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कजली तीज पर सुहागिनों ने रखा व्रत, पति की दीर्घायु की कामना की

locationजालोरPublished: Aug 29, 2018 11:33:27 am

चार तीज महत्वपूर्ण, प्रथम गणगौर तीज, द्वितीय आखातीज, तृतीय श्रावण तीज व चौथी कजली या सातुड़ी तीज होती है महत्त्वपूर्ण

Kajli teej festival

कजली तीज पर सुहागिनों ने रखा व्रत, पति की दीर्घायु की कामना की

गेस्ट राईटर: शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी

भीनमाल. भारत देश तीज त्यौहारों का देश है। यहां पर अनेक त्यौहार, मेले व उत्सव मनाए जाते है, प्रत्येक पर्व का अपना अलग-अलग महत्व भी होता हैं। बुधवार को सुहागिन महिलाएं कजली तीज मनाएंगी। शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने बताया कि हमारे देश में शादी का बंधन सबसे अटूट माना जाता है। पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए तीज का व्रत रखा जाता हैं वर्ष में चार तीज महत्वपूर्ण है।
प्रथम गणगौर तीज, द्वितीय आखातीज, तृतीय श्रावण तीज व सबसे बड़ी व महत्वपूर्ण यह चौथी कज्जली या सातुड़ी तीज होती है जिसे प्रत्येक सुहागिन अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है। कुंआरी लड़की अच्छा वर पाने के लिए व्रत रखती हैं।
इस तरह मनाया जाता है व्रत
व्रत में पूरे दिन पानी के अलावा कुछ भी ग्रहण नहीं करती है। फिर शाम को मेहंदी आदि 16 श्रृंगार करके नवीन वस्त्र व आभूषण आदि धारण करती है। गेहूं या चणे के आटे का सातु बनाती है। गाय के गोबर से तालाब बनाती है उसके किनारे पर नीम की डाली रोपती है। फिर सभी औरतें उसकी पूजा करती है, उसके अन्दर निंबू, नीमड़ी, नथ, सिबड़ा, वस्त्र, सातु, आदि की परछाई देखती है। भगवान से सुहाग अमर रखने की प्रार्थना करती हैं। उसके पश्चात कथा सुनती है। फिर रात्रि को चंद्र दर्शन होने पर चंद्रमा की पूजा करती है। फिर सातु का भोग लगाकर व्रत खोलती है। करवा चौथ की तरह ही ही यह त्यौहार भी मनाया जाता है।
पर्व की यह है पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार मध्य भारत में कजली नाम का वन था। इस जगह का राजा दादुरै था। इस जगह में रहने वाले लोग अपने स्थान कजली के नाम पर गीत गाते थे, जिससे उनकी इस जगह का नाम चारों ओर फैले और इसे सब जाने। कुछ समय बाद राजा की मृत्यु हो गई और उनकी रानी नागमती सती हो गई। जिससे वहां के लोग बहुत दुखी हुए और इसके बाद से कजली के गाने पति-पत्नी के जन्म जन्म के साथ के लिए गाए जाने लगे। शास्त्री ने बताया कि कज्जली तीज को हर घर में झूला डाला जाता है व औरतें इस में झूल कर खुशी व्यक्त करती हैं। इस दिन औरते अपने पति के लिए व कुआरी कन्याएं अच्छे पति के लिए व्रत रखती हैं। व्रत के पूर्व रात्रि में दातनमीड़ा करती है अर्थात् मध्यरात्रि में भोजन करती है या मिठाई आदि खाती है जिसे लौकिक भाषा में दातनमीड़ा कहते हैं।
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