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भगवान राम ने इन गुफाओं में खींची थी रेखाएं, नाम पड़ा रामरेखा

locationजमशेदपुरPublished: Aug 08, 2020 05:09:39 pm

Submitted by:

Yogendra Yogi

(Lord Ram) सिमडेगा जिला मुख्यालय (Jharkhand News ) से लगभग 22 किमी दूर एक ऐसा धार्मिक स्थल, जहां स्वयं मयार्दा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम सपत्नीक पधारे थे। रामरेखा धाम श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। लोगों की मान्यता है कि बड़ी-बड़ी शिलाओं से ढके गुफा के (Ram scratched lines in cave ) अंदर छत में खींची गई लकीरें स्वयं प्रभु श्रीराम ने खींची है। इसी कारण से पावन धर्मस्थली का नाम रामरेखा धाम (Ramrekha Dham ) पड़ा है।

भगवान राम ने इन गुफाओं में खींची थी रेखाएं, नाम पड़ा रामरेखा

भगवान राम ने इन गुफाओं में खींची थी रेखाएं, नाम पड़ा रामरेखा

(Lord Ram) जमशेदपुर(झारखंड): (Jharkhand News ) सिमडेगा जिला मुख्यालय से लगभग 22 किमी दूर एक ऐसा धार्मिक स्थल, जहां स्वयं मयार्दा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम सपत्नीक पधारे थे। रामरेखा धाम श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है, जो प्राकृतिक सौंदर्य से भी परिपूर्ण है। लोगों की मान्यता है कि बड़ी-बड़ी शिलाओं से ढके गुफा के (Ram scratched lines in cave ) अंदर छत में खींची गई लकीरें स्वयं प्रभु श्रीराम ने खींची है। इसी कारण से पावन धर्मस्थली का नाम रामरेखा धाम (Ramrekha Dham ) पड़ा है। धार्मिक दृष्टिकोण से यह धाम बहुत महत्वपूर्ण है। रामरेखा धाम में हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मेला का आयोजन किया जाता है।

पौरोणिक प्रतीक मौजूद हैं
रामरेखा धाम में ऐसे कई प्रमाण हैं, जिससे यहां पुरातात्विक संरचनाओं का पता चलता है। यहां पर सीता चूल्हा, गुप्त गंगा, भगवान के चरण पादुका आज भी मौजूद हैं। वनवास के दौरान मयार्दा पुरुषोत्तम इसी रास्ते से होकर गए थे। रामरेखाधाम परिसर में प्रभु श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान के अलावा भगवान शंकर की प्रतिमाएं हैं। वैसे तो यहां पूजा के लिए हर दिन श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन कार्तिक मेले के समय में पूर्णिमा के मौके पर बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा पर लगता है मेला
झारखंड के अलावा कई राज्यों से यहां श्रद्धालु आते हैं। वैसे तो हर दिन यहां पूजा करने श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन कार्तिक पूर्णिमा के समय में यहां हजारों की संख्या में भक्त आते हैं। हिंदुओं के अलावा अन्य समुदायों में भी रामरेखा धाम को लेकर आस्था देखी जाती है। इस अवसर पर यहां अन्य समुदाय के लोग भी पहुंचकर सुखी जीवन की कामना करते हैं। ग्रामीणों कहना है कि वे पूरे साल इस मेले का इंतजार करते हैं।

ईचगढ़ में है रामायाणकालीन निशानियां
रामरेखा धाम के अलावा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम 14 वर्षों के वनवास के दौरान झारखंड के ईचगढ़ क्षेत्र में दिन गुजारे थे। मान्यताओं पर आधारित इससे संबंधित कई दंतकथाएं क्षेत्र में आज भी सुनी व सुनाई जाती हैं। जमशेदपुर से करीब 70 किलोमीटर पश्चिम-उत्तर की ओर स्थित ईचगढ़ के आदरडीह गांव की सीमा पर स्थापित माता सीता के मंदिर पर लोगों का अटूट आस्था है। रामायण काल के अलावा क्षेत्र में महाभारत काल की भी कुछ निशानियां मौजूद हैं।

सीताजी के पैरों के निशान
ईचगढ़ प्रखंड के चितरी, आदरडीह और चिमटिया के सीमा पर स्थित चट्टान पर माता सीता के पैर के निशान तो कुकडू प्रखंड के पारगामा क्षेत्र में भगवान श्रीराम के तीर की नोक से खोदे गए जलस्त्रोत लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। क्षेत्र में प्रचलित दंतकथा है कि एक दिन माता सीता स्नान करने के लिए पानी की तलाश कर रही थी। पानी नहीं मिलने पर उन्होंने प्रभु श्रीराम से पानी खोजने में मदद मांगी।

बाण से निकाला भूगर्भ जलस्त्रोत
प्रभु श्रीराम ने अपने धनुष-बाण से भूगर्भ जल का स्त्रोत निकाला, जहां माता सीता ने स्नान किया। उसे लोग अब सीता नाला के नाम से जानते हैं। गर्मी के मौसम में भी सीता नाला का पानी नहीं सूखता है। इसी नाला के किनारे एक अर्जुन का पेड़ था। कहते हैं कि माता सीता ने पेड़ की डाली पर अपने बाल रखकर सुखाए थे। उस पेड़ की डाली पर अंत तक बाल जैसा काला रेशा निकलता रहता था। 15-16 वर्ष पहले पेड़ गिर गया, जिसके बाद लोग पेड़ की डाली को ले गए।

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