एनआईटी में एक ऐसी भी लैब जहां पंखे, लाइट और मशीने चलती हैं सोलर एनर्जी से
* एक किलोवाट का सोलर सेटअप लगातार दे रहा है विद्युत आपूर्ति
* साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड नई दिल्ली के सहयोग से किया जा रहा अनूठा प्रयोग

डॉ. संदीप उपाध्याय@रायपुर. केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें सोलर, एयर और हाईड्रोजन एनर्जी का अधिक उपयोग करने पर जोर दे रही हैं। भारत सरकार का सबसे अधिक ध्यान वर्तमान में सोलर एनर्जी का अधिक से अधिक उपयोग करने पर है। इसी कड़ी में एनआईटी रायपुर भी कदम बढ़ा रहा है। यहां १०० किलोवाट का सोलर पॉवर हब तो तैयार हो ही रहा है साथ ही यहां एक ऐसी भी लैब है जो पूरी तरह से सोलर एनर्जी से संचालित है। इस लैब के पंखे, लाइट, कंप्यूटर, एयर कंडीशन यहां तक की कम लोड वाली मशीन तक सोलर एनर्जी से चल रही हैं। यहां एक ऐसा कनवर्टर बनाया जा रहा जिसमें यदि कुछ खराबी आती भी है तो वह सोलर एनर्जी को लगातार एसी करेंट में कनवर्ट करके सप्लाई देता रहेगा। इस दौरान इंजीनियर को उसे बनाने का पूरा समय भी मिलेगा और बिजली की आपूर्ति भी बाधित नहीं होगी।इस प्रोजेक्ट पर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के असिस्टेंड प्रोफेसर डॉ. ललित साहू कार्य कर रहे हैं। यह प्रोजेक्ट एनआईटी के डायरेक्टर डॉ. एएम रावाणी, डीन रिसर्च एंड कंसलटेंसी डॉ. सुब्रता गुप्ता और हेड इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट डॉ. एंडी लोंढे के मार्गदर्शन में चल रहा है।
डॉ. साहू ने बताया कि उन्होंने तीन साल पहले साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड नई दिल्ली को इस प्रोजेक्टर पर काम करने के लिए लिखा था। वहां से यह प्रोजेक्टर सेंगशन हुआ और 43.45 लाख की स्वीकृति मिलने के बाद प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू हुआ। इसे फॉल्ट टोलरेंट ऑपरेशन नाम दिया गया। इसके लिए कई आधुनिक उपकरण खरीदे, जिसकी मदद से यह उपकरण तैयार किया जा रहा है। इस दौरान उन्होंने एक ऐसा सोलर सिस्टम भी खरीदा, जिसका पैनल छत पर लगा है और उसका एक्ससे लैब में सीधे मिल रहा है। इससे लैब के सभी फैंस और लाइट चलाए जा रहे हैं। प्रयोग के दौरान जब अधिक पॉवर की आवश्यकता होती है तब बाहर से बिजली ली जाती है। इस तरह इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट का यह लैब एनआईटी रायपुर का पहला ऐसा लैब बन गया है जो कि सोलर पॉवर बेस्ड है। इसके लिए अलग से एक किलोवाट का लोलर सिस्टम लगाया गया है।
यह था उद्देश्य इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य
एक ऐसा उपकरण तैयार करना है, जिसे यदि सोलर पैनल से जोड़ दिया जाए तो वह लगातार डीसी करंट को कनवर्ट करके एसी करंट की सप्लाई देता रहे। इससे उपभोक्ता को पॉवर ब्रेक के चलते परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा और वह समय रहते खराब उपकरण को सुधरवा भी सकेगा। वर्तमान में जो सोलर सिस्टम है उसमें कुछ छोटी-छोटी खराबी आती हैं तो उपभोक्ता उसका यूज करना बंद कर देता है।
इस तरह की आती समस्या
डॉ. साहू ने बताया कि सोलर पैनल से हमे डीसी पॉवर मिलती है। उसे एसी में कनवर्ट करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक कनवर्टर की आवश्यकता होती है। यही सिस्टम घरों में लगने वाले इनवर्टर में भी होता है। इस कनवर्टर में मुख्य रूप से तीन कंपोनेंट सेमी कंडक्टर स्विचेज, कैपेसीटर और पीसीवी होते हैं। इसमें सेमी कंडक्टर स्विचेज और पीसीवी में अधिक खराबी होती है। तैयार किए गए नए कंडक्टर में यह खासियत है कि यदि इसमें कुछ खराबी आती भी है तो यह सप्लाई देता रहेगा।
तीन महीने बाद प्रोडक्ट का रूप ले लेगा प्रयोग
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट का यह अनूठा प्रयोग तीन माह बाद प्रोडक्ट का रूप ले लेगा। डॉ. साहू ने दिल्ली में अपना प्रेजेंटेशन भी दे दिया है और प्रोडक्टर के रूप में इसे लाने के लिए तीन महीने का अतरिक्त समय मांगा है। तीन महीने बाद प्रोजेक्टर पूरा होते ही इसे साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड नई दिल्ली को सौंप दिया जाएगा।
डेढ़ लाख की आई है लागत
डॉ. साहू ने बताया कि रिसर्च के दौरान बिना किसी सब्सिडी के उन्हें यह पूरा सिस्टम तैयार करने में डेढ़ लाख रुपए की लागत आई है। पिछले तीन महीने से लगातार वह सोलर एनर्जी का उपयोग कर रहे हैं। प्रयोग में किसी तरह की कोई कमी न हो इसके लिए हर समय सोलर पैनल पर एक किलोवाट का लोड डालकर रखा जा रहा है। रात में पॉवर लेने के लिए 150 एएच की दो ट्रिबुलस बैटरी लगाई गई है।
रिसाइकलेब बैटरी पर चल रहा प्रयोग
पुणे की एक स्टार्टअप कंपनी रिसाइकलेबल बैटरी पर काम कर रही है। इससे बैटरी की लाइफ बढ़ाने के साथ ही उसका दोबारा उपयोग किया जा सके इस पर रिसर्च किया जा रहा है। यह प्रयोग सफल होने के बाद बैटरी के कचरे को लेकर आने वाले संकट से भी निजात मिलेगी।
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