सांचौर. शहर का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल इन दिनों चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोल रहा है।
अस्पातल में इलाज के लिए आने वाले मरीजों को विशेषज्ञों के अभाव में खानापूर्ति कर लौटा दिया जाता है। वहीं प्रसूताओं को भी विशेषज्ञ के बजाय मेलनर्स या एएनम की सेवा मिल पाती है। आपातकाल की स्थिति में मरीजों व प्रसूताओं को अन्यत्र रेफर किया जा रहा है।
ऐसे में प्रसूता की सुरक्षा को लेकर विभाग की ओर से किए जा रहे दावे भी खोखले साबित हो रहे हैं। हाल ये हैं कि सीएचसी में लगी सोनोग्राफी मशीन बीते चार साल से ज्यादा समय से ताले में कैद है। विभाग को इसकी जानकारी होने के बावजूद जिम्मेदार इस ओर कोई
ध्यान नहीं दे रहा है।
ऐसे में लाखों रुपए की इस मशीन का फायदा ना तो प्रसूताओं को मिल रहा है और ना ही अन्य मरीजों को। पूर्व में सोनोग्राफी संचालित करने वाले डॉ. विभाराम चौधरी का तबादला होने के बाद से यह पद रिक्त चल रहा है। जिसकी बदौलत मरीजों को निजी अस्पतालों में जाने को मजबूर होना पड़ रहा है।
विशेषज्ञ के अभाव में करवाते है प्रसव शहर का एकमात्र सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होने के बावजूद यहां स्त्रीरोग विशेषज्ञ का पद लम्बे समय से रिक्त है। ऐसे में यहां आने वाली प्रसूताओं को एएनएम व मेल नर्स के भरोसे प्रसव करवाना पड़ रहा है। ऐसे में जननी सुरक्षा का दावा भी खोखला साबित हो रहा है।
रात में सिर्फ मेलनर्स व एएनम की ड्यूटीसांचौर उपखंड मुख्यालय होने के कारण यहां करीब ६३ ग्राम पंचायतों व पड़ोसी जिले बाड़मेर से भी कई बार यहां मरीज आते हैं, लेकिन सुविधा के अभाव में उन्हें भी कोई फायदा नहीं मिल रहा है। शहर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मं रात्रिकालीन व्यवस्था में तो स्थिति और भी गम्भीर होती है। इस अस्पताल में रात्रि के समय आने वाली प्रसूताओं व गम्भीर मरीजों को संभालने के लिए महज एक या दो स्टाफ ही मौजूद रहता है। यहां रात्रि में इनके भरोसे ही अस्पताल का संचालन हो रहा है।
ये पद हैं रिक्तशहर के राजकीय अस्पताल में शिशु, स्त्री रोग, हड्डी व जेएस मेडिसीन सहित कई विशेषज्ञों के पद पिछले छह साल से रिक्त चल रहे हैं। जिससे मरीजों को निशुल्क दवा योजना का भी पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। वहीं रेडियोग्रेाफर व लिपिक का भी एक-एक पद रिक्त होने से दिक्कत हो रही है।
मरीजों को करते हैं रेफरशहर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में चिकित्सकों के पद रिक्त होने से चिकित्सालय प्रशासन किसी प्रकार की जोखिम उठाने के बजाय मरीजों को रेफर करने में उतावला रहता है। जिससे राज्य सरकार की योजनाओं का भी मरीजों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है। वहीं निजी अस्पतालों में महंगी फीस या समय पर इलाज नहीं मिल पाने से मरीज बीच रास्ते में ही दम तोड़ देता है।
कागजी खानापूर्ति, सुविधाओं में सुधार नहींउपखण्ड मुख्यालय पर स्थित इस सरकारी अस्पताल में जिला व प्रशासनिक अधिकारी सहित जनप्रतिनिधि भी विजिट कर खानापूर्ति जरूर करते हैं, लेकिन यहां सुविधा के नाम पर कुछ नहीं किया जाता है। जिसकी वजह से लम्बे समय से असुविधा का दंश भोग रहा सामुदियक स्वास्थ्य केन्द्र उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। जिसका खामियाजा क्षेत्र के लोगों को भुगतना पड़ रहा है।