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Kargil: अब आंख उठाने की भी जुर्रत नहीं करेगा दुश्मन

locationजम्मूPublished: Jul 24, 2019 05:36:25 pm

Submitted by:

Nitin Bhal

Kargil War: कारगिल युद्ध ( Kargil ) देश के लिए गर्व, जोश और सम्मान ( Indian Army ) का प्रतीक है। युद्ध के 20 साल बाद भी इस युद्ध के बारे में चर्चा कर लोग रोमांचित हो उठते हैं। मई से जुलाई 1999 में हुए इस युद्ध में नापाक पड़ोसी पाकिस्तान ( Pakistan ) ने…

Indian Army strongly standing in Kargil

Kargil: अब आंख उठाने की भी जुर्रत नहीं करेगा दुश्मन

द्रास (कारगिल) योगेश. कारगिल युद्ध ( Kargil War ) देश के लिए गर्व, जोश और सम्मान ( Indian army ) का प्रतीक है। युद्ध के 20 साल बाद भी इस युद्ध के बारे में चर्चा कर लोग रोमांचित हो उठते हैं। मई से जुलाई 1999 में हुए इस युद्ध में नापाक पड़ोसी पाकिस्तान ( Pakistan ) ने ने धोखे से कारगिल और आस-पास की पहाडिय़ों पर कब्जा कर लिया। विषम परिस्थितियों के बावजूद भारतीय सेना ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया और कारगिल पर तिरंगा फहराया। 1999 की परिस्थितियों को देखते भारतीय सेना ने यहां अपनी क्षमताओं में खासा इजाफा किया है। हालात यह हैं कि अब भारत यहां पाकिस्तान और चीन के सामने मजबूती से खड़ा है। युद्ध के बीस साल गुजर जाने के बाद भारतीय सेना ने यहां आधुनिक हथियारों और उच्च प्रशिक्षण के दम पर ऐसी पैठ बनाई है कि अब कोई भी दुश्मन यहां आंख उठा कर नहीं देख सकता।

खड़ा किया आधारभूत ढांचा

Indian Army strongly standing in Kargil

लद्दाख क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करने के लिए समर्पित 14 कोर के साथ, सीमा चौकियों के लिए बेहतरीन सडक़ नेटवर्क, सैनिकों और उपकरणों की आसान गतिशीलता के लिए 70 पुलों का निर्माण, ेिकया गया है। कारगिल युद्ध स्कूल, नए और नवीनतम उपकरणों के साथ शामिल सैनिकों के दम पर भारत चीन और पाकिस्तान के सामने मजबूती से खड़ा है। नियंत्रण रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ सैन्य निर्माण के लिए सशस्त्र बलों द्वारा किए गए ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के अलावा, युद्ध के बाद कारगिल बैटल स्कूल का गठन किया गया था। इस स्कूल मे हर सैनिक को इस इलाके से परिचित होने के लिए बुनियादी प्रशिक्षण दिया जाता है। इससे पहले सैनिक आमतौर पर गुलमर्ग कश्मीर के हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल में ट्रेनिंग करते थे।


परिस्थिति के हिसाब से प्रशिक्षण

Indian Army strongly standing in Kargil

कारगिल बैटल स्कूल के लेफ्टिनेंट कर्नल विमल शर्मा ने कहा कि हमें यह समझने की ज़रूरत है कि यहां का इलाका बहुत ही दुर्गम है, यहां की जलवायु बहुत कठोर है, सर्दियों में तापमान माइनस 40 तक हो जाता है और हमारे पास जो पोस्ट्स हैं वे 10,000 से 19,0000 फीट तक की ऊंचाई पर हैं। इसलिए अगर इलाक़ा ऐसा है और मौसम ऐसा है तो ट्रनिंग भी अलग होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ट्रेनिंग के लिए जवान यहां आते हैं तो हम उन्हें कौशल प्रदान करते हैं। प्रशिक्षण को पांच पहलुओं में विभाजित किया गया है। आक्लिमेटाइजेशन, शारीरिक फिटनेस, रॉक क्लाइम्बिंग, बर्फ पर चढऩे और पहाड़ों की लड़ाई। उन्होंने दावा किया कि विशेष प्रशिक्षण सैनिकों को उनके कार्यकाल के लिए मदद करता है और किसी भी स्थिति में, वे क्षेत्र में किसी भी कार्य को करने में सक्षम हैं। अन्य नवीनतम अग्रिम उपकरण है, उच्च संघर्ष क्षेत्रों में लक्ष्य और रात के संचालन की प्रभावी निगरानी के लिए उन्नत हस्त-आयोजित थर्मल इमेजर्स है।

जुलाई 1999 को खत्म हुआ था कारगिल युद्ध

भारत और पाकिस्तान के बीच चौथा युद्ध मई से जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के कारगिल जिले और नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ कई स्थानों पर लड़ा गया था। कारगिल युद्ध के परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान दोनों देशों को भारी नुकसान हुआ। 527 भारतीय सैनिक शहीद हुए और 1,363 सैनिक घायल (सभी नाम कारगिल युद्ध स्मारक में देखे जा सकते हैं) हुए। जबकि पाकिस्तानी सेना के नुकसान की खबरों में विरोधाभास है।

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