गौरतलब है कि 1962 में महाराष्ट्र के सदाशिव गोविंदराव कात्रे ने सोंठी के पास कुष्ठ आश्रम की स्थापना की थी। उनके निधन के बाद 1972 से दामोदर गणेश बापट (Damodar Ganesh Bapat) ने यहां का काम काज संभाला था। प्रदेश के अलावा देश के कोने-कोने से यहां कुष्ठ के मरीज भर्ती होते हैं। जिनकी सेवा के लिए दामोदर गणेश बापट (Damodar Ganesh Bapat) ने अपनी पूरी उम्र खपा दी थी। वे लगातार 37 सालों से कुष्ठ पीडि़तों का इलाज कराने पूरी लगन से काम करते रहे। उनके इस कार्य को देख 26 जनवरी 2018 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) ने उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा। वे हमेशा कुष्ठ पीडि़तों की सेवा में ही लीन थे।
दो सादे कपड़ों में गुजारी पूरी जिंदगी
आश्रम के एक कमरे में केवल एक बिस्तर और दो सादे कपड़ों में पूरी जिंदगी बिता दी। आश्रम में करोड़ों की संपत्ति उनके नाम है। चाहते तो वे सर्वसुविधायुक्त एसी कमरे रह सकते थे, लेकिन वे दो सादे कपड़े में ही पूरी जिंदगी बिता दी।
जीते जी आश्रम का किया कायाकल्प
बापट (Damodar Ganesh Bapat) ने आश्रम में न केवल एक सर्वसुविधायुक्त अस्पताल का निर्माण कराया बल्कि आश्रम के साथ-साथ सुशील बालक गृह का भी निर्माण कराया। जहां अनाथ व गरीब बच्चों को नि:शुल्क आवासीय शिक्षा प्रदान की जाती है। आश्रम में सैकड़ों छात्र पिछले तीन दशक से निवासरत हैं।
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