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शांति की धरती लद्दाख में छात्रों ने खोला सीएए के खिलाफ मोर्चा

locationजम्मूPublished: Dec 31, 2019 12:15:30 am

Submitted by:

arun Kumar

Against CAA: चंद्रभूमि के नाम से चर्चित शांतप्रिय लद्दाख (ladakh) सीएए को लेकर बर्फबारी में भी गर्म है। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के छात्रों ने संविधान के तहत संरक्षण और नौकरी में आरक्षण (reservation in Job) को लेकर मोर्चा खोला है। लेह के बाद अब कारगिल (kargil) जिले के छात्र संगठन भी आंदोलन का हवा दे रहे हैं।

शांति की धरती लद्दाख में छात्रों ने खोला सीएए के खिलाफ मोर्चा

शांति की धरती लद्दाख में छात्रों ने खोला सीएए के खिलाफ मोर्चा

लेह के बाद कारगिल जिले के छात्र संगठन सड़कों पर
जम्मू.
चंद्रभूमि के नाम से चर्चित शांतप्रिय लद्दाख सीएए को लेकर बर्फबारी में भी गर्म है। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के छात्रों ने संविधान के तहत संरक्षण और नौकरी में आरक्षण को लेकर मोर्चा खोला है। लेह के बाद अब कारगिल जिले के छात्र संगठन भी आंदोलन का हवा दे रहे हैं। स्टूडेंट एज्यूकेशनल मूवमेंट ऑफ कारगिल (एसईएमओके) व अन्य छात्र संगठनों ने मिलकर कारगिल के लाल चौक में एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। छात्रों ने सीएए और एनआरसी को विभााजनकारी बताते हुए निंदा की। इससे पहले स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन ऑफ यूनिफाइड लद्दाख (एसओयूएल) लेह के बैनर तले विभिन्न छात्र संगठनों ने एनडीएस स्टेडियम से लेह बाजार तक रैली निकाली। हाथो में बैनर पकडकऱ, छात्रों ने अपनी सबसे मजबूत आवाज में 6वीं अनुसूची के लिए मांग उठाई। इस क्षेत्र में प्रचलित ठंड के बावजूद भारी संख्या में प्रदर्शनकारी छात्र अपनी मांगों को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गए और सभी लोगों से अपील की कि अगर लद्दाख के भविष्य की चिंता है तो वे इसमें शामिल हों।
नर्मदिली लद्दाखियों की तासीर है मगर…

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कभी भी लद्दाखियों के बीच झगड़ों की बात सुनने में नहीं आती है। उन्होंने जब ‘फ्री लद्दाख फ्रॉम कश्मीर’ तथा लेह को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ा था तो सरकार ही नहीं, बल्कि सारा देश हैरान था कि हमेशा शांतिप्रिय रहने वाली कौम ने ये कौन सा रास्ता अख्तियार किया है? लद्दाखियों का यह प्रथम आंदोलन था जिसमें हिंसा का प्रयोग किया गया था जबकि अक्सर लड़ाई-झगड़ों में वे पत्थर से अधिक कोई हथियार प्रयोग में नहीं लाते थे। इसके मायने यह नहीं है कि लद्दाखी कमजोर दिल के होते हैं बल्कि देश की सीमाओं पर जौहर दिखलाने वालों में लद्दाखी सबसे आगे होते हैं। ताकतवर, शूरवीर तथा सीधे-सादे होने के साथ-साथ लद्दाखवासी नर्म दिल तथा परोपकारी भी होते हैं। मेहमान को भगवान का रूप समझकर उसकी पूजा की जाती है। उनकी नर्मदिली ही है कि उन्होंने तिब्बत से भागने वाले सैकड़ों तिब्बतियों को अपने यहां शरण देने के साथ-साथ उनकी भरपूर मदद भी की। इसीलिए तो उनकी धरती को ‘चांद की धरती’ कहा जाता है, क्योंकि जहां लोगों के दिल चांद की तरह साफ हैं।

पूजा-पाठ तथा भगवान की मान्यता सबसे ज्यादा यहीं

 

शांति की धरती लद्दाख में छात्रों ने खोला सीएए के खिलाफ मोर्चा
भारत में अगर सबसे अधिक पूजा-पाठ तथा भगवान को माना जाता है तो वह लद्दाख है। चंद्रभूमि के नाम से चर्चित लद्दाख सचमुच चन्द्रभूमि ही है। यहां पर धर्म को अधिक महत्व दिया जाता है। प्रत्येक गली-मोहल्ले में छोटे मंदिर तथा ‘प्रेयर व्हील’ मौजूद हैं जिन्हें घूमने भर से सभी पाप धुल जाते हैं तथा भगवान का नाम कई बार जपा जाता है, ऐसा लेहवासियों का दावा है। लेह में कितने स्तूपा हैं, इसकी कोई गिनती नहीं है। शहर के भीतर ही नहीं, बल्कि सभी सीमांत गांवों, पहाड़ों अर्थात जहां भी आबादी का थोड़ा-सा भाग रहता है, वहां इन्हें देखा जा सकता है। इन स्तूपों में कोई मूर्ति नहीं होती बल्कि मंदिर के आकार के मिट्टी-पत्थरों से भरा एक ढांचा खड़ा किया गया होता है जिसे स्तूपा कहा जाता है। वैसे प्रत्येक परिवार की ओर से एक स्तूपा का निर्माण अवश्य किया जाता है। स्तूपा के साथ-साथ प्रार्थना चक्र जिसे लद्दाखी भाषा में ‘माने तंजर’ कहा जाता है, लद्दाख में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। 5 से 6 फुट ऊंचे इन तांबे से बने चक्रों पर ‘मने पदमने हों’ के मंत्र खुदे होते हैं। ये चक्र धुरियों पर घूमते हैं और एक बार घुमाने से वह कई चक्कर खाता है तो सैकड़ों बार उपरोक्त मंत्र ऊपर लगी घंटी से टकराते हैं जिनके बारे में बौद्धों का कहना है कि इतनी बार वे भगवान का नाम जपते हैं।
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