जालोर

NAVRATRA 2019: सर सुंधा, धड़ कोटड़ा, पगला पिछोला री पाल। आपो आप विराजौ आहोर में, गले फूलों री माल

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जालोरOct 01, 2019 / 03:08 pm

Jitesh kumar Rawal

Gupt NAVRATRA

आहोर के चामुंडा माता मंदिर की चौखट पर झुकते हैं शीश, विख्यात है कस्बे में स्थित ऐतिहासिक चामुंडा माता मंदिर
शारदीय नवरात्र विशेष


जोगेश लोहार @ आहोर. कस्बे के दक्षिण में विराजित चामुंडा माता पूरे कस्बे की रक्षा करती हुई प्रतीत होती है। कस्बे की अधिष्ठात्री देवी मां चामुंडा के बारे में पूरे मारवाड़ में सर सुंधा, धड़ कोटड़ा, पगला पिछोला री पाल। आपो आप विराजौ आहोर में, गले फूलों री माल यह दोहा जन-जन की जुबान पर है। चामुंडा माता का पूरा शरीर कस्बे में स्थित ऐतिहासिक मंदिर में विराजित है।
इस दोहे के अनुसार माताजी का सिर का भाग सुंधा पर्वत पर, धड़ का भाग कोटड़ा में, मां के चरण पिछौला में स्थित है। आहोर में विराजित पूरे शरीर के बारे में तो कोई मतभेद नहीं है। हालांकि कोटड़ा व पिछौला के बारे में मतान्तर है। प्रत्येक नवरात्रि में माता के दर्शनों के लिए दर्शनार्थियों की भारी भीड़ उमडती है। आहोर माताजी के परचे भी खूब प्रसिद्घ है। इस मंदिर की स्थापना सैकड़ों वर्षों पूर्व मानी गई है। कस्बे के संस्थापक ठाकुर वैरिदास को मानते है। उन्होंने ही उस समय इस विशाल आहोर नगर की स्थापना छोटे से गांव आवरी के रूप में की थी। कस्बे की स्थापना के बाद एक समय तत्कालीन ठाकुर अनारसिंह को एक रात्रि में देवी ने स्वप्र में आकर कहा कि मैं तुम पर प्रसन्न हूं तथा शीघ्र ही मेरी उत्पत्ति होगी। जहां मेरी मूर्ति मिले वहां से एक बैलगाड़ी मेरी मूर्ति विराजमान कर गाजे-बाजे के साथ रवाना होना तथा जहां जाकर बैलगाडी अपने आप रूक जाए वही मुझे स्थापित कर मंदिर बनाना व पूजा-अर्चना करना। इस स्वप्र आने के दृष्टांत के दूसरे दिन सुबह ही कस्बे के डाकीनाड़ा तालाब में एक कुम्हार मिट्टी की खुदाई कर रहा था। अचानक खुदाई के दौरान उसका फावड़ा किसी पत्थर से टकराने की आवाज आई साथ ही मां के चिल्लाने की आवाज भी आई। इस कुम्हार ने पाया कि एक मूर्ति से उसका फावड़ा टकराया है। जिससे उस मूर्ति के गर्दन पर घाव होने से गर्दन झुक गई थी। इस कुम्हार ने इसी वक्त इसकी सूचना गांव के ठाकुर अनारसिंह को दी। ठाकुर अनारसिंह देवी के परम भक्त थे। सूचना मिलते ही वे ग्रामीणों के साथ खुदाई स्थल पर पहुंचे तथा बैलगाडी पर देवी की मूर्ति विराजित कर बैलगाडी को गाजे-बाजे के साथ रवाना किया। जहां बैलगाडी रूकी व बैल टस से मस नहीं होने लगे उस स्थान पर देवी की मूर्ति विराजित कर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया तथा मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करवाई। इस मंदिर की स्थापत्य कला आज भी अपने आप में नायाब है। मां चामुंडा के आशीर्वाद से यह कस्बा खूब रोशन हुआ। ग्रामीण माताजी के परचे से ही सैकडों वर्षों तक होली के दूसरे दिन पत्थर मार होली भाटागैर खेलते रहे। इन्ही परचों के कारण इस मंदिर में आने वाले प्रत्येक भक्त अपना शीश नवाकर खुशहाली की कामनाएं करता है। आसोज नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक मंदिर प्रांगण में महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
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