scriptसांचौर विधानसभा के पहले गांव खारा से नेहड़ के सीमांत रिड़का गांव की हकीकत | Ground report of Sanchore Vidhansabha Area | Patrika News

सांचौर विधानसभा के पहले गांव खारा से नेहड़ के सीमांत रिड़का गांव की हकीकत

locationजालोरPublished: Oct 31, 2018 11:19:13 am

कहीं टूटी सड़कें और रोडवेज की समस्या तो कहीं टूट पुलिया व बिजली की संकट

Sanchore Vidhansabha Area

Ground report of Sanchore Vidhansabha Area

जालोर. जिले के सांचौर विधानसभा क्षेत्र के कई गांव आज भी पेयजल की समस्या से ग्रस्त हैं। पत्रिका ने इन गांवों में जाकर ग्रामीणों की समस्या को करीब से जाना। जालोर जिला मुख्यालय से रवाना होने के बाद भीनमाल से करड़ा होते हुए सांचौर विभानसभा क्षेत्र का पहला गांव खारा। छोटा सा गांव और गांव के मुख्य चौहटे पर ही बस स्टैंड है। कुछ यात्री यहां बस का इंतजार कर रहे थे। कुछ देर रुकने के बाद मेडिकल व्यवसायी से गांव और आस पास के इलाकों की समस्याओं के बारे में पूछा तो बताया गया यहां ग्रामीणों की मुख्य समस्या खारे पानी की है। रोडवेज आज तक नहीं चली और नेता सिर्फ चुनावों के दौरान यहां दिखाई देते हैं। इससे थोड़ा सा आगे अरणाय गांव में भी कुछ ऐसी ही समस्या बताई गई। यहां के किराणा व्यवसायी व आस पास खड़े ग्रामीणों ने बताया कि सालों से यहां रोडवेज बसों का संचालन तक नहीं हुआ और ना ही किसी जनप्रतिनिधि ने इसके सार्थक प्रयास किए। यहां भी खारे पानी की समस्या से आमजन त्रस्त हैं। वहीं सड़कों की हालत भी काफी खस्ता हो रखी है। यहां से सांचौर मुख्य शहर में प्रवेश के बाद शहर के बीच स्थित दरबार चौक में कुछ लोगों से बात की। सामने आया सरकारी कॉलेज की समस्या का समाधान यहां आज तक नहीं हुआ। स्टूडेंट सुरेश माली, प्रकाश व रिकेश बंजारा ने बताया कि मुंहमांगा डोनेशन देकर मजबूरी में निजी कॉलेज में एडमिशन लेना पड़ता है। इसी तरह शहरवासी तेजाराम, असकर खान व सोहनसिंह राव ने बताया कि शहर में लम्बे समय से सीवरेज की मांग चल रही है। गंदगी से लोग त्रस्त हैं फिर भी इस समस्या का समाधान नहीं किया जा रहा है। वहीं पार्क व हाइवे के दोनों ओर अधूरे नाले की समस्या भी बरकरार है।
नेहड़ के कुछ गांवों के हालात…कच्ची बेरियों पर आश्रित
सांचौर शहर पार करते ही सरवाना, जोरादर, भाटकी, नलधरा, भवातड़ा, आकोडिय़ा, सुराचंद, सूंथड़ी व खेजडिय़ाली समेत कहीं भी नर्मदा के पानी के लिए कोई योजना नहीं है। नेहड़ के धींगपुरा गांव की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। यहां भी पानी, बिजली, रोडवेज, शिक्षा, रोजगार के नाम पर ग्रामीणों को कुछ नहीं मिला है। आस पास के इलाकों में आज भी नर्मदा का मीठा पानी यहां नहीं पहुंच पाया है। ऐसे में लोग या तो अधिक दाम देकर टैंकर मंगवाते हैं या फिर कच्ची बेरियों से रिसने वाला खारा पानी पीने को मजबूर हैं। वहीं गांवों में रोडवेज बस तो कभी चली ही नहीं। कुछेक प्राइवेट बसें जरूर चलती हैं, लेकिन वे भी गिनती की। ऐसे में यहां के लोग भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।
अभी भी कायम हैं बाढ़ के निशां
नेहड़ क्षेत्र में पिछले साल आई बाढ़ के निशां आज भी कायम हैं। सांचौर शहर से करीब २५ किमी के बाद के हालात ऐसे हैं कि आज भी बड़े-बड़े गड्ढों में पानी भरा पड़ा है। कई खेत तबाह हो गए, फसलें बर्बाद हो गई, लेकिन आज भी कई बाढ़ प्रभावित किसान और ग्रामीण मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं।
नेता बदले, पर नहीं बदली गांवों की तस्वीर
350 घरों की आबादी वाला रिड़का नेहड़ का सीमांत और आखिरी गांव है। इससे कुछ किमी की दूरी पर गुजरात और पाकिस्तान बोर्डर भी है। आजादी के सात दशक बाद से यहां के 70 से 80 घर आज भी बिजली सुविधा से महरूम हैं। यहां सबसे ज्यादा समस्या पेयजल की है। नहर तो आई, लेकिन ना तो पीने का पानी मिल रहा है और ना ही सिंचाई के लिए। चिकित्सा सुविधा के नाम पर भी कुछ नहीं है। सड़क भी चुनावी सीजन के चलते दो दिन पहले ही बनी है। पिछली बार अतिवृष्टि के दौरान धींगपुरा में लूणी नदी के बहाव क्षेत्र में बना पुलिया टूट गया था। दो महीने तक ग्रामीण पानी से घिरे रहे। राशन, बिजली, पानी, चिकित्सा और शिक्षा के नाम पर भी यहां कुछ नहीं है। रोजगार के नाम पर भी कुछ नहीं है। यहां की आबादी खेती पर आश्रित है और खेती भी बारिश की सीजन में ही होती है। गांव में प्राथमिक स्कूल जरूर है, लेकिन बेटियां पांचवीं के बाद आगे की पढ़ाई नहीं कर पाती। नरेगा में मिलने वाला काम भी फिलहाल बंद है। ऐसे में लोग जैसे तैसे कर गुजारा कर रहे हैं। इसके अलावा शौचालयों की प्रोत्साहन राशि एक भी पात्र परिवार को नहीं मिली है।
– रिड़का से हुसैन खान (80) व किसान हसन खान (55), निंदा खां, बच्चू खां की जुबानी
खारा पानी पी रहे ग्रामीण
नर्मदा भले ही आ गई, लेकिन यहां अभी नर्मदा का मीठा पानी तो दूर गांव में पेयजल की जोरदार समस्या है। पानी खारा होने से पीने लायक नहीं है। लोगों को मीठा पानी पांच सौ सात सौ रुपए देकर टैंकर से मंगवाना पड़ता है। चुनावी सीजन के चलते गौरव पथ जरूर बन रहा है, लेकिन गांव से बाहर निकलते ही झाब और सांचौर की तरफ सड़कों की हालत काफी खस्ता है। और नेता भी इसी सीजन में दर्शन देकर लौट जाएंगे। पर विकास पर किसी की नजर नहीं पड़ती। राशन दुकान पर एवजी बैठता है और उपभोक्ताओं को केरोसीन तक नहीं मिल रहा। गांव में शिक्षा का स्तर फिर भी ठीक है, लेकिन ग्रामीणों को पेयजल, सड़क, बिजली और मूलभूत सुविधाओं का आज भी इंतजार है।
– शैतानाराम विश्नोई, मेडिकल व्यवसायी, निवासी-खारा
बुजुर्गों से सुना था कि करीब सौ साल पहले यहां की महिलाएं और पुरुष भगवान से यह प्रार्थना करते थे कि अगला जन्म उन्हें भवातड़ा में ही मिले। कारण कि उस समय यहां मीठा पानी था। एक-एक घर में पंद्रह से बीस गायें और भैंसे थी, लेकिन अब खार की वजह से यहां ऐसी स्थिति नहीं रही। पानी खारा होने के कारण पीने लायक नहीं है। नहरी पानी भी ग्रामीणों को नसीब नहीं हुआ है। एक दो बार यहां जनप्रतिनिधि जरूर आए थे, लेकिन सीमांत गांव होने से विकास की ओर किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा। छह माह पूर्व ग्रामीणों ने सरवाना के निकट एक कार्यक्रम में पहुंचे जनप्रतिनिधि को पानी की समस्या के बारे में बताया था तो उन्होंने इस समस्या के समाधान के बजाय सरपंच के घर जाकर मटके फोडऩे का कहकर बात को टाल दिया।
– जबरसिंह सोलंकी, फुटकर व्यवसायी, निवासी-भवातड़ा
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो