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ऐसा है इनका हुनर : एक खाट में रेशम की डोर से फूंक देते हैं जान

locationजालोरPublished: Apr 06, 2020 11:25:45 am

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बागोड़ा में बुनकर की ओर से तैयार किया गया खाट

बागोड़ा में बुनकर की ओर से तैयार किया गया खाट

बागोड़ा. कहते हैं हुनर और कला किसी की मोहताज नहीं होती। शिक्षित होना भी इसके लिए कोई मायने नहीं रखता। उपखंड मुख्यालय पर कुछ ऐसे ही एक हुनरबाज बुनकर की लोग तारीफें करते नहीं थकते। कस्बे के जलदाय विभाग सड़क मार्ग पर बाड़मेर जिले के नोखड़ा निवासी 45 वर्षीय बुनकर अम्बाराम महज सातवीं कक्षा पास है और हाथों से खाट को गूंथने में माहिर है। कस्बे के एक कारखाने में स्टील के खाट को रेशम की डोर से तैयार करते समय जब इस बुनकर से सरकारी योजनाओं का फायदा मिलने की बात पूछी गई तो उसका कहना था कि आज तक उसे किसी भी सरकारी योजना का फायदा नसीब नहीं हुआ। 7वीं तक पढऩे के बाद से वह इस धंधे में लग गया। कम पढ़ा लिखा होने से उसे कहीं नौकरी भी नहीं मिल पाई। ऐसे में निजी क्षेत्र में पगार कम मिलने से गृहस्थी चलाना मुश्किल होता देख उसने खुद के इस हुनर से परिवार का भरण पोषण करने की ठानी। उसने बताया कि हाथों से लकड़ी व स्टील के खाट, पलंग, सोफा, बेड व झूले को रेशम की डोर से इस कदर सजाते हैं कि उसे देख हर कोई आकर्षित हो जाता है। लादूराम बताते हैं कि पैतृक गांव में इस कला की कद्र नहीं होने व बागोड़ा क्षेत्र में स्टील की दुकानों पर इन रेशम की डोर से बने खाट की डिमांड अधिक होने से गुजारा चल जाता है।
उम्मीद के जितना नहीं मिलता मेहनताना
बुनकर की ओर से रेशम की डोरी से कलाकारी कर खाट को अलग और हटकर लुक दिया जाता है। खाट पर नाम व मोबाइल नंबर के साथ अन्य आकृतियों से उसका रूप ही बदल जाता है, लेकिन बुनकर का कहना है कि उसके इस हुनर का उसे उम्मीद के अनुसार मेहनताना नहीं मिल रहा है। एक दिन में मुश्किल से एक खाट को गूंथ पाते हैं और बदले में 500 से 600 रुपए आमदनी होती है जो गृहस्थी चलाने के लिए नाकाफी साबित हो रही है।
इतने में पड़ता है एक खात
बुनकर अम्बाराम ने बताया कि एक खाट में सात से आठ किलो रेशम की डोरी व मेहनताने के 600 रुपए मिला कर कुल 1600 रुपए में पड़ता है। खरीदार इस कला को देख आसानी से खाट ले जाता है। वहीं स्टील का खाट तैयार करने पर करीब चार हजार में बिकता है। मौजूदा समय में इनकी डिमांड जयपुर, अहमदाबाद व जोधपुर समेत कई शहरों में होने लगी है।
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