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सालों बाद भी नहीं ढूंढ पाए ‘ओरोबंकी’ का इलाज

locationजालोरPublished: Feb 22, 2020 11:05:56 am

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सालों बाद भी नहीं ढूंढ पाए  'ओरोबंकी' का इलाज

सालों बाद भी नहीं ढूंढ पाए ‘ओरोबंकी’ का इलाज

चितलवाना. कृषि विभाग की ओर से हर किसान को आधुनिक खेती पर जोर देने की बात कही जा रही है, लेकिन सालों से रायड़ा व सरसों की फसल की जड़ों में उगने वाला ओरोबंकी (परजीवी पौधा) के इलाज के लिए कोई दवा नहीं ढूंढ पाने से किसानों को हर बार नुकसान उठाना पड़ रहा है। किसानों के खेतों में सालों से सरसों व रायड़ा की फसल की जड़ पर यह परजीवी पौधा उगने से फसलें नष्ट हो रही हैं। इसकी चपेट में आने के कुछ ही दिनों बाद फसल कमजोर होकर सूखने लगती है। फसल को पोषण तत्व नहीं मिलने से फसल का दाना भी पतला हो जाता है। जिसके कारण तेल व वजन की मात्रा भी घटकर आधे से कम रह जाती है। ऐसे में किसानों को इसका काफी नुकसान उठाना पड़ता है।
40 दिन बाद उगता है देवका
रबी की सीजन में ओरोबंकी का पौधा अधिकतर रायड़े व सरसों की फसल में ही उगता है। फसल की बुवाई के करीब 40 दिन बाद जैसे ही उस पर फूल आना शुरू होते हैं, ये परजीवी भी फसलों की जड़ों में उगना शुरू होता है। जब फसल दाना देने की तैयारी में होती है, उस समय यह परजीवी जड़ों से लवण व पानी सोख लेते हैं। इससे फसल कमजोर हो जाती है और धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है।
कृषि विभाग नहीं ढूंढ पाया इलाज
रबी की सीजन में रायड़ा व सरसों की फसल में उगने वाले ओरोबंकी से होने वाले फसलों में नुकसान के बारे में कृषि विभाग को भी जानकारी है, लेकिन सालों बाद भी कृषि विभाग फसलों में इस बीमारी का इलाज नहीं ढूंढ पाया है। ऐसे में आज भी किसानों की फसलें इस परजीवी की चपेट में आने से चौपट हो रही हैं।
किसान खुद ही करते हैं बचाव
किसानों की ओर से रायड़े की फसल की जड़ में उगने वाले ओरोबंकी के पौधे से बचाव के लिए चक्रवती फसल की बुवाई की जाती है। वहीं ओरोबंकी के पौधों को इकट्ठा कर जमीन में गाड़ देने से ये पौधे कम उगते हैं।
इनका कहना…
रायड़ा व सरसों की फसल में ओरोबंकी उगने से ये फसल को सुखाकर चौपट कर देते हैं, लेकिन अब तक बाजार में इसकी कोई दवा नहीं आई है।
– प्रेमाराम लोमरोड़, किसान, लियादरा
ओरोबंकी पौधे की खुद की कोई जड़ नहीं होने से इसका अब तक कोई इलाज ही नहीं मिल पाया है। ऐसे में किसानों को इसे खेत से उखाड़ कर जमीन में दफना देना चाहिए। ताकि इसके बीज कम हो सकें।
– राकेश मीणा, कृषि पर्यवेक्षक, चितलवाना
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