उपन्यासकार पुरूषोत्तम पोमल ने श्रीमाली के समग्र साहित्य को हिंदी व राजस्थानी की अमूल्य थाति बताया। साथ ही उनके सरल सहज व आत्मीय व्यवहार पर चर्चा की। भंवर सिह सोलंकी ने उनकी पुस्तक ‘म्हारो मीत गंगासिंघ’ पर चर्चा करते हुए उसे विश्व की लम्बी कविता बताया। जिसमें हुंकारा पद्धति के माध्यम से कवि ने अपने समय के सच को उजागर किया है।
शिक्षाविद ओमप्रकाश खंडेलवाल ने दिवंगत साहित्य कार के रचनाकर्म पर व्यापक चर्चा करते हुए उनके बहुआयामी व्यक्तित्व, लेखन में सामाजिक सरोकारों पर चर्चा की। सेवानिवृत्त लेखाधिकारी ललित दवे ने श्रीमाली के लेखन के मानवीय पक्षों पर प्रकाश डाला। विचार गोष्ठी में सेवानिवृत्त उप शिक्षा निदेशक पृथ्वी राज दवे ने उनके म्हारो गांव तथा पद्मनाभ पर चर्चा कर दोनों कृतियों को उत्कृष्ट बताया विचार गोष्ठी के अध्यक्ष जालोर विकास समिति के सचिव सी.ए. मोहन पाराशर ने श्रीमाली को अपने युग का महान साहित्य कार बताते हुए उनके साहित्य को निरंतर संरक्षित करने की जरूरत बताई।
विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत्त उप शिक्षा निदेशक भीखालाल व्यास ने राजस्थानी में लेखन के लिए सभी को प्रेरित करते हुए कहा कि जीवन भर राजस्थानी की मान्यता को संघर्ष रत श्रीमाली को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
विचार गोष्ठी में मुख्य अतिथि तथा अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रांतीय उपाध्यक्ष परमानन्द भट्ट ने रामेश्वर दयाल श्रीमाली की कविता व गज़़लों का वाचन करते हुए उनके काव्य में शिल्प, भाव पक्ष व सामाजिक सरोकारों पर व्यापक चर्चा की। विशिष्ट अतिथि वेदपाल मदान ने उन्हें विराट व्यक्तित्व का धनी बताया। इकाई अध्यक्ष अश्विनी श्रीमाली ने रामेश्वर दयाल श्रीमाली के राजस्थानी में लिखित कहानी के अंशों का वाचन किया। अंत में फोरम के अध्यक्ष ऋषि कुमार दवे ने आभार ज्ञापित किया। विचार गोष्ठी में सेवानिवृत्त अधीक्षण अभियंता बी.एल. सुथार, देवेंद्र नाग, जानकी लाल नाग, वन्नेसिंह, छगन लाल व्यास, कानाराम प्रजापत व सांवलचंद माली समेत अन्य मौजूद रहे।