सालदर साल छलनी हो रही धरती, खोदे जा रहे अवैध बोरवेल रोकने वाला कोई नहीं
जालोरPublished: Jul 22, 2019 10:26:56 am
– प्रशासनिक कार्रवाई नहीं होने से अवैध बोरवेल खुदाई का पनप रहा व्यापार, 1.50 से 2 मीटर तक प्रतिवर्ष हो जाता है भूजल का दोहन
– प्रशासनिक कार्रवाई नहीं होने से अवैध बोरवेल खुदाई का पनप रहा व्यापार, 1.50 से 2 मीटर तक प्रतिवर्ष हो जाता है भूजल का दोहन
जालोर. जालोर जिला डार्क जोन है और साल दर साल यहां भूजल स्तर में गिरावट भी आ रही है। इन हालातों को केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने गंभीरता से लेते हुए करीब एक दशक पूर्व पूरे जिले को डार्क जोन में घोषित किया था। इस आदेश के तहत सरकारी पेयजल स्कीम के अलावा किसी भी तरह के नए ट्यूबवैल की खुदाई प्रतिबंधित है। यह आदेश भूजल की स्थिति सुधारने के लिए जारी हुए थे, लेकिन बावजूद इसके ये आदेश कागजी ही साबित हुए। प्रशासनिक उदासीनता के चलते अवैध रूप से ट्यूबवैल खोदे हैं जा रहे हैं और इनके पानी का व्यावसायिक उपयोग भी हो रहा है। मामला में यह चौंकाने वाला तथ्य है कि प्रतिवर्ष औसत या अच्छी बारिश के बाद भी भूजल भंडार में से 1.50 से 2 मीटर तक पानी का अतिरिक्त दोहन हो रहा है।
अलर्ट: रीत जाएंगे भंडार
हर साल बारिश के दौरान बढऩे वाले भूजल भंडार से अधिक दोहन गर्मी के मौसम तक हो जाता है। यह आंकड़े भयावह स्थिति तो पैदा कर ही रहे हैं। वहीं इससे भूजल भंडार के समाप्त होने की स्थिति भी बन सकती है। विभागीय आंकड़ों पर गौर करें तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि यदि अच्छी बारिश हो जाए तो भूजल भंडार में कुछ इजाफा होता है, लेकिन उसके बाद अंधाधुंध दोहन से जहां यह रिचार्ज हुआ पानी अगली सीजन से पूर्व ही पूरा हो जाता है। वहीं इस पानी के साथ ही भूजल भंडार में भी एक से डेढ़ मीटर तक कमी आ जाती है।खास बात यह है कि साल दर साल भूजल भंडार में कमी आती जा रही है।
195 प्रतिशत दोहन
जिला अतिदोहित श्रेणी में है। वर्तमान में जिले में औसत सालाना 195 प्रतिशत भूजल दोहन होता है। ऐसे में जितना भूजल प्राप्त हो रहा है। उससे दोगुनी खपत हो रही है। ऐसे में जितना भंडार रिचार्ज हो रहा है, उससे भी अधिक उसका दोहन जारी है। यही नहीं सबसे 95 प्रतिशत तक पानी का उपयोग कृषि क्षेत्र में हो रहा है।
हालात बन रहे विकट
वर्ष 2006, 2017 में अच्छी बारिश हुई। लेकिन उसके बाद भी भूजल स्तर में हर साल गिरावट आ रही है। 2004 से 2016 तक भूजल भंडार में 8.56 मीटर तक औसत गिरावट दर्ज की गई है। जबकि वर्ष 2004 से 2010 में यह गिरावट 7.53 मीटर थी। ऐसे में इतनी बारिश के बाद भी जिले का भूजल स्तर वर्ष 2004 की स्थिति तक भी नहीं पहुंच पाया है।
सालदर साल ऐसे घट बढ़ रहा भूजल
वर्ष गिरावट
2004 से 2010 तक 7.53
2004 से 2013 तक 8.83
2004 से 2014 तक 9.40
2004 से 2015 तक 10.40
2004 से 2016 तक 8.56
(आंकड़े भूजल विभाग)
इनका कहना
जालोर जिला अतिदोहित श्रेणी में है और हर साल भूजल भंडार में कमी आ रही है। अच्छी बारिश होने पर भूजल स्तर में भंडार में सुधार तो जरुर होता है, लेकिन इसके बाद भी हर साल औसत भंडार में लगातार कमी ही आती है। मुख्य रूप से सिंचाई के लिए भी भूजल भंडार का उपयोग ही हो रहा है। इधर, उसकी तुलना में हर साल बारिश अपेक्षाकृत कम ही होती है। नर्मदा परियोजना की पूरी तरह से क्रियान्विति के साथ साथ अच्छी बारिश से ही भूजल भंडार में सुधार हो सकता है।
– महेंद्र चौहान, भूजल वैज्ञानिक, भूजल विभाग, जालोर..