पुलिस थाने तक नहीं पहुंचते
अक्सर इस तरह के मामले में 90 प्रतिशत तक लोग थाने इस डर से नहीं पहुंचते कि उन्होंने खाली चेक फाइनेंसर को दे रखा होता है। वहीं स्टाम्पर करार भी किया होता है। हालांकि लिखित करार और वसूली की शर्तों में रात दिन का फर्म और अंतर होता है। सबकुछ होते हुए भी मजबूरी में पीडि़त इस कर्ज के तले दबता ही चला जाता है और नौबत यहां तक आ जाती है कि उसे अपना घर, गहने, जमीन गिरवी रखनी पड़ती है और इतना भारी भरकम ब्याज और ब्याज पर ब्याज नहीं चुकता करने पर उसे यह सबकुछ फाइनेंसर को हवाले करना पड़ता है।
अक्सर इस तरह के मामले में 90 प्रतिशत तक लोग थाने इस डर से नहीं पहुंचते कि उन्होंने खाली चेक फाइनेंसर को दे रखा होता है। वहीं स्टाम्पर करार भी किया होता है। हालांकि लिखित करार और वसूली की शर्तों में रात दिन का फर्म और अंतर होता है। सबकुछ होते हुए भी मजबूरी में पीडि़त इस कर्ज के तले दबता ही चला जाता है और नौबत यहां तक आ जाती है कि उसे अपना घर, गहने, जमीन गिरवी रखनी पड़ती है और इतना भारी भरकम ब्याज और ब्याज पर ब्याज नहीं चुकता करने पर उसे यह सबकुछ फाइनेंसर को हवाले करना पड़ता है।
लीगल प्रोसेस में तो लाइसेंस लेना पड़ता है
फाइनेंस एजेंसी को बकायदा लाइसेंस लेना होता है और वह रजिस्टर्ड होने के दौरान नियम शर्तों का हवाला भी देती है। लेकिन जालोर जिले की बात करें तो 12 से 15 हजार ऐसे अवैध फाइनेंसर है जो रजिस्टर्ड नहीं है और मनमर्जी से ही फाइनेंस का अवैध कारोबार चला रहे हैं। जरुरतमंद अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए और जल्द से जल्द राशि प्राप्त करने के चक्कर में इन अवैध फाइनेंसर के चक्कर में आते हैं और उसके बाद सबकुछ बर्बाद हो जाता है। जिले की बात करें तो 21 रजिस्टर्ड क्रेडिट सोसायटी है और सूत्र बताते हैं कि 2017 के बाद नई कोई सोसायटी भी रजिस्टर्ड नहीं है।
फाइनेंस एजेंसी को बकायदा लाइसेंस लेना होता है और वह रजिस्टर्ड होने के दौरान नियम शर्तों का हवाला भी देती है। लेकिन जालोर जिले की बात करें तो 12 से 15 हजार ऐसे अवैध फाइनेंसर है जो रजिस्टर्ड नहीं है और मनमर्जी से ही फाइनेंस का अवैध कारोबार चला रहे हैं। जरुरतमंद अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए और जल्द से जल्द राशि प्राप्त करने के चक्कर में इन अवैध फाइनेंसर के चक्कर में आते हैं और उसके बाद सबकुछ बर्बाद हो जाता है। जिले की बात करें तो 21 रजिस्टर्ड क्रेडिट सोसायटी है और सूत्र बताते हैं कि 2017 के बाद नई कोई सोसायटी भी रजिस्टर्ड नहीं है।
चिंता: कर्ज से तंग आकर हर दिन 15 मौतें
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ही आंकड़े बताते हैं कि कर्ज से तंग आकर हर साल हजारों जानें जाती हैं। 2020 में 5 हजार 213 लोग ऐसे थे जिन्होंने कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। औसतन 15 लोगों ने इस हिसाब से प्रतिदिन आत्महत्या की। इसी तरह वर्ष 2019 में यह आंकड़ा 5 हजार 908 था।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ही आंकड़े बताते हैं कि कर्ज से तंग आकर हर साल हजारों जानें जाती हैं। 2020 में 5 हजार 213 लोग ऐसे थे जिन्होंने कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। औसतन 15 लोगों ने इस हिसाब से प्रतिदिन आत्महत्या की। इसी तरह वर्ष 2019 में यह आंकड़ा 5 हजार 908 था।
फैक्ट फाइल
21 के्रडिट सोसायटी जालोर जिले में रजिस्टर्ड
15 हजार से अधिक अवैध फाइनेंसर जालोर जिले में
2 लाख से अधिक लोग अवैध फाइनेंसर से जुड़े
2017 के बाद जालोर में कोई नई सोसायटी नहीं
- सहायता के नाम पर लूट का बिजनेस, जिले में चल रहा अवैध फाइनेंस का कारोबार नकेल जरुरी
21 के्रडिट सोसायटी जालोर जिले में रजिस्टर्ड
15 हजार से अधिक अवैध फाइनेंसर जालोर जिले में
2 लाख से अधिक लोग अवैध फाइनेंसर से जुड़े
2017 के बाद जालोर में कोई नई सोसायटी नहीं
- सहायता के नाम पर लूट का बिजनेस, जिले में चल रहा अवैध फाइनेंस का कारोबार नकेल जरुरी
केस-1
जालोर में एक परिवार ने फाइनेंस पर 1 लाख रुपए बिजनेस परपज से 10 रुपए प्रति सैकड़ा लिए थे, नहीं लौटाने पर ब्याज के ऊपर ब्याज जोड़ा गया, परिवार ने खाली चेक दिए थे, सूदखोर ने 10 लाख बकाया का हवाला देकर मकान की कब्जे कर लिया।
जालोर में एक परिवार ने फाइनेंस पर 1 लाख रुपए बिजनेस परपज से 10 रुपए प्रति सैकड़ा लिए थे, नहीं लौटाने पर ब्याज के ऊपर ब्याज जोड़ा गया, परिवार ने खाली चेक दिए थे, सूदखोर ने 10 लाख बकाया का हवाला देकर मकान की कब्जे कर लिया।
केस-2
जसवंतपुरा में ही व्यापारी ने कुछ समय पूर्व व्यापार के लिए धनराशि ब्याज पर इसी तरह से फाइनेंस करवाई थी। कोरोना काल में ब्याज चौपट हुआ और उसका नतीजा यह रहा कि ब्याज पर ब्याज सूदखोर जोड़ता रहा और उसके बाद गनीमत रही कि समाज के लोगों ने बड़ी राशि एकत्र कर उस व्यापारी को बोझ से मुक्त करवाया
जसवंतपुरा में ही व्यापारी ने कुछ समय पूर्व व्यापार के लिए धनराशि ब्याज पर इसी तरह से फाइनेंस करवाई थी। कोरोना काल में ब्याज चौपट हुआ और उसका नतीजा यह रहा कि ब्याज पर ब्याज सूदखोर जोड़ता रहा और उसके बाद गनीमत रही कि समाज के लोगों ने बड़ी राशि एकत्र कर उस व्यापारी को बोझ से मुक्त करवाया
केस-3
जालोर का एक युवा व्यापारी इसी तरह से करीब तीन साल पूर्व एक अवैध फाइनेंसर के चक्कर में पड़ा। उसका चोकलेट, बिस्किट का व्यापार अच्छा चल रहा था। फाइनेंस पर रुपए लेने के बाद 10 के सैकड़े पर ब्याज इस कदर भारी पड़ा कि 2 साल में व्यापार बंद हो गया और वह व्यापारी आज तनाव की स्थिति में शराब का आदी हो चुका और पुराना व्यापार भी बंद हो चुका।
जालोर का एक युवा व्यापारी इसी तरह से करीब तीन साल पूर्व एक अवैध फाइनेंसर के चक्कर में पड़ा। उसका चोकलेट, बिस्किट का व्यापार अच्छा चल रहा था। फाइनेंस पर रुपए लेने के बाद 10 के सैकड़े पर ब्याज इस कदर भारी पड़ा कि 2 साल में व्यापार बंद हो गया और वह व्यापारी आज तनाव की स्थिति में शराब का आदी हो चुका और पुराना व्यापार भी बंद हो चुका।
एक्सपर्ट व्यू...बैंकिंग प्रोसेस से ही राशि लें
धन की आवश्यकता होने पर जहां तक संभव हो बैंक की जो भी संस्था बनी हुई है। उन्हीं से संपर्क करें और सहायता लें। पहले दस्तावेज की प्रक्रिया बैंकों में थोड़ी मुश्किल थी, लेकिन अभी ऐसा नहीं है। चूंकि बैंक का सिस्टम निर्धारित होता है और काम साथ सुथरा होता है तो गड़बड़ी नहीं होती है। ऐसे फाइनेंसर के चक्कर में नहीं पड़े, जो मानक के अनुरूप नहीं है, सीधे तौर पर अवैध है। ऐसे मामलों में प्रोपर लिखा पढ़ी तक नहीं होती है। जिसके कारण पैसों का विवाद भी खड़ा होता है। खाली चेक नहीं देना चाहिए फिर भी कहीं फाइनेंस करवा रहे हैं तो सिक्यूरिटी के रूप में कुछ और दिया जाना चाहिए। वहीं जरुरत होने पर दो पक्षों में लेन देन हो भी हो रहा हो तो स्वतंत्र गवाह वहां जरुर मौजूद रहना चाहिए, ताकि विवाद की स्थिति नहीं बने। फिर भी इस तरह के किसी विवाद में फंसने की स्थिति बनती है तो संबंधित थाने में पुलिस से संपर्क करें, पुलिस सहायता और सहयोग को तत्पर है।
- हर्षवर्धन अग्रवाला, एसपी, जालोर
धन की आवश्यकता होने पर जहां तक संभव हो बैंक की जो भी संस्था बनी हुई है। उन्हीं से संपर्क करें और सहायता लें। पहले दस्तावेज की प्रक्रिया बैंकों में थोड़ी मुश्किल थी, लेकिन अभी ऐसा नहीं है। चूंकि बैंक का सिस्टम निर्धारित होता है और काम साथ सुथरा होता है तो गड़बड़ी नहीं होती है। ऐसे फाइनेंसर के चक्कर में नहीं पड़े, जो मानक के अनुरूप नहीं है, सीधे तौर पर अवैध है। ऐसे मामलों में प्रोपर लिखा पढ़ी तक नहीं होती है। जिसके कारण पैसों का विवाद भी खड़ा होता है। खाली चेक नहीं देना चाहिए फिर भी कहीं फाइनेंस करवा रहे हैं तो सिक्यूरिटी के रूप में कुछ और दिया जाना चाहिए। वहीं जरुरत होने पर दो पक्षों में लेन देन हो भी हो रहा हो तो स्वतंत्र गवाह वहां जरुर मौजूद रहना चाहिए, ताकि विवाद की स्थिति नहीं बने। फिर भी इस तरह के किसी विवाद में फंसने की स्थिति बनती है तो संबंधित थाने में पुलिस से संपर्क करें, पुलिस सहायता और सहयोग को तत्पर है।
- हर्षवर्धन अग्रवाला, एसपी, जालोर