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महादलित उर्मिला की पाठशाला में भविष्य के सपने बुन रहे नन्हे-मुन्ने

locationजमुईPublished: Aug 19, 2020 10:49:35 pm

Submitted by:

Yogendra Yogi

(Bihar News ) ‘जरूरी नहीं रोशनी चरागों से ही हो, शिक्षा से भी घर रौशन होते हैं,’ दलितों में महादलित परिवार की उर्मिला न सिर्फ अपना घर बल्कि अपने (light of education) जैसे कई घरों में शिक्षा की अलख जगा रही है। इस बहादुर छात्रा (Brave girl Urmila ) हर मुश्किलों का सामना किया, पर शिक्षा का उजियारा फैलाने के मामले में हार नहीं मानी। आखिरकार एक घर से जलाया शिक्षा का चराग अब लगातार आगे बढ़ते हुए कई घरों में अशिक्षा का अंधेरा दूर कर रहा है।

महादलित उर्मिला की पाठशाला में भविष्य के सपने बुन रहे नन्हे-मुन्ने

महादलित उर्मिला की पाठशाला में भविष्य के सपने बुन रहे नन्हे-मुन्ने

जमुई(बिहार): (Bihar News ) ‘जरूरी नहीं रोशनी चरागों से ही हो, शिक्षा से भी घर रौशन होते हैं,’ दलितों में महादलित परिवार की उर्मिला न सिर्फ अपना घर बल्कि अपने (light of education) जैसे कई घरों में शिक्षा की अलख जगा रही है। इस बहादुर छात्रा (Brave girl Urmila ) हर मुश्किलों का सामना किया, पर शिक्षा का उजियारा फैलाने के मामले में हार नहीं मानी। आखिरकार एक घर से जलाया शिक्षा का चराग अब लगातार आगे बढ़ते हुए कई घरों में अशिक्षा का अंधेरा दूर कर रहा है।
बाधाओं से नहीं मानी हार
जमुई जिले के खैरा इलाके के धरमपुर गांव में अपने ननिहाल में रहने वाली उर्मिला ने तमाम बाधाओं को पार करते हुए शिक्षा की राह चुनी। बाल विवाह को मना कर खुद की पढ़ाई करने के साथ-साथ अपने समाज में बच्चों को शिक्षित कर शिक्षा की अलख जगाने का निर्णय लिया। इन प्रयासों को आखिर सफलता मिली अब गांव के चौपाल पर हर दिन उर्मिला की पाठशाला लगती है जिसमें महादलित टोले के दर्जनों बच्चे पढऩे आते हैं। ये बच्चे अक्षर ज्ञान के साथ अंग्रेजी के बोल भी सीख रहे हैं। 18 साल की उमिज़्ला के प्रयास की सराहना पूरे इलाके में होती है।
संघर्ष से बढ़ी आगे
दरअसल उर्मिला के पिता जगदीश मांझी साक्षर नहीं थे। माता मीना देवी भी निरक्षर हैं। लेकिन, ननिहाल में रहने वाली उर्मिला को बचपन से पढ़ाई से बहुत लगाव था। यही वजह है कि वह संघर्ष करते हुए खुद मैट्रिक पास कर इंटर की पढ़ाई कर रही है। उर्मिला की चाहत है कि वह स्नातक कर बीएड करें और फिर शिक्षक बन जाए। उर्मिला की जीवटता का अंदाजा इस बात से ही लग जाता है कि जब घरवालों ने बाल विवाह के लिए कहा तो उसने यह कहकर मना कर दिया कि उसे अभी पढऩा है। खुद की पढ़ाई के साथ समाज मे शिक्षा को बढ़ावा देने की चाहत से वह गांव के महादलित टोले के बच्चों को भी शिक्षा देने की शुरुआत कर दी। कोरोनाकाल में लॉकडाउन में तो वह घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाया करती थी।
बाल विवाह की कुप्रथा
उर्मिला के मां-पिता अनपढ़, फिर बचपन मे ही सिर से पिता का साया छिन गया। जिस समाज में बच्चों का अपने घरवालों के साथ में बाल मजदूरी करना मजबूरी है। जहां बाल विवाह की प्रथा आज भी घर बनाये हुए है। वहां धरमपुर गांव की महादलित टोले के चौपाल पर हर दिन उर्मिला की पाठशाला लगती है।
परिजनों की आर्थिक मजबूरी
यहां गांव के महादलित टोले के दर्जनों बच्चे उर्मिला से निशुल्क शिक्षा ले रहे हैं, उर्मिला उन बच्चों को शिक्षा के मामले में ज्यादा ध्यान देती है जो सरकारी स्कूल में पढऩे वाले हैं और जो ड्रॉपआउट हैं। जिनके माता-पिता मजदूर हैं और वह मजदूरी करवाने के लिए अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाते हैं, या फिर आर्थिक तंगी से परेशान हैं। पढऩा-लिखना, शिक्षित होना जरूरी है तभी समाज आगे बढ़ेगा बगैर शिक्षित हुए बिना बाल मजदूरी और बाल विवाह खत्म नहीं होगा। इसी सोच के कारण उर्मिला ने अपने जीवन का लक्ष्य शिक्षित होकर दूसरों को शिक्षित बनाना तय कर लिया।
शिक्षित समाज ही आगे बढ़ेगा
अपने समाज के बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने वाली उर्मिला का कहना है कि उसका समाज तभी बढ़ेगा जब वह शिक्षित होगा। वह इस बात से आहत है कि उसके समाज में आज भी बाल मजदूरी और बाल विवाह का प्रचलन है। आर्थिक तंगी के कारण परिवार वाले अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाते। बच्चों का स्कूल में नामांकन तो हो जाता है, लेकिन बच्चे स्कूल नहीं जाते। आखिर जब बच्चे शिक्षित होंगे तभी आगे बढ़ेंगे, अपने समाज को आगे बढ़ाने के लिए उसने यह काम शुरू किया जिसमें लोगों ने खूब सहयोग भी दिया।
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