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किराए के लाइसेंस से नौसीखिए चला रहे दवा दुकानें

locationजालोरPublished: Jan 03, 2020 10:37:36 am

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Illegal medical shops in Jalore district

Illegal medical shops in Jalore district

जालोर. शहर समेत जिले भर में चल रहे मेडिकल स्टोर्स में से अधिकतर दुकानें लंबे समय से नौसीखियों के भरोसे चल रही हैं। इन दुकानों पर टंगे लाइसेंस किसी और के नाम से हैं, जबकि यहां दवाओं की बिक्री किसी ओर से भरोसे की जा रही है। खास बात तो यह है कि मेडिकल स्टोर्स संचालकों को ये लाइसेंस आसानी से किराए पर भी मिल जाते हैं। इसके बाद इसी इन्हीं लाइसेंस के आधार पर इन दवा दुकानों का संचालन अन्य व्यक्ति कर रहे हैं। ऐसे में ये नौसीखिये आमजन के स्वास्थ्य को खतरे में भी डाल सकते हैं। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी यह सब जानते हुए भी ढिलाई बरत रहे हैं। नियमों की अनदेखी के बावजूद जिले के किसी भी मेडिकल स्टोर पर विभाग की ओर से समय-समय पर कार्रवाई तक नहीं की जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि इसके लिए जिले में दो निरीक्षक कार्यरत हैं जो शिकायत मिलने पर कार्रवाई करते हैं।
जरूरी है फार्मासिस्ट
किसी भी दवा दुकान पर दवाओं की बिक्री करने के लिए खुद फार्मासिस्ट का होना बेहद जरूरी है, लेकिन अधिकतर दुकानों पर नौसीखिये ही दवाएं बेच रहे हैं। कुछ दिन तक फार्मासिस्ट के पास काम सीखने के बाद वे भी किराए के लाइसेंस पर दुकान का पंजीयन करवा लेते हैं और किसी और की डिग्री के आधार पर ही दुकान का संचालन करते हैं।
25 से 30 हजार किराया
गौरतलब है कि जिले भर में कई दवा विक्रेताओं के पास खुद की फार्मासिस्ट की डिग्री तक नहीं है। ऐसे में डिग्री होल्डर के लाइसेंस किराए पर लेकर दुकानें संचालित की जाती है। इसके लिए दवा विक्रेता लाइसेंसी को घर बैठे ही मासिक दो से ढाई हजार या सालाना 25 से 30 हजार रुपए बतौर किराए के रूप में अदा करते हैं।
डिग्री होल्डर होता है जिम्मेदार
किसी भी दवा की दुकान पर दवा की बिक्री के दौरान होने वाली गड़बड़ी का जिम्मेदार उस दुकान का लाइसेंस धारक ही होता है, लेकिन अधिकतर दवा की दुकानें किराए के लाइसेंस पर चलाई जा रही है। जबकि लाइसेंस धारक दुकान पर होते ही नहीं हैं। ऐसे में दुकान पर आने वाले मरीज के साथ कुछ भी ऊंच नीच होने की संभावना बनी रहती है।
इसलिए डॉक्टर को दिखाएं दवा
किसी भी अस्पताल में जांच के लिए जाने वाले मरीज को खुद डॉक्टर भी अक्सर दवा खरीदने के बाद उन्हें फिर से दिखाने की सलाह भी देते हैं। कई बार नौसीखिए डॉक्टर की लिखी पर्ची वाली दवा दुकान पर नहीं होने के कारण मरीज को एक जैसी दवा होने की बात कहकर थमा देते हैं। जिससे कई बार मरीज को रिएक्शन भी हो जाता है। ऐसे में डॉक्टर की सलाह और उन्हें दवा दिखाने के बाद ही उसका सेवन करना चाहिए।
जिले भर में सैकड़ों दुकानें
जिले भर में शहरी व ग्रामीण इलाकों की बात करें तो करीब ६०० मेडिकल स्टोर चल रहे हैं। अधिकतर ग्रामीण इलाकों में बिना लाइसेंस के भी इन दुकानों का संचालन हो रहा है। जहां झोलछाप भी मरीजों का इलाज करते हैं। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इस बारे में ठोस कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
इनका कहना…
जिले में रिटेल की करीब ६०० मेडिकल दुकानें चल रही हैं। मेडिकल स्टोर्स पर फार्मासिस्ट नहीं होने की शिकायत मिलने पर विभाग की ओर से समय-समय पर कार्रवाई की जाती है। जांच व कार्रवाई के लिए जिले में दो निरीक्षक भी कार्यरत हैं। इसमें मेडिकल लाइसेंस रद्द करने का भी प्रावधान है।
– सुनील मित्तल, सहायक ड्रग कंट्रोलर, जालोर
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