शीतलामाता को बुधवार सुबह 8.27 बजे बाद लगेगा भोग
जालोरPublished: Mar 26, 2019 01:26:11 pm
मंगलवार रात 08.01 से भद्रा शुरू होगी, उससे पूर्व भोजन आदि बनाकर रखे। बुधवार सुबह 08.27 तक भद्रा समाप्त होगी, इसके बाद शीतला व ओरी माता की पूजा व बायोडा का नेवैद्य चढ़ाया जाएगा
शीतला सप्तमी को लेकर जिलेभर में मेले सजेंगे। मेले में झूले व हाट-बाजार लगाया जा रहा है।
जालोर/भीनमाल. शीतला सप्तमी पर्व चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने बताया कि मंगलवार को रात 08.01 से भद्रा शुरू होगी, उससे पूर्व भोजन आदि बनाकर रखे। बुधवार सुबह 08.27 तक भद्रा समाप्त होगी। इसके बाद शीतला व ओरी माता की पूजा व बायोडा का नेवैद्य चढ़ाया जाएगा।
मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी भोजन करना उचित नहीं होता है। यह सर्दियों का मौसम खत्म होने का संकेत होता है, इसे इस मौसम का अंतिम दिन माना जाता है। इस पूजा को करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं। उनके आशीर्वाद से दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोड़े, शीतला की फुंसियां, शीतला जनित दोष व नेत्र रोग दूर हो जाते हैं।
इस विधि से करे पूजन
त्रिवेदी ने बताया कि इस दिन लोग सूर्योदय से पहले उठकर ठंडे जल से स्नान करते हैं। इसके बाद शीतला माता के मंदिर में जाकर देवी को ठंडा जल अर्पित करके उनकी विधि-विधान से पूजा करते हैं। श्रीफल अर्पित करते हैं। एक दिन पूर्व पानी में भिगोई हुई चने की दाल चढ़ाते है। शीतला माता को ठंडे भोजन का नैवेद्य लगता है इसलिए भोजन एक दिन पहले हलवा, पूरी, दही बड़ा, पकौड़ी, पुए, रबड़ी आदि बनाकर रख लिया जाता है। अगले दिन सुबह महिलाएं इन चीजों का भोग शीतला माता को लगाकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन शीतला माता समेत घर के सदस्य भी बासी भोजन ग्रहण करते हैं। इसी वजह से इसे बासोड़ा पर्व भी कहा जाता है। शीतला सप्तमी की कथा सुनने के बाद घर आकर मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर हल्दी से हाथ के पांच-पांच छापे लगाए जाते हैं। जो जल शीतला माता को अर्पित किया जाता है उसमें से थोड़ा सा बचाकर घर लाते हैं और उसे पूरे घर में छींट देते हैं। इससे शीतला माता की कृपा बनी रहती है रोगों से घर की सुरक्षा होती है। शीतला सप्तमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है।
शीत रोगों से मिलता है छुटकारा
उन्होंने बताया कि स्कंद पुराण में शीतला देवी शीतला का वाहन गर्दभ बताया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोड़ों को सडऩे नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत: कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है। स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है।
सजेंगे मेले, करेंगे गेर नृत्य
उधर, शीतला सप्तमी को लेकर जिलेभर में मेले भी सजेंगे। मंदिरों में माता के दर्शन-पूजन कर मेलार्थी विभिन्न वस्तुओं की खरीदारी करेंगे। मेले में झूले व हाट-बाजार लगाया जा रहा है। जालोर, बागरा, सियाणा समेत जिलेभर के कई गांवों में मेले आयोजित किए जाएंगे। इसमें परम्परागत गेर नृत्य किया जाएगा।