डॉ. साहू ने बताया कि उन्होंने तीन साल पहले साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड नई दिल्ली को इस प्रोजेक्टर पर काम करने के लिए लिखा था। वहां से यह प्रोजेक्टर सेंगशन हुआ और 43.45 लाख की स्वीकृति मिलने के बाद प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू हुआ। इसे फॉल्ट टोलरेंट ऑपरेशन नाम दिया गया। इसके लिए कई आधुनिक उपकरण खरीदे, जिसकी मदद से यह उपकरण तैयार किया जा रहा है। इस दौरान उन्होंने एक ऐसा सोलर सिस्टम भी खरीदा, जिसका पैनल छत पर लगा है और उसका एक्ससे लैब में सीधे मिल रहा है। इससे लैब के सभी फैंस और लाइट चलाए जा रहे हैं। प्रयोग के दौरान जब अधिक पॉवर की आवश्यकता होती है तब बाहर से बिजली ली जाती है। इस तरह इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट का यह लैब एनआईटी रायपुर का पहला ऐसा लैब बन गया है जो कि सोलर पॉवर बेस्ड है। इसके लिए अलग से एक किलोवाट का लोलर सिस्टम लगाया गया है।
यह था उद्देश्य इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य एक ऐसा उपकरण तैयार करना है, जिसे यदि सोलर पैनल से जोड़ दिया जाए तो वह लगातार डीसी करंट को कनवर्ट करके एसी करंट की सप्लाई देता रहे। इससे उपभोक्ता को पॉवर ब्रेक के चलते परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा और वह समय रहते खराब उपकरण को सुधरवा भी सकेगा। वर्तमान में जो सोलर सिस्टम है उसमें कुछ छोटी-छोटी खराबी आती हैं तो उपभोक्ता उसका यूज करना बंद कर देता है।
इस तरह की आती समस्या डॉ. साहू ने बताया कि सोलर पैनल से हमे डीसी पॉवर मिलती है। उसे एसी में कनवर्ट करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक कनवर्टर की आवश्यकता होती है। यही सिस्टम घरों में लगने वाले इनवर्टर में भी होता है। इस कनवर्टर में मुख्य रूप से तीन कंपोनेंट सेमी कंडक्टर स्विचेज, कैपेसीटर और पीसीवी होते हैं। इसमें सेमी कंडक्टर स्विचेज और पीसीवी में अधिक खराबी होती है। तैयार किए गए नए कंडक्टर में यह खासियत है कि यदि इसमें कुछ खराबी आती भी है तो यह सप्लाई देता रहेगा।
तीन महीने बाद प्रोडक्ट का रूप ले लेगा प्रयोग इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट का यह अनूठा प्रयोग तीन माह बाद प्रोडक्ट का रूप ले लेगा। डॉ. साहू ने दिल्ली में अपना प्रेजेंटेशन भी दे दिया है और प्रोडक्टर के रूप में इसे लाने के लिए तीन महीने का अतरिक्त समय मांगा है। तीन महीने बाद प्रोजेक्टर पूरा होते ही इसे साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड नई दिल्ली को सौंप दिया जाएगा।
डेढ़ लाख की आई है लागत डॉ. साहू ने बताया कि रिसर्च के दौरान बिना किसी सब्सिडी के उन्हें यह पूरा सिस्टम तैयार करने में डेढ़ लाख रुपए की लागत आई है। पिछले तीन महीने से लगातार वह सोलर एनर्जी का उपयोग कर रहे हैं। प्रयोग में किसी तरह की कोई कमी न हो इसके लिए हर समय सोलर पैनल पर एक किलोवाट का लोड डालकर रखा जा रहा है। रात में पॉवर लेने के लिए 150 एएच की दो ट्रिबुलस बैटरी लगाई गई है।
रिसाइकलेब बैटरी पर चल रहा प्रयोग पुणे की एक स्टार्टअप कंपनी रिसाइकलेबल बैटरी पर काम कर रही है। इससे बैटरी की लाइफ बढ़ाने के साथ ही उसका दोबारा उपयोग किया जा सके इस पर रिसर्च किया जा रहा है। यह प्रयोग सफल होने के बाद बैटरी के कचरे को लेकर आने वाले संकट से भी निजात मिलेगी।