जोधपुर संभाग रहता था प्रथम
प्रदेशभर में कई जगहों पर ऊन व्यवसाय से लोग जुड़े रहे, लेकिन जोधपुर संभाग देशी ऊन उत्पादन में अग्रणी रहा है। सरकार की उदासीनता के चलते यह भेड़पालन व्यवसाय भी दम तोड़ रहा है। पूर्व में जिले में भीनमाल शहर में भी ऊन खरीद व संवर्र्धन केन्द्र था, लेकिन 15 साल पूर्व इसे बंद कर दिया। इसके अलावा सरकार ने भेड़पालन बोर्ड को बंद कर पशुपालन में मर्ज करने से यह समस्या और बढ़ गई। बीकानेर मंडी यहां से करीब 550 किलोमीटर दूर होने से कोई भेड़पालक के लिए ऊन वहां पर बेचना संभव नहीं होता है।
साल में दो बार कटती है ऊन
इस धंधे से जुड़े लोगों का कहना है कि भेडों के साल में दो बार ऊन की कटाई होती है। एक बार बारिश का मौसम गुजरने के बाद व एक बार सर्दी का मौसम गुजरने के बाद भेड़ से ऊन उतारी जाती है। एक भेड़ से करीब एक किलो तक भेड़ का उत्पादन होता है। इस अवधि में भेड़े पर्याप्त ऊन से लद जाती है। भेड़पालकों को सरकारी मदद नहीं मिलने व ऊन बेचान की व्यवस्था नहीं होने से समस्या और बढ़ गई है।
दाम नहीं मिलते…
वर्तमान में विदेशी बाहरी ऊन आयातित होने से देशी ऊन के दाम घट गए है। दाम घटने भेड़पालकों के लिए आजीविका चलाना भी दुर्भर हो गया है। चराई के दाम भी नहीं मिलते है। सरकार की ओर से इस व्यवसाय को जीवित रखने के लिए कोई उपाय नहीं होने पर यह व्यवसाय बंद होने की कगार पर है।
– हेमाराम देवासी, भेड़पालक
बीकानेर मंडी में बेचते है…
जिले में एक भी ऊन खरीद व संरक्षण केन्द्र नहीं है। सरकार ने ऊन संरक्षण बोर्ड को बंद मर्ज कर पशुपालन विभाग में मर्ज कर दिया है। भेड़पालक ऊन को बीकानेर मंडी में बेच सकते है, जो एशिया की सबसे बड़ी मंडी है। वहां पर उनको पूरे दाम मिल सकते हैं।
– ओमकार पाटीदार, संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग, जालोर