शिव भक्त हैं और सावन के अंतिम दिनों में सर्प देवी मां मनसा की पूजा के दौरान ये अद्दभुत नजारा पेश करते हैं। जहरीले सांपो की माला पहनते हैं वो, नुकीले शूलों को अपनी जीभ और चेहरे के साथ शरीर के अंगों पर बिधवाते हैं, फिर भी न तो उन्हें दर्द होता है और न डर लगता है।
मान्यता है कि शिव पुत्री माँ मनसा सर्प की देवी है। माँ मनसा की पूजा से बिच्छू व सर्पदंश से सुरक्षित रहने के साथ सर्पदोष से भी मुक्ति पाई जा सकती है। इन्हें शिव पुत्री, विष की देवी, कश्यप पुत्री और नागमाता के रूप में भी माना जाता है। देवी मनसा की पूजा आमतौर पर बरसात के दौरान की जाती है, क्योंकि सांप उस दौरान अधिक सक्रिय रहते हैं। बंगला व ओडि़शा पंचांग के अनुसार श्रावण संक्रांति, भादो संक्रांति और आश्विन संक्रांति के दिन मां मनसा की पूजा की जाती है।
मान्यता के अनुसार मां मनसा देवी भगवान शिव की मानस पुत्री हैं। वहीं पुराने ग्रंथो में यह भी कहा गया है कि इनका जन्म कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है। कुछ ग्रंथो के अनुसार नागराज वासुकी की बहन पाने की इच्छा को पूर्ण करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें मनसा देवी को भेंट किया था। वासुकी इनके तेज को संभाल न सके और इनके पोषण की जिम्मेदारी नागलोक के तपस्वी हलाहल को दे दी।
इनकी रक्षा करते-करते हलाहल ने अपने प्राण त्याग दिए थे। मनसा देवी भक्तिभाव से पूजा करने वाले भक्तों के लिए बेहद दयालु और करुणामयी हैं। मनसा देवी का पंथ मुख्यत: भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में केंद्रित है। माता मनसा देवी, नाम के अनुरूप ही भक्तों की समस्त मंशाओं को पूरी करने वाली देवी हैं। नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। कई बार देवी के प्रतिमाओं में पुत्र आस्तिक को उनकी गोद में लिए दिखाया जाता है।
भोले शंकर के भक्त जिन्हें पंच परगनिया क्षेत्रों में भोक्ता कहा जाता है. श्रद्धा, भक्ति और मान्यताओं के अनुसार सर्प देवी की पूजा के लिए भोक्ता पूरे 9 दिन का उपवास करते हैं फिर पूर्णाहूति के दिन सुबह से गले में जहरीले सांपो की माला पहनते हुए उनसे ठिठोली करते भोक्ता शिव मंदिर बु्ढा महादेव की तरफ आगे बढ़ते है। शिव भक्त और भोक्ताओं की इस टोली में हर प्रजाति के सांप होते हैं।
दिलचस्प पहलू यह भी है कि इस त्योहार के लिए शिव भक्त जंगलों में साल भर जहरीले सांपो को पकडऩे का कार्य करते हैं। रंग बिरंगे सांपों को कोई ज्यादा इकट्ठा कर लेता है तो उसका व्यवसाय भी जरूरत के मुताबिक कर लेता है। एक सांप की कीमत दो सौ से लेकर पांच हजार रुपए तक होती है। लेकिन यह सब कुछ गुपचुप तरीके से अब होने लगा है।
मान्यताओं के अनुसार सांपों की खरीद-फरोख्त को उचित नहीं माना जाता है। पता चलने पर ऐसे लोगों पर समाज के लोग अर्थ दंड लगाकर उसे एक साल के लिए पूजा में शामिल होने से रोकते भी हैं। बावजूद इसके गुपचुप तरीके से ही सही इस मौके के लिए सांपो की खरीद बिक्री का सिलसिला अब चल पड़ा है।