लेते थे सिफ एक रुपए सैलरी
डॉ. साराभाई के पिता के सफल व्यवसायी थे। निजी संपत्ति को देखते हुए उन्होंने अपने काम के लिए मात्र एक रुपए की टोकन सैलरी में काम किया। 1942 में साराभाई का विवाह मृणालिनी साराभाई से हुआ था। इनकी पहली संतान कार्तिकेय का जन्म 1947 में हुआ। डॉ. साराभाई ने अहमदाबाद में एक प्रायोगिक उपग्रह के जरिए संचार माध्यम बनवाने में भूमिका निभाई जो भारतीय गांवों के लिए एक शैक्षिक टेलीविजऩ परियोजना की महत्वपूर्ण कड़ी थी। इसे एक साल बाद अमरीकी उपग्रह के साथ शुरू होना था लेकिन बाद में वो भारत निर्मित और भारत से लॉन्च होने वाले उपग्रह में बदल गया। 30 दिसंबर 1971 में केवल 52 साल की उम्र में ही इनकी मौत हो गई। केरल के एक सरकारी होटल में नींद में ही उन्होंने प्राण त्याग दिया था। वे केरल के थुंबा रॉकेट-लॉंचिंग स्टेशन में होने वाली एक कॉन्फ्रेन्स में हिस्सा लेने के लिए वहां पहुंचे थे। इसके विकास में उनका योगदान था।
कलाम जैसी प्रतिभा को तराशा
डॉ. साराभाई ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ.अब्दुल कलाम का न सिर्फ इंटरव्यू लिया, बल्कि उनके करियर के शुरुआती चरण में उनकी प्रतिभा को निखारने में अहम भूमिका निभाई। डॉ.कलाम ने खुद कहा था कि वह तो उस फील्ड में नवागंतुक थे। डॉ.साराभाई ने ही उनमें खूब दिलचस्पी ली और उनकी प्रतिभा को निखारा। डॉ. अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन बनाने वाले डॉ. साराभाई ही थे। डॉ. कलाम ने कहा था कि डॉ. साराभाई ने मुझे इसलिए नहीं चुना था क्योंकि मैं काफी योग्य था बल्कि मैं काफी मेहनती था। उन्होंने मुझे आगे बढऩे के लिए पूरी जिम्मेदारी दी। उन्होंने न सिर्फ उस समय मुझे चुना जब मैं योग्यता के मामले में काफी नीचे था, बल्कि आगे बढऩे और सफल होने में भी पूरी मदद की। अगर मैं नाकाम होता तो वह मेरे साथ खड़े होते।