जिले में सिंचाई विभाग द्वारा लाइनिंग कार्य किया जा रहा है। इस कार्य में ठेकेदारों द्वारा गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मानक के अनुरूप लाइनिंग नहीं हो रही है। एक ओर लाइनिंग की जा रही है तो दूसरी ओर यही लाइनिंग उखड़ रही है। इन दिनों नवागढ़ ब्लाक के कुरियारी, गोधना, पोड़ी, सेमरा, तुस्मा सहित आसपास के आधा दर्जन गांवों में तकरीबन सात किलोमीटर की दूरी तक पांच करोड़ रुपए की लागत नहर लाइनिंग जारी है। इतने क्षेत्र में पुल का निर्माण भी होना है।
प्रदेश में सबसे अधिक नहर का जाल
प्रदेश में सबसे अधिक नहर से सिंचाई का रकबा जांजगीर चांपा जिले में है। यहां 88 प्रतिशत धान के रकबे में नहर के पानी से सिंचाई होती है। ढाई लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में मात्र 12 प्रतिशत क्षेत्र में ही सिंचाई का पानी नहीं पहुंचता। शेष रकबा नहर के पानी से सिंचित होता है। इतने वृहद क्षेत्र में अपासी के लिए सरकार नहरों के मेंटनेंस के लिए भी सालाना करोड़ो रुपए पानी की तरह बहाती है।
यही मेंटेनेंस सिंचाई विभाग के अफसरों के लिए कमाई का जरिया बन जाता है। करोड़ो रुपए की लागत से लाइनिंग कार्य किया जाता है। यही वजह है कि पहली बारिश में ही लाइनिंग उखड़कर फिर अपना पुराना रूप धारण कर लेती है। विभागीय अफसर दूसरे साल फिर उसी कार्य के लिए स्टीमेट तैयार करते हैं और फिर उसी नहर में लाइनिग कराकर लाखों का बंदरबांट करते हैं।
बाद में यह होता है दुष्परिणाम
नहर की बदहाली को लेकर सबसे बड़ा खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ता है। समय पर नहर से पानी नहीं मिलने से किसान सिंचाई कर पटाने कोताही बरतते हैं। यही वजह है कि अब तक करोड़ो रुपए का सिंचाई कर नहीं पट पाया है। सिंचाई विभाग के अधिकारी जब सिंचाई का सीजन चलता है तब गांवों की ओर कदम नहीं रखते। जब सिंचाई कर पटाने की बारी आती है तब उनके द्वारा किसानों का दरवाजा खटखटाया जाता है। इससे किसान भी आक्रोशित होते हैं।
यह होगा नुकसान
ग्रामीणों ने बताया कि स्तरहीन लाइनिंग होने से पहली बारिश में ही सीमेंट कांक्रीट पानी में घुल जाता है। इससे नहर का स्वरूप बदल जाता है। इसके कारण सिंचाई के लिए छोड़ा गया पानी टेल एरिया तक नहीं पहुंच पाता है। खेत प्यासे रह जाते हैं। इतना ही नहीं किसानों के बीच आपस में झगड़ा भी होता है। सिर फुटौव्वल की स्थिति भी बनती है और नुकसान किसानों को ही होता है।