जालोर. देश आजाद होने के बाद वर्ष 1952 में पहली बार जालोर शहर के कुछ लोगों ने मिलकर अपने मौहल्ले में झंडा लहराया। राष्ट्रगान गाकर सलामी भी ली। पिता से सुने संस्मरणों को याद करते हुए रंगकर्मी अनिल शर्मा ने पत्रिका को देश की आजादी के बाद के कुछ ऐसे ही रोचक किस्से सुनाए जो जालोर से जुड़े हुए थे। बचपन की धुंधली सी यादों को बयां करते हुए उन्होंने बताया कि जब वे छोटे थे तो पिता से अक्सर अंग्रेजी हुकूमत के किस्से सुना करते थे। देश आजाद तो हो चुका था, लेकिन लोगों के जेहन में अभी गुलामी का वह दर्द बरकरार था। उन्होंने बताया कि आजादी के बाद 1952 में शहर के खानपुरावास स्थित होली चौक में पहली बार मौहल्लेवासियों ने गणतंत्र दिवस पर मिलकर झंडा लहराया। उस समय ना तो कोई पीटी और परेड होती थी और ना ही सांस्कृतिक कार्यक्रम। धीरे-धीरे यह पर्व गरिमामय ढंग से मनाया जाने लगा। वर्ष 1972 में पहला सांस्कृतिक कार्यक्रम नगरपालिका की ओर से आयोजित किया गया। इसके बाद स्कूलों में भी ऐसे आयोजन होने शुरू हुए।
काला साफा पहन जताया लोकतंत्र का विरोधरंगकर्मी शर्मा बताते हैं कि देश गुलामी से आजाद हुआ और इसके बाद संविधान लागू किया गया। उस समय मारवाड़ के तत्कालीन महाराजा ने पहली विधानसभा में काला साफा पहनकर लोकतंत्र का विरोध भी जताया था, लेकिन आज देश का जन-गण-मन संविधान में प्रगाढ़ आस्था रखता है।
स्कूली बच्चों ने निकाला था जुलूसमूलत:
जोधपुर हाल जालोर निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक चिरंजीलाल भाटी (81) ने भी पत्रिका से कुछ ऐसे ही संस्मरण साझा किए जो आजादी के बाद के थे। जब वे दस साल के थे और जोधपुर स्थित सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। आजादी के बाद 1947-48 में जोधपुर शहर की सभी स्कूलों के बच्चों ने बड़ा जुलूस निकाला था। उस समय ब्रिटिश सरकार थी और एज्युकेशन डायरेक्टर एपी कॉक्स थे। वहीं लोगों की ओर से हर घर पर तिरंगा झंडा लगराया जाता था। भाटी का कहना है कि विभागीय झांकियां सजाने का सिलसिला भी करीब तीस साल बाद शुरू हुआ।
आवागमन के लिए शहर में थे आठ तांगेभाटी ने बताया कि रियासत काल के दौरान शहर में आगवामन के लिए आठ तांगे (घोड़ा-गाड़ी) थे। इन तांगों के जरिए एक स्थान पर दूसरे स्थान पर लोग जाया करते। आजादी के बाद भी कुछ सालों तक ये तांगे चले। वहीं मुद्रा के चलन में पाई, आना, चार आना, आठ आना और रुपया हुआ करता। वहीं उस समय सरकारी वेतन प्रतिमाह औसतन 16 से 17 रुपए हुआ करता था।