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सरयू राय ने मात्र 20 दिनों में ध्वस्त किया था BJP का अभेद किला, अपनाई यह रणनीति

locationजमशेदपुरPublished: Dec 30, 2019 08:33:07 pm

Submitted by:

Prateek

विशलेषण करने पर पता चला कि झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 में सबसे उलटफेर करने वाला परिणाम जमशेदपुर पूर्वी निर्वाचन क्षेत्र से देखने को मिला…

सरयू राय ने मात्र 20 दिनों में ध्वस्त किया था BJP का अभेद किला, अपनाई यह रणनीति

सरयू राय ने मात्र 20 दिनों में ध्वस्त किया था BJP का अभेद किला, अपनाई यह रणनीति

(रांची, जमशेदपुर): महागठबंधन के नेता हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। अन्य तीन नेताओं ने कैबिनेट मंत्री के तौर पर शपथ ली। इसी बीच विशलेषण करने पर पता चला कि झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 में सबसे उलटफेर करने वाला परिणाम जमशेदपुर पूर्वी निर्वाचन क्षेत्र से देखने को मिला। यहां बिना किसी खास तैयारी के निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पूर्व मंत्री सरयू राय ने भाजपा प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के 25 वर्षों से अभेद्य रहे किले को ध्वस्त करने में सफलता हासिल की।


भाजपा नेतृत्व द्वारा जमशेदपुर पश्चिमी सीट के विधायक और मंत्री सरयू राय के टिकट पर नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू हो जाने तक कोई फैसला नहीं लिया गया और जब नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि समाप्त होने में तीन दिन बचे थे, तो पार्टी से क्षुब्ध सरयू राय ने यह ऐलान कर दिया कि अब भाजपा उन्हें जमशेदपुर पश्चिमी सीट से टिकट देने पर विचार नहीं करें, वे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जमशेदपुर पूर्वी सीट से चुनाव लड़ेंगे। प्रारंभ में सरयू राय की ओर से जमशेदपुर पश्चिमी और जमशेदपुर पूर्वी दोनों सीट से चुनाव लड़ने की बात कही गई, लेकिन कुछ ही घंटों बाद उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि जमशेदपुर पश्चिमी सीट के लिए उन्होंने नामांकन पत्र जरूर खरीदा था, लेकिन नामांकन पत्र सिर्फ जमशेदपुर पूर्वी सीट के लिए दाखिल करेंगे। इस फैसले के साथ ही उन्होंने मंत्री पद और विधानसभा सदस्यता से भी त्यागपत्र देने की घोषणा कर दी।

 

सरयू राय के इस फैसले पर राजनीतिक विश्लेषकों को लगा कि यह जल्दबाजी में उठाया गया कदम है, क्योंकि बिना कोई खास तैयारी मुख्यमंत्री रघुवर दास को जमशेदपुर पूर्वी से चुनौती देना कठिन काम है, जबकि मतदान की तिथि में मात्र 20 दिन ही शेष रह गए है। हालांकि 25 वर्षों से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे मुख्यमंत्री रघुवर दस के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी जरूर थी, लेकिन इसे वोटों में तब्दील कर पाना आसान नहीं था। परंतु सरयू राय ने नामांकन दाखिल करने के पहले दिन से ही अपने समर्पित कार्यकर्त्ताओं और रघुवर दास के विरोधियों को साथ लेकर मिशन मोड के साथ मैदान में उतर पड़े।


प्रचार में अपनाई यह रणनीति…

पांच दिसंबर को चुनाव प्रचार समाप्त होना था, सरयू राय ने अपने विश्वासियों को लेकर एक टीम बनाई और जब यह टीम मैदान में उतरी, तो रघुवर दास से नाराज लोगों का जबर्दस्त साथ मिलने लगा। सरयू राय प्रतिदिन चुनाव प्रचार के लिए घंटों पैदल चलते और 65 वर्ष से अधिक उम्र हो जाने के बावजूद उनके साथ चलने वाले युवा समर्थक और सुरक्षाकर्मियों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था।


सरयू राय ने 81 बस्तियों में रहने वाले लोगों को मालिकाना हक दिलाने के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया, इससे बिरसा नगर क्षेत्र में रहने वाली करीब सवा लाख की आबादी में खासा प्रभाव पड़ा। वहीं भाजपा के गढ़ माने वाले एग्रिको, भालूबासा, बारडीह, ह्यूम पाइप रोड में भी रघुवर दास के खिलाफ माहौल बनाने से सरयू राय को बड़ी सफलता मिली। दूसरी तरफ कांग्रेस ने यहां पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ को उम्मीदवार बनाया, प्रारंभ में सरयू राय के समर्थकों को लगा कि कांग्रेस नेतृत्व भाजपा को जमशेदपुर पूर्वी सीट से हराने के लिए उन्हें समर्थन देगी और उम्मीदवार हटा लेगी, क्योंकि कांग्रेस गठबंधन में सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने भी ऐसी अपील की थी, लेकिन जब कांग्रेस ने ऐसा करने से इंकार दिया, तो सरयू राय के समर्थक गौरव वल्लभ की अनदेखी कर जोर-शोर से खुद को स्थापित करने में जुट गए, जिससे लोगों को यह लगा कि सरयू राय ही रघुवर दास को चुनौती दे सकते है और रघुवर दास के विरोधी उनके पक्ष में गोलबंद होते चले गए।


चुनाव प्रचार और मतदान के दिन क्षेत्र में मौजूद रहने वाले पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों को 23 दिसंबर को आने वाला परिणाम चौंकाने वाला नहीं लगा। सभी पूर्व से ही ऐसे परिणाम की अपेक्षा कर रहे थे। यह चुनाव परिणाम सिर्फ जमशेदपुर पूर्वी सीट तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे झारखंड में रघुवर विरोध का नारा भाजपा विरोध में तब्दील हो गया और भाजपा के हाथ से सत्ता निकल गई।

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