावट तो हो ही रही है
जैसलमेर
Updated: March 21, 2022 07:52:39 pm
जैसलमेर. जल ही जीवन है, जल है तो कल है का नारा... समय के साथ अपनी महत्ता सिद्ध कर रहा है। भू-जल के अंधाधुंध दोहन ओर सतही जल के दुरूपयोग की प्रवृत्ति आने वाले समय में गंभीर संकट पैदा करने वाली है। चिंता की बात ये है कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ भू-गर्भीय जल भंडारों मे गिने जाने वाली लाठी फार्मेशन के जल स्तर में गिरावट तो हो ही रही है, साथ में उसकी गुणवत्ता भी हानिकारक तत्वों के कारण प्रभावित हो रही है। बढ़ते दोहन के साथ इस जल में फ्लोराइड, नाइक्ट्रेट जैसे तत्व निर्धारित मनकों से कही ज्यादा बढ़ गए है। उत्तर भारत के सर्वश्रेष्ठ भू-जलीय स्रोत माने जाने वाले लाठी फार्मेशन के भंडार जैसलमेर ओर बाड़मेर जिलों में लगभग 5000 वर्ग किलोमीटर में फैले है। पेयजल की समस्या से सदियों से पीडि़त रहे बाड़मेर ओर जैसलमेर जिलों में लाठी फार्मेंशन का जल गंगा जल बनकर वरदान बना। संयुक्त राष्ट्र संघ के विकास कार्यक्रम के तहत 1962 में इस भूगर्भीय जल को नलकूपों के माध्यम से लोगों को उपलब्ध कराया गया। लाठी, चांधन, बरडाना, डाबला, कीता, राजमथाई, झिनझिनयाली, देवड़ा, टिकटियाली, गिराब जैसे अनेक गांवों में नलकूप खोद कर लोगों और पशुधन की प्यास बुझाई गई। इसी जल से चांधन के आसपास जेठा, भैरवा, सोढ़ाकोर, धायसर क्षेत्र में नलकूप खोदकर कृषि कार्य सरकारी फर्मो के माध्यम से शुरू हुआ। इन फार्म से लोगों को अनाज, रोजगार और पशुओं को चारा मिलना शुरू हुआ। भीषण गर्मी से तपती ओर वनस्पति विहिन मरुधरा पर वन विकास के काम शुरू हुए और देखते ही देखते रूप बदल गया। इसी जल से 1985 के अकाल राहत कार्यों के तहत जिले में नलकूप से क़ृषि कार्य शुरू हुआ। संसाधनों की कमी के कारण खेती में भू-जल का उपयोग प्रारम्भ के कुछ वर्षो में सीमित रहा, लेकिन आज हालात बदल गए है। जिले के हर कोने में नलकूप से खेती होती देखी जा सकती है। लोगों की जीवन दशा तो बदली, लेकिन अंधाधुंध दोहन ने भू जल की दशा बिगाड़ के रख दी। पानी के स्तर में गिरावट तो हुई, जल की रासायनिक गुणवत्ता ही बदल गई। अमृत सामान लाठी के भू-जल में कुल घुलित लवणों की मात्रा मिली ग्राम प्रति लीटर तक बढ़ गई है। हानिकारक फ्लोराइड की मात्रा परमिशन लिमिट 1.5 मिली ग्राम से बढ़कर 3 से 4 मिलीग्राम तक पहुंच चुकी है। बढ़ते दोहन से राजमथाई प्रतापपुरा क्षेत्र के आस-पास के नलकूप जवाब देने लग गए है। चांधन क्षेत्र के नलकूपों में खारे पानी की समस्या बढ़ती जा रही है। यही हालात रहे तो वो दिन दूर नहीं जब खेती तो दूर पीने के लिए गुणवत्ता युक्त जल मिलना कठिन हो सकेगा। विडंबना यह है कि तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद आमजन जल के प्रति संजीदा नहीं हो रहा। जल अभियान, मुख्य मंत्री जल स्वावलंबन अभियान, अटल भू-जल, राजीव गांधी जल संचयन जैसे ना जाने कितने अभियान जल के प्रति लोगो को जागरूक करने के लिए चल रहे है, लेकिन अभी भी हमारी मानसिकता नहीं बदली। दु:ख तो यह है कि पानी के लिए बैसाख मास में श्रम दान करने वाले, नाडियों ओर तालाबों को खुदवाने वाले, आगोर की पवित्रता बनाने के लिए जूझने वाले मरुधरा के वासी ही जल की महत्ता भूल चुके है। पानी तो सरकार को उपलब्ध कराना ही हैए हमारा क्या जाता है की इस मानसिकता से जल भंडारों की दुर्दशा हो रही है। सरकार पानी तो उपलब्ध करा देगी, लेकिन कहां से और कब तक इसलिए विश्व जल दिवस के इस मौके पर अहम ये प्रण लें कि हम जल के प्रति ईमानदार रहेंगे, इसकी एक एक बूंद को सहेजने का प्रयास करेंगे।

विश्व जल दिवस विशेष-- लाठी फार्मेशन के जल स्तर में हो रही है गिरावट
पत्रिका डेली न्यूज़लेटर
अपने इनबॉक्स में दिन की सबसे महत्वपूर्ण समाचार / पोस्ट प्राप्त करें
अगली खबर
