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Sheep and Wool Research: ऊन के दाम घटने से घाटे का सौदा बन रहा है भेड़पालन

locationजालोरPublished: Oct 18, 2019 10:18:52 am

Submitted by:

Jitesh kumar Rawal

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Sheep and Wool Research: ऊन के दाम घटने से घाटे का सौदा बन रहा है भेड़पालन

Sheep and Wool Research: ऊन के दाम घटने से घाटे का सौदा बन रहा है भेड़पालन

30-40 रुपए प्रति किलो हो गए देशी ऊन के दाम, बीकानेर मंडी तक नहीं पहुंचते है भेड़पालक

भीनमाल/कागमाला. देशी ऊन की बजाए बाजार में विदेशी से ऊन खपत होने का दंश क्षेत्र के भेड़पालक भुगतने को मजबूर है। साल-दर-साल ऊन के दाम घटने से ऊन व्यवसाय भेड़पालकों के लिए घाटे का सौदा बन रहा है। पिछले कुछ साल से देशी ऊन के दाम भी आधे तक गिर चुके है। पहले देशी ऊन करीब 80 रुपए किलो बिकती थी, लेकिन अब बिचौलिए के हाथों 40 रुपए प्रतिकिलो के दाम में भेड़पालक बेचने को मजबूर है। ऐसे में भेड़पालकों के लिए यह व्यवसाय घाटे का सौदा बन गया है। विदेशी आयातित ऊन बाजार में पहुंचने से यहां के ऊन व्यवसाय से जुड़े कुटीर उद्योग भी चौपट हो गए है। इतना कुछ होने के बाद भी सरकार की ओर से ऊन खरीद को लेकर जिले में कोई केन्द्र स्थापित नहीं हो रहा है। दरअसल, जिलेभर में हर गांव में दर्जनों लोग भेड़पालन के व्यवसाय से जुड़े हुए है। यहां पर देवासी समाज के अधिकांश लोग इस पुश्तैनी व्यवसाय से जुड़े रहे, लेकिन अब परिस्थितियां बदलने से इस कार्य से विमुख हो रहे है। इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि ऊन के दाम घटने से यह व्यवसाय अपने बूते से बाहर हो गया है। इसके अलावा पूर्व में क्षेत्र में बड़ी संख्या में भेड़ों के विचरण के लिए ओरण, गोचर व चारागाह भी थे, लेकिन अब सिमट गए है। ऐसे में भेड़पालक भेड़ चराई के लिए अन्य राज्यों में प्रस्थान करते है। पशुपालन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ऊन खरीद मंडी बीकानेर में है। जो एशिया की सबसे बड़ी मंडी है।

जोधपुर संभाग रहता था प्रथम
प्रदेशभर में कई जगहों पर ऊन व्यवसाय से लोग जुड़े रहे, लेकिन जोधपुर संभाग देशी ऊन उत्पादन में अग्रणी रहा है। सरकार की उदासीनता के चलते यह भेड़पालन व्यवसाय भी दम तोड़ रहा है। पूर्व में जिले में भीनमाल शहर में भी ऊन खरीद व संवर्र्धन केन्द्र था, लेकिन 15 साल पूर्व इसे बंद कर दिया। इसके अलावा सरकार ने भेड़पालन बोर्ड को बंद कर पशुपालन में मर्ज करने से यह समस्या और बढ़ गई। बीकानेर मंडी यहां से करीब 550 किलोमीटर दूर होने से कोई भेड़पालक के लिए ऊन वहां पर बेचना संभव नहीं होता है।

साल में दो बार कटती है ऊन
इस धंधे से जुड़े लोगों का कहना है कि भेडों के साल में दो बार ऊन की कटाई होती है। एक बार बारिश का मौसम गुजरने के बाद व एक बार सर्दी का मौसम गुजरने के बाद भेड़ से ऊन उतारी जाती है। एक भेड़ से करीब एक किलो तक भेड़ का उत्पादन होता है। इस अवधि में भेड़े पर्याप्त ऊन से लद जाती है। भेड़पालकों को सरकारी मदद नहीं मिलने व ऊन बेचान की व्यवस्था नहीं होने से समस्या और बढ़ गई है।

दाम नहीं मिलते…
वर्तमान में विदेशी बाहरी ऊन आयातित होने से देशी ऊन के दाम घट गए है। दाम घटने भेड़पालकों के लिए आजीविका चलाना भी दुर्भर हो गया है। चराई के दाम भी नहीं मिलते है। सरकार की ओर से इस व्यवसाय को जीवित रखने के लिए कोई उपाय नहीं होने पर यह व्यवसाय बंद होने की कगार पर है।
हेमाराम देवासी, भेड़पालक

बीकानेर मंडी में बेचते है…
जिले में एक भी ऊन खरीद व संरक्षण केन्द्र नहीं है। सरकार ने ऊन संरक्षण बोर्ड को बंद मर्ज कर पशुपालन विभाग में मर्ज कर दिया है। भेड़पालक ऊन को बीकानेर मंडी में बेच सकते है, जो एशिया की सबसे बड़ी मंडी है। वहां पर उनको पूरे दाम मिल सकते हैं।
ओमकार पाटीदार, संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग, जालोर

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